कैसी है ये नारी के लिए पुरुषों की ओछी मानसिकता …?

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women victim

women victimयुग पर युग बदले, सोच-विचार बदले, समय ने करवट ली, विकास और तरक्की आसमां छूने लगे, नदी, नाले, खेत खलियान सभी बदल गये। बस नहीं बदली तो नारी की तकदीर।

अब तो शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता हो जिस दिन देश के किसी कोंने से दुष्कर्म की खबर न आती हों। कभी-कभी तो ऐसी खबरे सामने आती है कि उसके बारे में सोच कर ही दिल कांप जाता है और ऐसी घटनाएं जो मन को जकझोर कर रख देती हैं। यह सब देख और सुन कर ऐसा लगता है कि हमारे देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा न तो घर के अन्दर सुरक्षति है और न ही बाहर। सभ्य कहे जाने वाले हमारे देश में तेजी से बढ़ रही यह घटनाएं घोर चिंता का विषय बन चुकी है। 

 आदिकाल से आजतक शोषण, आरोप, हत्या बलात्कार का दंश झेलती नारी आखिर कब तक घिनौनी मानसिकता का शिकार होती रहेगी? न वह घर परिवार, समाज में सुरक्षित है और न ही घर से बाहर सड़क पर। सरकार नारी उत्थान और रक्षा के वादे तो बड़े-बड़े करती है, लेकिन इन वादों की हकीकत तक मुखर होकर सामने आ जाती है जब किसी बहन बेटी को राजधानी के व्यस्तम चैराहों से, सड़कों से, बाजारों से, खुली गलियों से जबरन खींच लिया जाता है। कभी टेंपों में, कभी बंद कार में, तो कभी सुनसान इलाकों में उनसे सामुहिक बलात्कार किया जाता है। 

वैसे तो पुरूषों को घर की झूठी थाली में रोटी खाना गवारा नहीं होता, फिर एक साथ तीन-तीन चार-चार और कभी कभी तो  संख्या 8 से 10 की भी हो जाती है, ऐसे हवस के भेडि़ए कैसे एक लोथड़े पर टूट पड़ते हैं। सच तो यह है कि पुरूष प्रधान इस समाज ने सदैव ही नारी का शोषण किया है नारी को मात्र भोग की वस्तु समझने वाला पुरूष चाहे कितना ही बड़ा नेता हो, न्याधीश हो, बाबा हो या मठाधीश हो, अभिनेता हो या देश का साधारण नागरिक सभी एक ही कतार में खड़े हैं नज़र आते हैं। क्या हुआ? यदि सौ में से चार फिसदी मर्द औरतों का सम्मान देने वाले हो, बाकी 96 प्रतिशत तो हवस के भेडि़ए ही हैं। सड़क पर चलने वाली लड़की, बस में सफर करने वाली लड़की, ऑफिस में अधेड़ उम्र की सहकर्मी, राजनीति में अपने तेवर दिखाने वाली स्त्री या अपनी मादक अदाओं से मोहने वाली हीरोईन या काम के बोझ से दबी कुचली, मैली कुचैली नारी, जब भी किसी पुरूष की नजर इन पर पड़ती है, चाहे वो युवा हो, अधेड़ हो या बूढ़ा हो, फब्तियां कसने से बाज नहीं आता।

स्कूटर, कार, ट्रक, टेंपों स्टैंड पर ही क्यों न खड़ा हो किसी लड़की या महिला पर नजर पड़ते ही ऐेसे घूरता है कि जैसे मानों अभी निगल जायेगा। फिर कैसे हम इन हालातों में सोच सकते हैं कि स्त्रियां सुरक्षित हो सकती हैं। यूँ तो हमारे समाज और कानून में अनेकों खामिया है लेकिन सबसे अधिक खामी तो पुरूष की विकृत मानसिकता में है। जिस स्त्री को देवालयों और नवरात्रों में वह देवी मानकर पूजता है उसी स्त्री को वेश्या, भोग्या, काम्या, प्रमदा कहकर दोनों हाथों से लूटता है। तरक्की और शिक्षा के नाम पर चाहे हम कितने ही कसीदे पढ़े़, कितनी ही समितियाँ बनायें, बोर्डो का गठन करें या आरक्षण देने का वायदा करें, लेकिन जब तक पुरूष अपनी ओछी मानसिकता नहीं बदलेगा, तब तक स्त्री कभी कहीं भी सुरक्षित नहीं रह सकती। यह स्त्री का दुर्भाग्य कि यंत्र पूज्यन्ते नारी, तत्र रमणयते देवता“ वाले देश में ही नारी शोषण, आरोप, हत्या, बलात्कार से ग्रस्त है। सदैव ही उसका शोषण कभी शारीरिक तो कभी मानसिक रूप से होता रहा है।

कहने को तो देश में मौजूद कानून में दुराचारियों के खिलाफ सजा दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन कानून के रखवालों की नियत ठीक हो तब न । जब कोई पीड़ित महिला न्याय पाने की उम्मीद से पुलिस स्टेशन की सीढियां चढ़ती है तो वहां बैठे कानून के रखवाले उससे घिनौने सवाल पूछते हैं, जिन्हें सुनकर शर्म भी शायद शर्मसार हो जाये। क्या महिलाओं के लिए कानून का यही मतलब है? हमारे देश में यह बात तो हमेशा से ही बहस का मुद्दा रहा है।

यह हमारे समाज कि कैसी विडंबना है कि एक ओर नारी को पूजनें की बात कही जाती है, वहीँ दूसरी ओर असमाजिक तत्व उसे रौंदने से बाज नही आते हैं । जरा सोचिये की इस त्रासदी की शिकार महिला के दिल पर क्या गुजरती होगी । उसकी खोई इज्जत कभी वापस नही मिल सकेगी यह सोच कर उसके मन में यही विचार आता होगा कि क्यों न सारी व्यवस्था को आग लगा दूँ। उसे कभी-कभी समाज के ताने भी सुनने पड़ते है। उसके मन कि पीड़ा वही समझ सकती है।

ऐसी स्थिति में नारी के लिए एक ही रास्ता बचता है कि अपनी सुरक्षा स्वयं करो के सिद्धांत को अपनाते हुए नारी उठ खड़ी हो। वह अपने मन से दीनता व हीनता के भाव को निकाल दे। नारी को अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में है पानी की छवि से छुटकारा पाना होगा । वह अपनी ताकत को पहचाने। उसे यह भी सिद्ध करना होगा कि वह बेटी, बहिन और ममतामयी माँ के अलावा जरूरत पड़ने पर दुर्गा का रूप भी धारण करना जानती है। वह इतिहास में दर्ज बहादुर महिलाओं के जीवन से सीख ले। उसे अपना मनोबल इतना ऊँचा करना होगा कि पत्थरों से भी टकराने में पीछे नहीं हटे। जिस दिन नारी यह सब करने में सक्षम हो जाएगी उसी दिन से छेड़-छाड़ और दुष्कर्म की घटनाओं में कमी आना शुरू हो जाएगी