World Ozone Day 2019 : ओजोन लेयर के बिना धरती पर खतरे में पड़ जाएगा जीवन

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नई दिल्ली : हर वर्ष 16 सितंबर को वर्ल्ड ओजोन डे (World Ozone Day 2019) के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य दुनियाभर के लोगों के बीच पृथ्वी को सूर्य की हानिकारक अल्ट्रा वाइलट किरणों से बचाने और हमारे जीवन को संरक्षित रखने वाली ओजोन परत पर जागरूकता लाना है। 16 सितंबर को इसके लिए सेमिनार और अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

19 दिसंबर 2000 को ओजोन परत की कमी के कारण मॉन्ट्रियल कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने के लिए यह दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित किया गया था। मॉन्ट्रियल कन्वेंशन दुनिया भर के हानिकारक पदार्थों और गैसों को समाप्त करके ओजोन परत की रक्षा करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संधि है।

यह दिन ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की याद दिलाता है। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल वियना संधि के तहत ओजोन परत के संरक्षण के लिए सभी देशों के द्वारा लिया गया एक संकल्प है ताकि पृथ्वी पर जीवन को सुरक्षित रखा जा सके। हर साल ओजोन लेयर के संरक्षण के लिए एक अलग थीम तैयार करके लोगों को इसके महत्व के बारे में जानकारी दी जाती है। इस विश्व ओजोन दिवस 2019 की थीम ’32 years and Healing’ है। इस थीम के जरिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत दुनियाभर के देशों द्वारा ओजोन परत के संरक्षण और जलवायु की रक्षा के लिए तीन दशकों से किए जा रहे प्रयासों को बताया जाएगा।

क्या है ओजोन लेयर: ओजोन लेयर हमें सूरज से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाता है। ओजोन ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से बना है। यह अत्यधिक प्रतिक्रियाशील गैस है और O3 द्वारा दर्शाई जाती है। यह स्वाभाविक रूप से पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में मानव निर्मित उत्पाद यानी स्ट्रैटोस्फियर और निचले वायुमंडल यानी ट्रोपोस्फीयर में होता है।

मानव निर्मित कैमिकल से होता है सबसे ज्यादा नुकसान : ओजोन परत को सबसे अधिक नुकसान मानव निर्मित उन कैमिकल्स से होता है, जिनमें क्लोरीन या ब्रोमीन होता है। मानवीय गतिविधियों के कारण ओजोन परत ग्रह पर कम हो रही है जो बहुत विनाशकारी हो सकता है। इससे फोटोकैमिकल स्मॉग और एसिड बारिश भी होती है।

इन रसायनों को ओजोन डिप्लेटिंग सब्सटेंस (OSD)के रूप में जाना जाता है। इनकी मात्रा अधिक होने पर ओजोन परत को हानि पहुंती है और उसमें छेद हो जाते हैं, जिनके जरिए सूर्य की हानिकारक किरणें पृथ्वी पर पहुंचकर वायुमंडल को नुकसान पहुंचाने लगती हैं।