दिवाली पर सैनिकों से मिलने सियाचिन पहुंचे PM नरेंद्र मोदी

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दिवाली के मौके पर सेना के जवानों से मिलने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके बीच सियाचिन पहुंच गए हैं और वहां संदेश दिया कि हर भारतीय उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि पीएम ग्लेसियर के उत्तरी इलाकों में बने बेस कैंप में सेना जवानों के साथ बातचीत करेंगे। मोदी वहां पर 45 मिनट तक रुकेंगे, इसके बाद वह श्रीनगर के लिए रवाना हो जाएंगे।

दिवाली के त्योहार पर जम्मू कश्मीर के बाढ़ प्रभावित लोगों के साथ कुछ क्षण बिताने के लिए श्रीनगर जाने से पूर्व मोदी ने सियाचिन का दौरा किया। दौरे पर रवाना होने से पहले मोदी ने ट्विट किया, ‘मित्रों, मैं सियाचिन ग्लेशियर जा रहा हूं। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मैं इस विशेष दिन पर हमारे बहादुर सैनिकों के साथ कुछ समय बिता पाउंगा।’ उन्होंने कहा, ‘मैं प्रत्येक भारतीय की ओर से यह संदेश लेकर सियाचिन जा रहा हूं कि हम आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।’

देश के पहरेदारों की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, चाहे यह उंचाई हो या भीषण ठंड, हमारे सैनिकों को कोई नहीं रोक सकता। वे वहां खड़े हैं और देश की सेवा कर रहे हैं। वे हमें सही मायने में गौरवान्वित कर रहे हैं। सियाचिन के संक्षिप्त दौरे के बाद मोदी बाढ़ पीड़ितों से मिलने के लिए श्रीनगर जाएंगे।

मोदी ने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर लिखा, ‘सियाचिन दौरे के बाद मैं श्रीनगर का अपना पूर्व निर्धारित दौरा जारी रखूंगा और हाल ही में आयी बाढ़ से प्रभावित लोगों के साथ समय बिताउंगा। उन्होंने कहा हर किसी को सियाचिन के कठिन हालात के बारे में जानकारी है। हर चुनौती से पार पाते हुए हमारे सैनिक अडिग खड़े हैं, हमारी मातृभूमि की रक्षा कर रहे हैं।

तबाही का भयानक मंजर देख चुके लोगों में प्रधानमंत्री की ये यात्रा उम्मीद की रोशनी लेकर आई है। लोगों को लगता है प्रधानमंत्री घाटी में आएंगे और उनके अच्छे दिन फिर से लौटे आएंगे। प्रधानमंत्री की यात्रा से उम्मीद राज्य सरकार में भी पैदा हुई है। मुख्यमंत्री को लगता है कि प्रधानमंत्री राहत का दिवाली गिफ्ट कश्मीर को जरूर देंगे।

अभी कुछ दिन पहले की बात है। धरती के इस जन्नत पर पानी प्रलय बन कर टूटा था। अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर घाटी का चेहरा बिगाड़ दिया था। इस बाढ़ में करीब 1 लाख लोगों के घर तबाह हुए थे। करीब 1.5 लाख मकानों को आंशिक नुकसान पहुंचा था। करीब 1 लाख लोग टेंटों में रहने को मजबूर हुए थे और करीब 6 लाख लोग आज भी बेघर हैं।