भ्रूण हत्या आखिर क्यों और कब तक?

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bhurnदेश में पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों की कम होती संख्या चिंता का विषय है। यह चिंता होना भी चाहिये क्योंकि जब हम मानव समाज की बात करते हैं तो वह दोनों पर समान रूप से आधारित है।

रिश्तों के नाम कुछ भी हों मगर स्त्री और पुरुष के बीच सामजंस्य के चलते ही परिवार चलता है और उसी से देश को आधार मिलता है। इस समय स्त्रियों की कमी का कारण ‘कन्या भ्रूण हत्या’ को माना जा रहा है जिसमें उसके जनक माता, पिता, दादा, दादी, नाना और नानी की सहमति शामिल होती है। यह संभव नहीं है कि कन्या भ्रूण हत्या में किसी नारी की सहमति न शामिल हो।

अगर हम देश की राजधानी दिल्ली की ही बात करे तो दिल्ली में लिंगानुपात के ताजा आंकड़े चिंताजनक है और स्थिति की भयावह को उजागर करते हैं। सेंटर फार सोशल रिसर्च (सीएसआर) ने व्यापक अभियान चलाले के बाद ये दावा किया है कि दिल्ली-एनसीआर में तमाम कोशिशों के बावजूद कन्या भ्रूण हत्या अब भी जारी है। इस पर समय रहते गंभीरता नहीं बरती गई तो भविष्य में भयावह स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।

विडंबना है कि शिक्षित व शहरीय समाज में इस तरह की कुरीति व अपराध अधिक देखने को मिल रहे हैं। सोच में जल्द बदलाव नहीं आया तो बहू के लिए तरसना पड़ सकता है, हरियाणा जैसे कई राज्यों में ये समस्या देखी जा सकती है।

गर्भ में लिंग परीक्षण पर रोक लगाने के लिए उसे गैर-कानूनी करार दिए जाने के बावजूद राजधानी में बड़ी संख्या में गर्भपात के मामले दर्शाते हैं कि कहीं कुछ गड़बड़ अवश्य है, जो पूरी व्यवस्था पर प्रश्नचिह्नन लगाते हैं। गत वर्ष सूचना के अधिकार के तहत दिल्ली में कन्या भ्रूण हत्या के बारे में मांगी गई जानकारी पर दिल्ली सरकार की ओर से दी गई सूचना के अनुसार दिल्ली में प्रतिदिन औसतन सौ गर्भपात हो रहे हैं।

हालांकि डाक्टर इन मामलों के पीछे आपातकालीन गर्भ निरोधक दवाओं की विफलता को जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन कन्या भ्रूण हत्या की अक्सर सामने आने वाली घटनाएं यह संकेत करती हैं कि इस मामले को कतई हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाने के लिए गर्भ में लिंग परीक्षण को गैर कानूनी करार दिया है। साथ ही जांच टीम बनाई गई है जो दिल्ली के विभिन्न अल्ट्रासाउंड सेंटरों की जांच करती है।

लेकिन इसके बावजूद गर्भपात के बड़ते मामले कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए की गई व्यवस्था की खामी की ओर संकेत करते हैं। सरकार, संबंधित विभाग व इससे जुड़ी एजेंसियों, समाजसेवियों को इस मामले को और गंभीरता से लेने की जरूरत है। पता लगाना चाहिए कि तेजी से घट रहे लिंगानुपात की वजह क्या है?

दरअसलए यह सिलसिला तब प्रारंभ हुआ जब देश के गर्भ में भ्रुण की पहचान कर सकने वाली ष्अल्ट्रासाउंड मशीनष् का चिकित्सकीय उपयोग प्रारंभ हुआ। दरअसल पश्चिम के वैज्ञानिकों ने इसका अविष्कार गर्भ में पल रहे बच्चे तथा अन्य लोगों पेट के दोषों की पहचान कर उसका इलाज करने की नीयत से किया था। भारत के भी निजी चिकित्सकालयों में भी यही उद्देश्य कहते हुए इस मशीन की स्थापना की गयी। यह बुरा नहीं था पर जिस तरह इसका दुरुपयोग गर्भ में बच्चे का लिंग परीक्षण कराकर कन्या भ्रुण हत्या का फैशन प्रारंभ हुआ उसने समाज में लिंग अनुपात की स्थिति को बहुत बिगाड़ दिया।

कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए हर स्तर पर किए जा रहे प्रयासों की भी गहन समीक्षा की जाए। लोगों को जागरूक करने के साथ लिंग परीक्षण करवाने में संलिप्त संस्थाओं व डाक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। कन्या भ्रूण हत्या सभ्य समाज पर एक कलंक है, जिसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता।