574 रुपये के लिए तीन साल से जंग लड़ रहे है एक बुजुर्ग।

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BUJURGकानपुर। देश में दीमक की तरह फैले भ्रष्टाचार को तो ख़त्म नहीं कर सकते, हां भ्रष्टाचार में लिप्त भ्रष्टाचारियों को सबकं जरुर सिख सकते हैं, ये कहना है कानपुर आवास विकास कालोनी के फेज-3 में रहने वाले 81 वर्षीय गुरु प्रसाद सक्सेना का, जो पिछले तीन साल से कानपुर नगर निगम के खिलाफ जंग लड़ रहे है, वो भी महज 574 रुपये के लिए।

गुरु प्रसाद सक्सेना की माने तो 28 मार्च 2009 में हाउस टैक्स के लिए कानपुर नगर निगम ने एक जी आई एस सर्वे कराया था, जिसमें उनका हाउस टैक्स करीब 1010 रुपये का हाउस टैक्स बिल आया था, मगर गुरु प्रसाद ने यह कहकर इस मानने से इंकार कर दिया कि उनका घर इ डब्लू एस यानि दुर्बल आय वर्ग की श्रेणी में आता है और इनका मकान कुल 50 वर्ग मीटर के प्लाट में ही बना है, गुरु प्रसाद सक्सेना जी ने इस बिल की शिकायत उस समय के तत्कालीन नगर आयुक्त को लिखित में शिकायत दर्ज कराई थी, तब नगर आयुक्त ने इनके मकान की नाप करवाने के साथ बिल को भी संशोधित करने की बात कही थी।

इनकी माने तो मकान का नाप तो नहीं लिया गया, हां 15 दिनों के अन्दर इनके पास दो संशोधित बिल, एक 747 रुपये का और दूसरा 551 रुपये का बिल जरूर आ गया। नगर निगम की लापरवाही पर गुरु प्रसाद सक्सेना जी ने, एक बार फिर तत्कालीन नगर आयुक्त को पत्र लिखा और बिल के बारे में अवगत कराया, मगर हुआ कुछ नहींए तब इन्होने उस समय के तत्कालीन कमिश्नर को भी पत्र लिखा और नगर निगम के लापरवाही से उनको अवगत कराया, गुरु प्रसाद यही नहीं रुके इन्होने इसकी शिकायत प्रदेश के नगर विकास मंत्री से की, मगर नतीजा शिफर ही रहा।

करीब एक साल के बाद 23 फ़रवरी 2010 को इनके पास नगर निगम का चौथा हाउस टैक्स का बिल आया, जो साल 2008-09 और 2009-10 का कुल 979 रूपए का था, जिसमें 928 रुपया हाउस टैक्स, 51 रुपया टैक्स को जोड़ा गया थाए जबकि इस बिल में कोई छूट नहीं दी गयी थी, एसे में गुरु प्रसाद सक्सेना ने पूरे बिल का भुगतान साल 2010 में कर दिया।

मगर नगर निगम की लापरवाही से नाराज़ गुरु प्रसाद सक्सेना ने इस दौरान कागजी लड़ाई में खर्च हुए करीब 430 रुपया, 51 रुपया ब्याज के और 93 रुपया बिल पर मिलने वाले छूट को जोड़ कर कुल 574 रुपये की लेने की जंग नगर निगम के खिलाफ छेड़ दी। पिछले तीन सालों से ये बुजुर्ग नगर निगम के चक्कर काट रहा है मगर इनके हौसले पस्त नहीं हुए है।

उधर नगर निगम भी अपनी गलती को मानते हुए उनके खर्च हुए 574 रूपये को लौटाने का आश्वासन दे डाला, और 14 दिसम्बर 2012 को इनको रुपये इनके बैंक के खाते में जमा करा दिए, और इसकी सूचना नगर निगम ने गुरु प्रसाद को वरवली दे दी, मगर गुरु प्रसाद का कहना है कि इनके खाते में कोई रुपया नहीं आया, और ना ही नगर निगम बता रहा है कि इनके किस बैंक के खाते में रुपये को जमा किया गया है।

जब नगर निगम से कोई जबाब नहीं मिला तो बुजुर्ग सक्सेना ने आर टी आई के जरिये ये पता लगाने की कोशिश किया, जिसके जबाब में 14 फ़रवरी 2012 को नगर निगम ने जो पत्र दिया उसमें 574 रुपये लौटाने की बात तो कही है मगर इनके रुपये को किस अकाउंट और किस बैंक में जमा किया है ये स्पस्ट नहीं किया है। एसे में इसको लेकर गुरु प्रसाद इसको लेकर उस समय के तत्कालीन कानपुर कमिश्नर, नगर आयुक्त एस के चौहान, और राज्य के नगर विकास मंत्री तक को कई बार फिर लिख चुके है, मगर इसका कोई फायदा नहीं हुआ।

उधर जब इस पूरे मसाले पर उप नगर आयुक्त उमा कान्त त्रिपाठी से बात किया गया तो उनका जबाब था कि उनका जो निकल रहा था उन्हें दे दिया गया है, और ये कोई बड़ा इशू नहीं है, मगर उप नगर आयुक्त त्रिपाठी जी ने ये नहीं बताया कि बुजुर्ग सक्सेना जी के किस बैंक अकाउंट में उनके रुपये को जमा कराया गया है।

मगर 81 वर्षीय गुरु प्रसाद का कहना है कि वो इनकी मेहनत का रुपया है और वो इसको हर हाल में ले कर रहेंगेए इसके लिए गुरु प्रसाद आज भी नगर निगम का हफ्ते में तीन दिन चक्कर लगा ही देते है। इनका कहना है कि लापरवाही नगर निगम ने की थी, जिसके चलते इनका कागजी कार्यवाही में इतनी रकम खर्च हुई है, और ये 574 रुपया इनके हक़ का है, जो ये ले कर रहेंगे।