जिस्म और मर्यादाओं का व्यापार वैश्यावृत्ति के भँवर में फसा भारत

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वेश्यावृत्ति (prostitution) एक शुल्क के लिए ग्राहकों की आवश्यकताओं जैसे यौन संतुषिट के लिए शरीर को बेचना है जिससे एक महिला को आजीविका कमाने का मौका मिले। प्राचीन काल से ज्ञात वेश्यावृत्ति का मतलब है कि आप किसी महिला के साथ यौन संबंध बनाने के बाद उसका भुगतान पैसों से करें, यह धरती का सबसे पुराना व्यवसाय है। वेश्यावृत्ति जिसकी उपसिथति प्राचीन युग से है समाज में मान्य और अमान्य दोनों के तराजू पर बराबर है। यह एक तरह का व्यापार है जिसमें देह और इज्जत दोनों की नीलामी होती है। वेश्यावृत्ति में न सिर्फ महिला के देह का सौदा होता है बलिक उसकी मर्यादा को भी बेच दिया जाता है। अब ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर हम इसे मान्यता देते ही क्यों और किन हालातों में यह समाज में उत्पन्न हुआ?

हालांकि वेश्यावृत्ति की कर्इ वजह हैं लेकिन जिस वजह से यह सबसे ज्यादा फैला है वह है गरीबी। गरीबी इंसान को कुछ भी करा सकती है फिर जब गरीब पेट के लिए किसी का कत्ल कर सकते हैं तो फिर औरतों के पास वेश्यावृत्ति के रूप में यह एक ऐसा साधन है जिससे वह अपनी आजीविका कमा सकती हैं। गरीबी के अलावा महिलाओं का किसी पर जल्दी ही भरोसा करना भी इसकी दूसरी सबसे बड़ी वजह है।

प्राप्त जानकारियों के अनुसार यह बात सामने आर्इ है कि गरीबी के अलावा जिस वजह से महिलाएं इस दलदल में आती हैं वह है किसी का धोखा। अक्सर कुछ असामाजिक तत्व महिलाओं के भोलेपन के कारण प्रेम जाल का झांसा देकर उन्हें घर से भगा लाते हैं और दूसरे शहर में उन्हें बेच देते हैं। सुनकर बहुत बुरा लगता है कि प्रेम का झांसा देकर किसी को ऐसे काम करने पर मजबूर किया जाता है। कर्इ बार महिलाएं आत्म-संतुषिट और अपनी दैहिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए भी यह व्यवसाय अपनाती है लेकिन आज के समय में जहां हर कोर्इ ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना चाहता है काफी लड़कियां इस व्यवसाय को अपना रही है । 

भारत एक विकासशील देश है जहां गरीबी की वजह से प्रतिवर्ष कर्इ मौत होती है। इसके साथ ही हमारे यहां रोजगार के साधन भी इतने कम है कि लोगों को वैकलिपक साधन अपनाने पड़े। मर्दों ने जहां जुर्म की दुनिया में कदम बढ़ाए तो महिलाओं ने वेश्यावृत्ति का सहारा लिया। साथ ही भारत में एक चीज और है जो काम कानूनी तौर पर दण्डनीय हो उसे तो करना आवश्यक है ही। गरीबी, धोखे और लालच ने वेश्यावृत्ति को भारत में बढ़ावा दिया है।

जानिये, भारत में यहां 50 से 200 रु मे बिकती हैं महिलाएं.. अपने ही लगाते हैं जमकर बोलियां,कोई रोकता नहीं

वैसे हमारे देश में भी प्राचीन काल से ही वेश्यावृत्ति चल रही है। वेश्याओं को पहले नगरवधू कहते थे जो विशेष आयोजनों पर नगर और महल के युवकों की देह की भूख शांत करती थी। इसके साथ ही आज कल की हार्इप्रोफाइल लाइफ के लिए ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की चाहत ने भी इस व्यवसाय को बढ़ावा दिया है। आज यह भारत में इस कदर फैल चुका है कि विदेशी यहां खास तौर इसी काम के लिए आते हैं।

सबसे अहम सवाल जो यहां उठता है वह यह है कि जब सरकार यह कहती है कि वेश्यावृत्ति कानूनन जुर्म है तो रेड लाइट एरिया का निर्माण ही क्यों किया गया है? पहले तो इसके मतलब को समझ लीजिए। सरकार ने रेड लाइट एरिया में लाइसेंस वेश्यावृत्ति या देह व्यापार के लिए नहीं बलिक मुजरा या नृत्य देखने के लिए दिया है। लेकिन सभी जानते हैं कि इन लाइसेंस का गलत उपयोग कर कुछ लोग यहां वेश्यावृत्ति का धंधा चलाते है। सरकार के अनुसार मुजरा देखना अपराध नहीं है और इसी के लिए रेडलाइट एरिया को इसके लाइसेंस दिए जाते हैं।

भारत में कर्इ ऐसे कांड सामने आए जिसने यह दर्शा दिया कि समय के अनुसार हमें कानून को बदलना चाहिए। बढ़ती प्रतिस्पर्धा, उच्च जीवन शैली की चाहत और गरीबी ने देहव्यापार को एक ऐसा क्षेत्र बना दिया है जहां यह आजकज के कुछ युवाओं को करियर की तरह दिखने लगा। सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार को वेश्यावृत्ति को कानून मान्यता देने की सलाह दी । केन्द्र सरकार का यह कहा कि यह बहुत पुराना पेशा है और इस पर कानूनन लगाम नहीं लगाया जा सकता है और सुप्रीम कोर्ट का यह कहना है कि अगर इस पर रोक नहीं लगा सकते तो मान्यता ही दे दो। तब कम से कम इस पेशे पर नजर रखना आसान हो जाएगा।

कुछ लोगों का यह मानना है कि वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता देने से सबसे ज्यादा फायदा यह होगा कि समाज में बलात्कार जैसे काण्ड कम हो जाएंगे। पशिचमी देशों में रेप और बलात्कार कम होने की मुख्य वजह यही है। जब पुरूष की वासना प्यास का रूप धारण कर लेती है तब वह उस प्यास को बुझाने के लिए हर कोशिश करता है और ऐसे में भूलवश ही सही वह बलात्कार और रेप जैसे अपराध कर बैठता है। जब प्यास बुझाने के साधन आसपास ही मौजूद होंगे तब ऐसे अपराधों से भी निजात मिलेगी।

ऐसे कर्इ सवाल हैं जिससे हम मुंह नहीं मोड़ सकते। कहीं इसे कानूनी मान्यता देने पर हमारे देश की हालत भी पश्चिमी देशों जैसी तो नहीं हो जाएगी जहां भोगियों की भरमार हो गर्इ है। क्या हमारे देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी? क्या कोर्इ इस बात की गारंटी ले सकता है कि भारत जहां हर चीज बिकाऊ है और जहां कानून बनते ही तोड़ने के लिए है वहां इस कानून का पालन होगा? क्या हम सच में तैयार है इसे अपनाने के लिए?

सवाल तो कर्इ खड़े हो जाते हैं लेकिन असल बात तो यह है कि जितना खाना बढे़गा उतनी भूख भी बढ़ेगी। इसलिए इसे कानूनी मान्यता देते समय महिलाओं और बच्चों का सबसे ज्यादा ध्यान रखना होगा। कहीं ऐसा न हो कि दिखावे के चलते हमें भी पश्चिमी देशों की तरह नंगी सभ्यता वाला देश करार दिया जाए।