पिछले 5 वर्षों से दहेज़ के लिए पत्नी को मानसिक व शारीरिक चोट पहुँचाने वाले धीरेन्द्र सिंह को दिल्ली पुलिस ने किया गिरफ्तार

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ये सख्स पत्नी से अलग होकर बदला लेने के लिए उसके खिलाफ सोशल मीडिया पर लिखता है घिनौनी और शर्मनाक बाते

पत्नी चाहती है पति से तलाक लेकिन पति और उसके परिवार वालों ने किया तलाक देने से मना, कहा वह तलाक नहीं देगा क्योकि वो नहीं चाहता कि उसकी पत्नी कभी खुश रहे।

नई दिल्ली : एक तरफ जहाँ हमारे समाज में स्त्री-पुरुष को बराबरी का हक़ देकर महिलाओं को पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चलने का दावा किया जाता है तो वही दूसरी और आज भी कुछ पुरषों के दिमाग में महिलाओ के प्रति सड़ांध भरी हुई है।

महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा की जड़ें हमारे समाज तथा परिवार में गहराई तक जम गई हैं। इसे व्‍यवस्‍थागत समर्थन भी मिलता है। घरेलू हिंसा के खिलाफ यदि कोई महिला आवाज मुखर करती है तो इसका तात्‍पर्य होता है अपने समाज और परिवार में आमूलचूल परिवर्तन की बात करना। प्राय: देखा जा रहा है कि घरेलू हिंसा के मामले दिनों-दिन बढ्ते जा रहे हैं। परिवार तथा समाज के संबंधों में व्‍याप्‍त ईर्ष्‍या, द्वेष, अहंकार, अपमान तथा विद्रोह घरेलू हिंसा के मुख्‍य कारण हैं। प्रक़ति ने महिला और पुरूष की शारीरिक संरचनाएं जिस तरह की हैं उनमें महिला हमेशा नाजुक और कमजोर रही है, वहीं हमारे देश में यह माना जाता रहा है कि पति को पत्नि पर हाथ उठाने का अधिकार शादी के बाद ही मिल जाता है। आदिकाल से आजतक शोषण, आरोप, हत्या बलात्कार का दंश झेलती नारी आखिर कब तक घिनौनी मानसिकता का शिकार होती रहेगी? न वह घर से बाहर सुरक्षित है और न ही घर परिवार, समाज में सुरक्षित है।

ऐसा ही एक मामला दिल्ली में रहने वाली महिला के साथ हुआ है जो मूल रूप से गाजीपुर की रहने वाली हैं। इस महिला का विवाह पुरे हिन्दू रीति रिवाज के साथ 29 नवम्बर 2012 में बिहार के बारहिम्पुर गाँव, भगवान पुर हट, थाना मसरख, जिला छपरा के रहने वाले धीरेन्द्र सिंह पुत्र दिनेश सिंह, पौत्र गंगा सिंह नाम के सख्स के साथ हुआ था।

समाज की कुरीतियों का शिकार हुई इस महिला ने बताया कि शादी के बाद विदाई करा कर मेरा पति मुझे दिल्ली में रहने वाली अपनी बहन के घर ले गया। जहाँ शादी के दुसरे दिन से ही उसने मुझे मायके से दहेज में सामान और पैसे लाने के लिए मेरे साथ जानवरों की तरह पार पिट करना शुरू कर दिया और मेरे मायके वालों को गलियां देता था। फिर कुछ दिनों के बाद उसने मुझे अपने साथ गुजरात के भुज में रह रहे अपने माता-पिता के घर ले गया वहाँ भी वो मेरे साथ आए दिन पार-पिट करता था। ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा और हालात बद से बत्तर होते चले गये। मेरे साथ मेरा पति जितनी भी मार पिट करता था बजाए इसे रोकने के उसके माता-पिता भी इसमें उसका साथ दिया करते थे।

पीड़िता ने बताया कि वक़्त बितता रहा लेकिन मुझ पर मेरे पति के अत्याचार मार-पिट ख़तम होने का नाम नहीं ले रहे थे। माहिला बताती है कि कुछ समय तक अपने माता-पिता के साथ रखने के बाद वह मुझे अपने साथ मुंबई लेकर चला गया जहाँ वो नौकरी करता था। वहां भी उसने मुझे हर तरह से शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी। महिला ने बतया कि मैं ये सब बहुत दिनों तक इसलिए बर्दास्त करती रही कि शायद आगे चलकर मेरे पति का मेरे प्रति जानवरों जैसा व्यवहार बदल जाए वो ठीक हो जाये और हम भी अन्य शादी शुदा लोगों की तरह एक हँसी ख़ुशी ज़िन्दगी जी सके। लेकिन मेरा ये सपना सपना ही रह गया और एक दिन मेरे सब्र का बांध टूट गया। तब मैं अपनी जान बचाकर वापस अपने पता-पिता के घर वाराणसी लौट कर आ गई।

महिला ने बतया जब मैं अपने माता–पिता के घर आकार रहने लगी उसके बाद भी मेरे पति ने मुझे परेशां करने के लिए घटिया हथकंडे अपनाने लगा। वो मुझ तक पहुँचने में असफल रहा तो उसने सोशल मिडिया का सहारा लेना शुरू कर दिया। वह फेसबुक पर मेरी फोटो लगा कर मुझे गन्दी गन्दी गालियाँ देने लगा। मेरे साथ – साथ वो फेसबुक पर मेरे भाइयों मेरे माता –पिता के साथ परिवार के अन्य सदस्यों का नाम लेकर भी गालियाँ देता था। सबको फ़ोन पर मैसेज में भी गालियाँ लिख कर भला बुरा कहा करता था।

