उत्तराखंडः बिना कफ़न ही दफन हो गए अनगिनत श्रद्धालु

कहते हैं कि ईश्वर के दर पर जो जाता है वो कभी खाली हाथ नहीं आता, ईश्वर उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करता है। अब ये कैसी ईश्वर की इच्छा जिसने ईश्वर के दर पर पहुंचे श्रद्धालुओं को कफन तक नसीब नहीं होने दिया। बिना कफन ही न जाने कितने ही श्रद्धालु धरती की कोख में समा गए हैं।

केदारनाथ धाम में आई तबाही के वजह से अकस्मात ही काल के मुंह में समाए अनगिनत भक्त्त ऐसे ही धरती की गोद में सोते रहेंगे, क्योंकि सरकार अभी यहां के मलबे के नीचे दबी लाशों को निकालने की जल्दबाजी नहीं करना चाहती। वैज्ञानिकों से विचार-विमर्श करने के बाद ही यहां मलबा हटाने पर विचार किया जाएगा। सतह पर मिलने वाले लाशों का दाह-संस्कार करने के बाद अब दूसरे चरण में क्षतिग्रस्त भवनों में फंसे लाशों को निकालकर उनका दाह-संस्कार किया जाएगा। इसके लिए स्लैब व लोहा काटने की मशीनों का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके बाद उन लाशों को निकाला जाना है, जो मलबे में गहरे दबे हुए हैं।

तबाही से जानमाल का सबसे अधिक नुकसान केदारनाथ घाटी में ही हुआ है। इस घाटी में सबसे अधिक लोग हताहत हुए हैं। मंदाकिनी के रौद्र रूप के चलते केदारनाथ मंदिर को छोड़ आसपास के भवन कई फीट मलबे में धंस गए हैं। नदी के अचानक विकराल रूप लेने से मंदिर परिसर में ही कई लोग फंस गए थे। आपदा के बाद मंदिर प्रांगण में जगह-जगह लाशें देखी गई। सरकार द्वारा इन लाशों को इकट्ठा कर हिन्दू धर्म के अनुरूप विधिवत दाह-संस्कार कराने के निर्देश दिए गए।

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इसके तहत पहले चरण में केदार घाटी जहां भी लाशें नजर आए, उनका दाह-संस्कार किया गया। भवनों में फंसे लाशों को निकालने के लिए उपकरण न होने के कारण इनका दाह-संस्कार नहीं किया जा सका। अब दूसरे चरण में केदार घाटी पहुंचने वाली टीम उपकरणों के जरिये इन लाशों को बाहर निकाल कर उनका दाह-संस्कार करेगी।

मौसम साफ होने पर यह उपकरण सेना के एम आई-17 हेलीकाॅप्टर से भेजे जाएंगे। आइजी कानून व्यवस्था, राम सिंह मीणा ने कहा कि अब भवनों में फंसे लाशों का दाह -संस्कार किया जाएागा। मलबे में दफन लाशों का निर्णय इसके बाद लिया जाएगा। अब देखते हैं किसकी लाश को कफन कब नशीब होगा? होगा भी या नहीं होगा किसको पता।

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