सावधान : बिगड़ सकती है सरकारी बैंकों की स्थिति, अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने दी चेतावनी

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नई दिल्ली : बुधवार को मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान ब्याज दरों को लेकर रिजर्व बैंक क्या फैसला करता है इस पर तो सभी की नजर है, लेकिन इसके साथ ही सभी को इसकी उम्मीद है कि सरकारी बैंकों की हालात को सुधारने के लिए केंद्रीय बैंक कुछ कदम उठाएगा। मौद्रिक नीति की समीक्षा की घोषणा के पहले दो दिनों के भीतर दो अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों ने जिस तरह से भारतीय बैंकिंग की वित्तीय स्थिति का खुलासा किया है वह बेहद चिंताजनक है।

सोमवार को मूडीज ने और मंगलवार को फिच ने साफ तौर पर कहा है कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों की माली हालत हाल फिलहाल सुधरती नजर नहीं आ रही है। इन दोनो एजेंसियों ने कहा है कि अगले वित्त वर्ष इन बैंकों में एनपीए की समस्या और बिगड़ेगी।

बैंकिंग व्यवस्था को लेकर फिच और मूडीज की सालाना रिपोर्ट को उद्योग जगत में काफी तवज्जो दी जाती है। वैसे पिछले कई वर्षो से ये दोनो एजेंसियां भारतीय बैंकों के बारे में नकारात्मक रिपोर्ट ही दे रही हैं। वैसे मूडीज ने इस बार यह जरुर कहा है कि अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार होने का सकारात्मक असर इन बैंकों पर पड़ेगा, लेकिन फिच की रिपोर्ट में एक तरह से चेतावनी दी गई है कि एनपीए की समस्या अभी खत्म होती नहीं दिख रही है।

एनबीएफसी और छोटे व मझोले उद्योगों में फंसे कर्जे की स्थिति और बिगड़ सकती है। इन्हें कर्ज देने में जो जोखिम है वह अभी खत्म नहीं हुआ है। इससे इन बैंकों की माली हालात और बिगड़ेगी। इसका दूसरा नतीजा यह होगा कि इन बैंकों को सरकार से ज्यादा वित्तीय मदद की दरकार होगी। इसमें यह भी कहा है कि कर्ज वसूली के जो तंत्र आजमाये जा रहे हैं उससे फिलहाल बहुत उम्मीद नहीं है।

बताते चलें कि केंद्र सरकार की तरफ से सरकारी बैंकों को 20 हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त मदद देने पर जल्द ही फैसला होने की उम्मीद है। इसके पहले सरकार जनवरी, 2018 में सरकारी कुछ सरकारी बैंकों को 8,136 करोड़ रुपये और उसके बाद जुलाई, 2018 में पांच सरकारी बैंकों को 11,336 करोड़ रुपये की राशि दी थी, लेकिन देश के बैंकों की जरुरत को देखते हुए यह काफी कम है।

माना जा रहा है कि आरबीआइ की तरफ से बैंकों में वैधानिक पूंजी स्तर रखने के मौजूदा नियमों में कुछ बदलाव किया जा सकता है। इससे बैंकों को अनिवार्य तौर पर रखे जाने वाले पूंजी की जरुरत में कमी आएगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए आरबीआइ इसकी घोषणा करता है या नहीं। माना जा रहा है कि बैंकिंग सिस्टम में फंड की उपलब्धता बढ़ाने को लेकर भी आरबीआइ की तरफ से नई घोषणाएं हो सकती है।