जब मेरे परिवार वालों को ये सब बर्दास्त नहीं हुआ तो मेरे पिता जी ने वाराणसी में 18 नवम्बर 2013 को पति धीरेन्द्र सिंह और मेरे ससुराल वालों के खिलाफ 498A,503, घरेलू हिंसा (domestic violence ) 3/4dp act के अंतर्गत FIR दर्ज करवा दिया।

केश दर्ज होने के बाद और कोर्ट से वारंट होने के बावजूद भी पति धीरेन्द्र और उसके माता-पिता कभी कोर्ट में उपस्थित नहीं हुए और न ही वाराणसी पुलिस ने धीरेन्द्र को गिरफ्तार किया। ये बात यह साबित करती है कि हमारे देश की पुलिस और प्रशासन महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा के खिलाफ कितनी लापरवाह और बेफिक्र रहती है।

जब पुलिस की तरफ से धीरेन्द्र पर कोई कार्यवाई नहीं की गई तब वो और भी निडर होकर मेरे खिलाफ सोशल मीडिया पर मुझे बदनाम करने के लिए गन्दी गन्दी गालियाँ देता रहा है। वाराणसी पुलि प्रशासन ने उसके खिला एक्शन लेने के बजाय उसका मनोबल और भी बढ़ा दिया।

इसके बाद जब उसकी घटिया हरकते बढती ही चली गई फिर ऊसके खिलाफ मेरे परिवार वालों और मेरी तरफ से उसके खिलाफ 354D,504,509,67,67A ,IT Act का मुकदमा दर्ज किया और उसके खिलाफ नवम्बर में NBW (Non-bailable warrant) जारी किया गया। इसके बाद भी न ही वाराणसी पुलिस ने पति धीरेन्द्र सिंह को हिरासत लिया और न ही वाराणसी कोर्ट ने कोई एक्शन लिया।

लड़की वालों कि तरफ से लगातार शिकायत दर्ज कराने के बाद लड़के के पिता दिनेश सिंह ने फ़ोन करके लड़की और लड़की के परिवार वालों को डराने धमकाने और धमकियां देने लगे। ताकि लड़की के परिवार वाले पुलिस के पास ना जाएँ।

यहाँ यह पता चलता है कि सरकार नारी उत्थान और रक्षा के वादे तो बड़े-बड़े करती है, लेकिन इन वादों की हकीकत तब मुखर होकर सामने आ जाती है जब किसी बहन बेटी के साथ पुरषों की ऐसी घटिया हरकतों का शिकार पाया जाता है और पुलिस प्रशासन मूक रहकर तमाशा देखती रहती है।

जब वाराणसी पुलिस और कोर्ट से मुझे कोई सहयोग नहीं मिला तब मैंने दिल्ली कि तरफ रुख किया। मैं दिल्ली आकर रहने लगी और तब मैंने दिल्ली पुलिस से न्याय की गुहार लगाई। यहाँ धीरेन्द्र सिंह के खिलाफ FIR दर्द करवाया तब दिल्ली पुलिस ने एक्शन लिया और धीरेन्द्र सिंह को हिरासत में ले लिया है और अब वो तिहाड़ जेल में है। जिसपर दिल्ली के साकेत डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में केस चल रहा है।

पिछले 4 वर्षों से न्याय के लिए भागते-भागते अब कही जाकर मेरी आवाज़ सुनी गई। क्या यही है हमारे देश का प्रशासन जो मुझे न्याय के लिए वाराणसी से निराशा हाथ लगी तो दिल्ली प्रशासन की और रुख करना पड़ा। इसके बाद भी कोर्ट की तारीख में जज साहब के अजीबो गरीब सवाल और बाते मुझे देश की न्यायपालिका पर सवाल खड़े करने पर मजबूर कर देती है।  क्या यही है न्याय और न्यायपालिका की परिभाषा? और महिलाओं को समाज में बराबरी का हक़ दिलाने वाली खोखली बाते।

कहने को तो देश में मौजूद कानून में ऐसे घटिया हरकतें करने वाले दुराचारियों के खिलाफ सजा दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन कानून के रखवालों की नियत ठीक हो तब न। जब कोई पीड़ित महिला न्याय पाने की उम्मीद से पुलिस स्टेशन और कोर्ट की सीढियां चढ़ती है तो वहां बैठे कानून के रखवाले उससे ऐसे घिनौने सवाल पूछते हैं, जिन्हें सुनकर शर्म भी शायद शर्मसार हो जाये। क्या महिलाओं के लिए कानून का यही मतलब है? हमारे देश में यह बात तो हमेशा से ही बहस का मुद्दा रहा है। जो हमारे देश की महिलाओं के की सुरक्षा का दावा करने वाले प्रशासन पर सवाल खड़े करती है।

यह हमारे समाज कि कैसी विडंबना है कि एक ओर नारी को पूजनें की बात कही जाती है, वहीँ दूसरी ओर असमाजिक तत्व उसे रौंदने से बाज नही आते हैं। जरा सोचिये की इस त्रासदी की शिकार महिला के दिल पर क्या गुजरती होगी। उसके मन कि पीड़ा वही समझ सकती है।

ऐसी स्थिति में जरुरत है समाज के सभ्य कहे जाने वाले लोगों को आगे बढ़ कर महिलाओं की सुरक्षा और उनके मान –सम्मान की रक्षा के लिए कदम बढायें। जिससे औरतों को पैर कि जूती समझने वाले सड़ी-गली मानसिकता के शिकार पुरषों को सबक सिखया जा सके। क्योकि हर घर में बहन बेटियां हैं। आप ऐसे ही चुप रह कर ये सब तमाशा देखते रहे तो कल आप के घर कि महलाएं भी ऐसी ओछी मानसिकता वाले पुरषों का शिकार हो सकती है।