स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन

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Swami Vivekanandaनई दिल्ली। कलकत्ता में 12 जनवरी 1863 को जन्मे स्वामी विवेकानंद की आज 150वीं जयंती है। युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने विवेकानंद ने दिए अनमोल विचार :-

हे सखे, तुम क्यों रो रहे हो? सब शक्ति तो तुम्हीं में हैं। हे भगवान्, अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप को विकसित करो। ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं। जड़ की कोई शक्ति नहीं प्रबल शक्ति आत्मा की है। हे विद्वान! डरो मत्य तुम्हारा नाश नहीं है, संसार-सागर से पार उतरने का उपाय है। जिस पथ के अवलम्बन से यती लोग संसार.सागर के पार उतरे है, वही श्रेष्ठ पथ मैं तुम्हें दिखाता हूँ!

बड़े-बड़े दिग्गज बह जाएँगे। छोटे-मोटे की तो बात ही क्या है! तुम लोग कमर कसकर कार्य में जुट जाओ, हुंकार मात्र से हम दुनिया को पलट देंगे। अभी तो केवल मात्र प्रारम्भ ही है। किसी के साथ विवाद न कर हिल-मिलकर अग्रसर हो, यह दुनिया भयानक है, किसी पर विश्वास नहीं है। डरने का कोई कारण नहीं है, माँ मेरे साथ हैं, इस बार ऐसे कार्य होंगे कि तुम चकित हो जाओगे। भय किस बात का? किसका भय? वज्र जैसा हृदय बनाकर कार्य में जुट जाओ।

तुमने बहुत बहादुरी की है। शाबाश! हिचकने वाले पीछे रह जाएँगे और तुम कूद कर सबके आगे पहुँच जाओगे। जो अपने उद्धार में लगे हुए है, वे न तो अपना उद्धार ही कर सकेंगे और न दूसरों का। ऐसा शोरगुल मचाओ कि उसकी आवाज दुनिया के कोने-कोने में फैल जाए। कुछ लोग ऐसे है, जोकि दूसरों की त्रुटियों को देखने के लिए तैयार बैठे है, किन्तु कार्य करने के समय उनका पता नहीं चलता है। जुट जाओ, अपनी शक्ति के अनुसार आगे बढ़ो। इसके बाद मैं भारत पहुँच कर सारे देश में उत्तेजना फूँक दूँगा। डर किस बात का है? नहीं है, नहीं है, कहने से साँप का विष भी नहीं रहता है। नहीं नहीं कहने से तो ‘नहीं’ हो जाना पड़ेगा। खूब शाबाश! छान डालो सारी दुनिया को छान डालो! अफसोस इस बात का है कि यदि मुझ जैसे दो – चार व्यक्ति भी तुम्हारे साथी होते तमाम संसार हिल उठता। क्या करूँ धीरे-धीरे अग्रसर होना पड़ रहा है। तूफान मचा दो तूफान!

किसी बात से तुम उत्साहहीन न होओय जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? यदि तुम अपनी अन्तिम साँस भी ले रहे हो तो भी न डरना। सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो।

लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दाए लक्ष्मी तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहान्त आज हो या एक युग मेंए तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो।

श्रेयांसि बहुवि? नि अच्छे कर्मों में कितने ही वि? आते हैं। प्रलय मचाना ही होगा, इससे कम में किसी तरह नहीं चल सकता। कुछ परवाह नहीं।

दु‍निया भर में प्रलय मच जाएगाए वाह! गुरु की फतह! अरे भाई श्रेयांसि बहुवि? निए उन्ही वि? की रेल पेल में आदमी तैयार होता है। मिशनरी फिशनरी का काम थोडे ही है जो यह धक्का सम्हाले! बड़े-बड़े बह गएए अब गडरिये का काम है जो थाह ले? यह सब नहीं चलने का भैया, कोई चिन्ता न करना।

सभी कामों में एक दल शत्रुता ठानता है; अपना काम करते जाओ किसी की बात का जवाब देने से क्या काम? सत्यमेव जयते नानृतंए सत्येनैव पन्था विततो देवयानः (सत्य की ही विजय होती है, मिथ्या की नहींय सत्य के ही बल से देवयानमार्ग की गति मिलती है।) धीरे-धीरे सब होगा। वीरता से आगे बढ़ो। एक दिन या एक साल में सिध्दि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ़ रहो। स्थिर रहो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो।

आज्ञा-पालन करो। सत्य, मनुष्य .. जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो .. व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं।

इस तरह का दिन क्या कभी होगा कि परोपकार के लिए जान जाएगी? दुनिया बच्चों का खिलवाड़ नहीं है। बड़े आदमी वो हैं जो अपने हृदय-रुधिर से दूसरों का रास्ता तैयार करते हैं, यही सदा से होता आया है। एक आदमी अपना शरीर.पात करके सेतु निर्माण करता है, और हजारों आदमी उसके ऊपर से नदी पार करते हैं। एवमस्तु एवमस्तु, शिवोहम् शिवोहम् (ऐसा ही हो, ऐसा ही हो- मैं ही शिव हूँए मैं ही शिव हूँ।) मैं चाहता हूँ कि मेरे सब बच्चे, मैं जितना उन्नत बन सकता थाए उससे सौगुना उन्न्त बनें। तुम लोगों में से प्रत्येक को महान शक्तिशाली बनना होगा- मैं कहता हूँ, अवश्य बनना होगा।

