बिहार चुनाव में नीतीश और तेजस्वी के बाद उपेंद्र कुशवाहा भी बने CM फेस

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पटना : बिहार में महागठबंधन से अलग राह लेने वाले रालोपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा की एनडीए में भी बात नहीं बनी। तीन दिन तक दिल्ली में डेरा डालकर उन्होंने इसका भरपूर प्रयास किया। फिर उन्होंने अलग राह तलाशनी शुरू कर दी थी। आज मंगलवार को उन्होंने एक और नए गठबंधन का ऐलान किया है। मायावती की बसपा और जनवादी सोशलिस्‍ट पार्टी के साथ गठबंधन की घोषणा की है। मायावती ने ट्वीट कर बताया कि अगर यह गठबंधन जीतता है तो उपेंद्र कुशवाहा ही मुख्यमंत्री बनेंगे। मायावती ने कहा कि उपेंद्र ही इस गठबंधन का नेतृत्व करेंगे। 2015 के विधानसभा चुनाव में भी रालोसपा एनडीए के साथ मिलकर ही लड़ी। इस चुनाव में रालोसपा को 23 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से वो सिर्फ दो सीट ही जीत सकी।

गठबंधन की घोषणा के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने आरोप लगाया कि महागठबंधन जिस तरीके से चल रहा है, उससे मौजूदा सरकार के कुशासन से बिहार को मुक्त कराना संभव नहीं था। कहा कि इस सरकार ने बड़े-बड़े वायदे किए लेकिन दवाई, कमाई, पढ़ाई, सिंचाई हर मोर्चे पर फेल रही। आरोप लगाया कि बिहार के दोनों गठबंधन पर भाजपा का कंट्रोल है। राजद पर हमला बोलते हुए कहा कि हम बिहार की जनता से शिक्षा पर बात कैसे करते, जब महागठबंधन का मुखिया ही मैट्रिक फेल हो। तत्कालीन मुख्यमंत्री अपने दोनों बेटों को मैट्रिक तक नहीं करा पाए। हमने कोशिश की कि राजद अपना ढर्रा बदले। नेतृत्व बदले, लेकिन सुनवाई नहीं हुई तो हमने अपनी राह बदल ली। उपेंद्र ने आरोप लगाया कि दोनों गठबंधन की राजनीति पर भाजपा का कंट्रोल है। उन्होंने अबकी बार, शिक्षा वाली सरकार का नारा दिया। कहा कि नए साथियों का स्वागत है। सभी 243 सीटों पर लड़ेंगे।

उपेंद्र यादव पहले रह चुके हैँ एनडीए का हिस्सा :

रालोसपा पहले एनडीए का हिस्सा थी, लेकिन अगस्त 2018 में अलग हो गई थी। 2015 का चुनाव भी रालोसपा ने एनडीए के साथ मिलकर ही लड़ा था। लेकिन, 2019 का लोकसभा चुनाव उसने राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में शामिल होकर लड़ा। 2019 में रालोसपा ने बिहार की 5 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। उपेंद्र कुशवाहा पहले जदयू में थे, लेकिन नीतीश से अनबन के चलते उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी। जिसके बाद उन्होंने 3 मार्च 2013 को रालोसपा बना डाली। लेकिन, जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया तो नीतीश एनडीए से अलग हो गए और उपेंद्र जिस एनडीए की सरकार को उखाड़ फेंकने की बात कर रहे थे, उस एनडीए के साथ हो गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में रालोसपा 3 सीटों पर लड़ी और तीनों ही जीत गई। उसके बाद 2015 के विधानसभा चुनाव में भी रालोसपा एनडीए के साथ मिलकर ही लड़ी। इस चुनाव में रालोसपा को 23 सीटें मिलीं, जिसमें से वो सिर्फ दो सीट ही जीत सकी। उपेंद्र के लिए जुलाई 2017 में स्थितियां तब बदलनीं शुरू हो गईं, जब नीतीश एक बार फिर एनडीए का हिस्सा हो गए। एनडीए में रहते हुए उपेंद्र कुशवाहा लगातार नीतीश का विरोध करते रहे और आखिरकार अगस्त 2018 में रालोसपा एनडीए से अलग हो गई।