विश्व की सबसे ऊंची सरदार पटेल कीप्रतिमा का हुआ अनावरण , जानिये क्या है इस मूर्ति की खासियत

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नई दिल्ली : देश के पहले गृहमंत्री और सरदार पटेल के नाम से मश्हूर वल्लभ भाई पटेल के सम्मान में विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा का अनावरण हो गया है। दो भारतीय कंपनियों ने मिलकर 45 महीने में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी को तैयार किया है। यह हैं कंपनियां

विश्व के इस सबसे ऊंची (182 मीटर) प्रतिमा को दो देशी कंपनियों ने बनाया है। इस प्रतिमा को बनाने के लिए करीब 2979 करोड़ रुपये खर्च हुए, जिसमें से अधिकांश पैसा गुजरात सरकार ने दिया है। हालांकि केंद्र सरकार ने भी इस प्रोजेक्ट के लिए मदद दी थी।

गुजरात सरकार ने इसके लिए एक ट्रस्ट का गठन भी किया था। सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट के जिम्मे ही पूरी निर्माण प्रक्रिया थी। देश की दिग्गज इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी लार्सन एंड टुर्बो (एलएंडटी) और सरदार सरोवर नर्मदा निगम लिमिटेड के 250 इंजीनियर और 3400 मजदूरों ने मिलकर 3 साल 9 महीने में इस प्रतिमा को तैयार किया।

विश्व की नम्बर 1 प्रतिमा

182 मीटर (597 फुट) ऊंची ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा हो गई है। इसके बाद चीन का स्प्रिंग बुद्ध मंदिर (153 मीटर) दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है। जापान की उशिकु दायबुत्सु (120 मीटर) और अमेरिका की स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी (93 मीटर) का नंबर है।

नर्मदा बांध से 3.5 किलोमीटर दूर

यह स्टैच्यू नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध से 3.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। साधू हिल पर बनाए गए इस स्टैच्यू तक पहुंचने के लिए सड़क से एक पुल तैयार किया गया है। साथ ही पर्यटकों की सुविधा के लिए दोनों तरफ दो लिफ्ट भी लगाई गई हैं, जो कि ऊपर से करीब 7 किलोमीटर दूर तक नजारा दिखाएंगी।

मूर्ति में 24 हजार टन लोहे का इस्तेमाल

इस प्रतिमा के निर्माण में करीब 24 हजार टन लोहा (स्टील) का इस्तेमाल किया गया है। ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को बनाने में 5,700 मीट्रिक टन यानी करीब 57 लाख किलोग्राम स्ट्रक्चरल स्टील का इस्तेमाल हुआ। साथ ही 18,500 मीट्रिक टन छड़ का इस्तेमाल किया गया है। 18 हजार 500 टन स्टील नींव में और 6,500 टन स्टील मूर्ति के ढांचे में लगी।

1,850 टन कांसा बाहरी हिस्से में लगा है। 1 लाख 80 हजार टन सीमेंट कंक्रीट का इस्तेमाल निर्माण में किया गया, जबकि 2 करोड़ 25 लाख किलोग्राम सीमेंट का इस्तेमाल किया गया।

मूर्ति पर भूकंप, हवा का नहीं पड़ेगा असर

180 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाओं को झेल सकती है। इस स्टैच्यू के बेस में भी इंजीनियरिंग का कमाल देखने को मिला है। स्टैच्यू के बेस में चप्पल पहने पांव दिखाएं गए हैं। दोनों पैरों के बीच करीब 6.4 मीटर का गैप है। यह स्टैच्यू 6.5 रिक्टर के भूकंप को भी आसानी से झेल सकता है।