छेड़ –छाड़ करने वाले सख्स को सिखया सबक, समाज की अन्य महिलाओं के लिए मिसाल बनी ‘मंधारे’
- March 19, 2015
- By Arpana Singh Parashar
- in मुख्य ख़बरें, मुम्बई, राज्य
यह हमारे समाज कि कैसी विडंबना है कि एक ओर नारी को पूजनें की बात कही जाती है, वहीँ दूसरी ओर असमाजिक तत्व उसे रौंदने से बाज नही आते हैं। अक्क्सर यह माना जाता रहा है कि महिलाये ही जुर्म के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाती है जो समाज में जुर्म को बढ़ावा देने का एक अहम कारण है। लेकिन जब एक महिला ने छेड़छाड़ के जवाब में खुद आरोपी को घसीटते हुए पुलिस तक ले गई, तब इस महिला की बहादुरी कई लोगों के लिए बदलाव का संकेत बन गई।
दरअसल, मुंबई के कांदीवली स्टेशन की एक घटना है, जिसमे विले पारले के सत्या कॉलेज में मास कॉम की छात्रा प्रदन्या मंधारे रोज की तरह क्लास के बाद लोकल ट्रेन में घर जा रही थी। कांदीवली स्टेशन से उसे बोरीवली के लिए ट्रेन बदलनी थी इसलिए वो वहां उतर गई। वेटिंग रूम में जब वह अपनी ट्रेन का इंतजार कर रही थी, उसी वक्त नशे में धुत एक आदमी उनसे छेड़छाड़ करने लगा। मंधारे ने जब उसका विरोध किया तो उसने मंधारे को जकड़ लिया। इसके बाद मंधारे ने उस आदमी को झटकते हुए अपने बैग से उसकी पिटाई शुरू कर दी।
इसके बाद पूरी तरह नशे में धुत 25 वर्षीय उस इंसान से मंधारे की हाथापाई शुरू हो गई। यह सब कांदीवली स्टेशन पर हो रहा था जहां सैकड़ों की भीड़ तमाशा देख रही थी। मंधारे के मुताबिक वो ये सब देखकर निराश तो हो रहीं थीं लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और उस हमलावर को बालों से पकड़कर घसीटते हुए जीआरपी के पास ले गई। जीआरपी चौकी पहुंचते ही पुलिसवालों ने उस व्यक्ति को गिरफ्तार का मेडिकल टेस्ट के लिए भेज दिया। नशे में चूर उस व्यक्ति की पहचान 25 वर्षीय चावन के रूप में हुई। इस घटना के बाद मंधारे का कहना है कि महिलाओं को मौका पड़ने पर मारपीट करने से भी नहीं चूकना चाहिए। हालांकि जब यह घटना हो रही थी उस समय तमाशा देख रहे लोगों को देखकर उसे निराशा हुई।
हालाँकि, यहाँ मंधारे के साथ जो घटना हुई ये कोई नै घटना नहीं, देश में महिलाओ के साथ छेड़ –छाड़ तो जैसे हमारे समाज का एक अहम हिस्सा बन चुकी है, जिसका शिकार न जाने कितनी ही महिलाये होती है आये दिन होती रहती हैं। इनमे से कुछ मंधारे कि तरह हिम्मत दिखाकर मिशाल कायम करती है तो कुछ चुप रहकर जुर्म का शिकार हो जाती है, और हमारा समाज इसका तमाशबीन बनता है, जो चुप होकर सब देख तो सकता है लेकिन आगे बढ़कर इसे रोकने का प्रयास नहीं करना चाहता।
अब ऐसी स्थिति में नारी के लिए एक ही रास्ता बचता है कि अपनी सुरक्षा स्वयं करो के सिद्धांत को अपनाते हुए नारी उठ खड़ी हो। वह अपने मन से दीनता व हीनता के भाव को निकाल दे। नारी को अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में है पानी की छवि से छुटकारा पाना होगा । वह अपनी ताकत को पहचाने। उसे यह भी सिद्ध करना होगा कि वह बेटी, बहिन और ममतामयी माँ के अलावा जरूरत पड़ने पर दुर्गा का रूप भी धारण करना जानती है।