नये साल पर विशेष : वक़्त बिना जोड़ का एक ऐसा धागा है जो अनंत तक पसरा हुआ है

Like this content? Keep in touch through Facebook

2018चला गया और 2019 आ गया। लेकिन वह क्या चीज है जो एक सेंकेंड को दूसरे से, एक दिन को दूसरे दिन से और एक साल को दूसरे साल से अलग करती है। कुछ नहीं! वक़्त बिना जोड़ का एक ऐसा धागा है जो अनंत तक पसरा हुआ है। वे हम ही है जो इसे अपनी समझ से अच्छा सा नाम देते है और उन पर अपनी पसंद टिकाते हैं। फिर भी आइए जनाब नए साल की खुशियां मनाने के लिए तैयार हो जाएं क्योंकि सबसे अच्छा यही है।

 जो हम कर सकते हैं। यही हमारे पुरखों ने भी किया। जब उन्होंने जिंदगी को बरसों में बांटा। आप वक्त को किसी जंगली घोड़े की तरह अनाथ यूहीं भटकने नहीं दे सकते, अरूप नहीं छोड़ सकते, क्योंकि तब वह आप पर हावी हो जाएगा। बरसों की दूरियां अनंत में तबदील हो जाएगी। उसे दुश्मन बनने से रोकना है तो उसे बांट देना होगा लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वक्त के खिलाफ जंग करना इन्सान का ध्येय हो, आखिर खुशियां भी इसी वक्त में लिपटी आती है।

इसलिए वक्त होने का अहसास किया जाता है। उसके बीतने को याद करके, जाने का जश्न और आने का उत्सव मना कर। ऐसा नहीं है कि वक्त ही हमेशा हमारे साथ खेलता है, हम भी वक्त के साथ खेलते हैं।

यह ताकत सिर्फ इन्सान को ही मिली है जो उसे देवताओं की संतान और बाकी जीवों का राजा बनाती है। नये साल के दो पहलू हैं। एक उससे जुड़ी धार्मिक और बरस का पहला दिन। हर जगह नई उम्मीद, नई खुशी इसे त्योहार सरीखा बना देती है। माना जाता है कि आज से एक नई शुरूआत होने जा रही है जब देवताओं को खुश करने का एक और मौका मिलेगा।

लेकिन जैसा कि आप जानते हैं सभी धर्म प्रकृति पूजा से निकले हैं, जैसे सीजन में बदलाव, कुदरती घटनाएं और सुरज-चांद की बदली चाल, साल का रूप पहले जो भी रहा हो यह पता होने के बाद उसने ठोस शक्त अख्तियार कर ली होगी कि इतने दिन में इसी तरह 365 दिनों का सौर वर्ष बना।

हालांकि यह संभझने में काफी अरसा लगा कि इस दौरान धरती ने सूरज का एक चक्कर लगा लिया है। इस बरस की शुरूआत तो कही से भी हो सकती थी। कहते है कि पहले मार्च में कभी साल शुरू होता था। लेकिन वह तारीख जनवरी मान ली गई जिसका रिश्ता जीजस के पैदा होने के आठ दिन गुजर जाने से है। यह कुदरती हो रहे बरस पर आस्था के केवल लगाने का मामला है। माननीय इतिहास ऐसे ही एक्सचेंज की कहनी है। यह लेवलिंग कई तरह प्रैक्टिकल फायदे दिलाती है।

पहला और सबसे चालू फायदा तो यही है कि हम न्यू ईयर्स डे का इस्तेमाल एक टैग की तरह करते हुए अपनी जिंदगी में कुछ फर्क ला सकते हैं। यही वजह है कि न्यू ईयर्स रेजोल्यूशन का चलन सारी दुनियां में है और काफी जोरदार है।

नए साल को हाजिर-नाजिर मानकर अपने आय से किया गया यह वादा एक पवित्र लेकिन अधार्मिक गरिमा हासिल कर लेता है। जिसके नैतिक दबाव से पार जाना हम मुश्किल समझते हैं। इस दिन ज्यादातर लोग अच्छे बनने, फिट रहने परिवार के साथ ज्यादा वक्त बिताने या अधूरे काम पूरे करने की कसम उठाते हैं। उनमे से ज्यादातर पूरी नहीं होती लेकिन तो भी मुझे यकीन है कि युनिया को भला बनाए रखने में नये साल का हाथ जरूर रहता होगा।

तीसरा फायदा यह है कि वक्त को मैनेजबल बना लेना। उसके लगातार गुजरते पलों में तरतीब लाना यह एक लाईफ टूल भी है। टाईम का ट्रेक न रखे तो बहुत जल्द वह काबू से बाहर निकल जाता है। चीज इस कद्र गड़बड़ हो जाती है कि फिर उनके साथ बहने के अलावा कुछ नहीं सुझता। जबकि कामयाबी का राज यही है कि वक्त पूरा नहीं पड़ेगा अगर आप उसये इस्तेमाल करना नहीं जानेंगे तो ईसा के बाद का दो हजार दसवां इंसान के जीवन का कुछ लाख हजारवां और इस धरती का चार करोड़ कुछ लाख, कुछ हजारवां साल वक्त का एक ताजा टुकड़ा भविष्य का एक अछूता पाठ हमारी ओर आ गया। क्या आप इस पर अपनी छाप छोड़ जाने के लिए तैयार हैं।