जानिये क्यों आसान नहीं है मेड इन चाइना का बायकॉट

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नई दिल्ली: उरी हमले के बाद चीन का भारत के खिलाफ की गई घटिया हरकतों ने देश में राष्ट्रवादी भावनाओं को चरम सीमा पर ला खड़ा कर दिया है । आपको बता दें कि चीन परोक्ष रूप से पाकिस्तान को समर्थन देता रहा है, ऐसे में देशभर में इन दिनों चीनी सामान की खरीदी के खिलाफ माहौल बना हुआ है।

सोशल मीडिया पर तो इसके खिलाफ जमकर माहौल बना हुआ है, लेकिन इंडियास्पेंड एजेंसी के आकलन के मुताबिक भारत में चीनी सामान के विरोध को लेकर जो अभियान चलाया जा रहा है, वह सफल नहीं हो पाएगा।

एजेंसी के मुताबिक चीन भारत के सबसे बड़े ट्रेड पार्टनर्स में से एक है। वर्ष 2011-12 में भारत के कुल आयात में चीन का स्थान दसवां था, वहीं फिलहाल यह स्थान छठा अब हो गया है।

कुल मिलाकर भारतीय व्यापारी चीन से बड़े स्तर में सामान को आयात कर रहे हैं, जबकि चीन से होने वाले आयात का करीब आधा भी हम निर्यात नहीं कर पा रहे हैं। बीते दो साल में भारत में चीन उत्पादों की बिक्री 20 फीसदी बढ़ी है, वहीं बीते पांच साल की बात करें तो पांच फीसदी की दर से बढ़ी है। यह करीब 61 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है।

भारत चीन से इलेक्ट्रानिक्स सामान, सेटअप बॉक्स, सेलफोन, लैपटॉप, सोलर सेल, की-बोर्ड, ईयरफोन, हेडफोन जैसी चीजों का आयात ज्यादा करता है। वहीं भारत 2011 तक चीन को करीब 86 हजार करोड़ रुपए का कुल निर्यात करता था, जो 2015-16 में घटकर 58 हजार करोड़ रुपए तक आ गया है।

भारत खास तौर पर कपास, तांबा, पेट्रोलियम, इंडस्ट्रियल मशीनरी जैसे सामान चीन को निर्यात करता है। कुछ मिलाकर फिलहाल भारत चीन को जितना सामान बेचता है, उससे छह गुना सामान खरीद लेता है। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत चीन के लिए बहुत बड़ा बाजार है। ऐसे में चीनी सामान को बहिष्कार करने के मुहिम के सफल होने में संदेह नजर आ रहा है।