आज्ञा.पालन, ध्येय के प्रति अनुराग तथा ध्येय को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सदा प्रस्तुत रहना .. इन तीनों के रहने पर कोई भी तुम्हें अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकता।

मन और मुँह को एक करके भावों को जीवन में कार्यान्वित करना होगा। इसी को श्री रामकृष्ण कहा करते थे, “भाव के घर में किसी प्रकार की चोरी न होने पाए।” सब विषयों में व्यवहारिक बनना होगा। लोगों या समाज की बातों पर ध्यान न देकर वे एकाग्र मन से अपना कार्य करते रहेंगे क्या तुने नहीं सुना, कबीरदास के दोहे में है- “हाथी चले बाजार में, कुत्ता भोंके हजार साधुन को दुर्भाव नहिं, जो निन्दे संसार” ऐसे ही चलना है। दुनिया के लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना होगा। उनकी भली बुरी बातों को सुनने से जीवन भर कोई किसी प्रकार का महत् कार्य नहीं कर सकता।

अन्त में प्रेम की ही विजय होती है। हैरान होने से काम नहीं चलेगा- ठहरो- धैर्य धारण करने पर सफलता अवश्यम्भावी है- तुमसे कहता हूँ देखना- कोई बाहरी अनुष्ठानपध्दति आवश्यक न हो- बहुत्व में एकत्व सार्वजनिन भाव में किसी तरह की बाधा न हो। यदि आवश्यक हो तो “सार्वजनीनता” के भाव की रक्षा के लिए सब कुछ छोडना होगा। मैं मरूँ चाहे बचूँ, देश जाऊँ या न जाऊँ, तुम लोग अच्छी तरह याद रखना किए सार्वजनीनता-

हम लोग केवल इसी भाव का प्रचार नहीं करते किए “दुसरों के धर्म का द्वेष न करना” नहीं, हम सब लोग सब धर्मों को सत्य समझते हैं और उन्का ग्रहण भी पूर्ण रूप से करते हैं हम इसका प्रचार भी करते हैं और इसे कार्य में परिणत कर दिखाते हैं सावधान रहना, दूसरे के अत्यन्त छोटे अधिकार में भी हस्तक्षेप न करना – इसी भँवर में बडे.बडे जहाज डूब जाते हैं पुरी भक्ति, परन्तु कट्टरता छोडकरए दिखानी होगी, याद रखना उनकी कृपा से सब ठीक हो जाएगा। जिस तरह हो, इसके लिए हमें चाहे जितना कष्ट उठाना पड़े- चाहे कितना ही त्याग करना पडे यह भाव (भयानक ईर्ष्या) हमारे भीतर न घुसने पाए – हम दस ही क्यों न हों- दो क्यों न रहें- परवाह नहीं परन्तु जितने हों सम्पूर्ण शुद्धचरित्र हों।

नीतिपरायण तथा साहसी बनो, अन्तरूकरण पूर्णतया शुद्ध रहना चाहिए। पूर्ण नीतिपरायण तथा साहसी बनो। प्रणों के लिए भी कभी न डरो। कायर लोग ही पापाचरण करते है, वीर पुरूष कभी भी पापानुष्ठान नहीं करते यहाँ तक कि कभी वे मन में भी पाप का विचार नहीं लाते। प्राणीमात्र से प्रेम करने का प्रयास करो। बच्चोए तुम्हारे लिए नीतिपरायणता तथा साहस को छोड़कर और कोई दूसरा धर्म नहीं। इसके सिवाय और कोई धार्मिक मत-मतान्तर तुम्हारे लिए नहीं है। कायरता, पाप, असदाचरण तथा दुर्बलता तुममें एकदम नहीं रहनी चाहिए, बाकी आवश्यक वस्तुएँ अपने आप आकर उपस्थित होंगी।

शक्तिमान, उठो तथा सामर्थ्यशाली बनो। कर्म, निरन्तर कर्मय संघर्ष, निरन्तर संघर्ष! अलमिति। पवित्र और निःस्वार्थी बनने की कोशिश करो .. सारा धर्म इसी में है।

क्या संस्कृत पढ़ रहे हो? कितनी प्रगति हुई है? आशा है कि प्रथम भाग तो अवश्य ही समाप्त कर चुके होंगे। विशेष परिश्रम के साथ संस्कृत सीखो।

शत्रु को पराजित करने के लिए ढाल तथा तलवार की आवश्यकता होती है। इसलिए अँगरेजी और संस्कृत का अध्ययन मन लगाकर करो।

उठोए जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये।

उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।

ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है!

जिस तरह से विभिन्न स्त्रोतों से उत्पन्न धाराएं अपना जल समुद्र में मिला देती है, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है।

किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते है, तो जरूर बढ़ाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िएए अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिए, और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दीजिए।

कभी मत सोचिए कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। अगर कोई पाप है, तो वो यही हैय ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।

अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है।

एक शब्द में, यह आदर्श है कि तुम परमात्मा हो।

उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है,जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है,इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते है,वे दूर तक यात्रा करते हैं।

-जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।

विश्व एक व्यायामशाला है,जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।

इस दुनिया में सभी भेद.भाव किसी स्तर के है,न कि प्रकार के, क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है।

हम जितना ज्यादा बाहर जायें और दूसरों का भला करें, हमारा ह्रदय उतना ही शुद्ध होगाए और परमात्मा उसमे बसेंगे।