त्रिकोणीय मुकाबला, राजनीति की उठापटक की एक झलक

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kदेश  अपने उत्तराधिकारी की प्रतिक्षा में है। मुख्य चुनाव आयुक्त वी0 एस0 सम्पत ने सभी उम्मीदवारों से अनुशासित चुनाव लड़ने की अपील की है।

शान्तिपूर्ण मतदान सम्पूर्ण विश्व के एक अनुपम सन्देश देता है। हम स्वामी विवेकानन्द के उस उत्कृष्ट भारत का सपना देख रहे हैं क्या आगामी चुनाव में आषाढ़ मास-एक ऐसा ही युवराज देगा? क्या कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक, नागालैण्ड से लेकर पंजाब तक देश अपनी सीमाओं की रक्षा कर पायेगा? या फिर कूटनीतिज्ञ देशो की नीति से बचकर एक समृद्ध भारत बना पायेगा?

हम सब इसी की प्रतिक्षा में है बल्कि ये निराशाजनक है राजनीतिक दल मूल समस्याओं पर ध्यान देने और उसका समाधान खोजने से बच रहे है लेकिन अगर भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना है तो यह लुक्का-छिपी का खेल बन्द करना पड़ेगा। अगर नजर डाले, सम्पूर्ण भारत की राजनीति पर क्या उथल-पुथल चल रही है, भाजपा कह रही है कि मोदी लहर है, व कांग्रेस इसका विरोध कर रही है वहीं केजरीवाल पूरी तरह इसका खण्डन कर रहे हैं। आइये नजर डालें 543 सीटों में क्या कुछ घटित हो रहा है?
      
सबसे पहले 80 लोकसभा सीट रखने वाले प्रदेश की चर्चा करते हैं। प्रदेश की राजधानी लखनऊ मेें ब्राहमणों का वोट बैंक सबसे अधिक है, लाल जी टण्डन का टिकट कटते ही पूरी तरह से लखनऊ विरोध में आ गया, लेकिन वही कसमकश में आखिर राजनाथ सिंह लखनऊ से भाजपा लोकसभा प्रत्याशी घोषित किये गये, उधर कांग्रेस से रीता बहुगुणा जोशी बराबर अपनी चुनौती पेश कर रही है। टण्डन जी के खुलकर राजनाथ जी के साथ आने से लखनऊ सीट एक बार फिर कमल खिलाने का प्रयास कर रही है। लखनऊ से सटे कानपुर की स्थिति कुछ ऐसी ही है। भाजपा आगन्तुक उम्मीदवार मुरली मनोहर जोशी, कैबनेट मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल के सामने मैदान में है, लेकिन मुस्लिम वोटों का तुष्टीकरण होने की पूरी उम्मीद है। सलीम अहमद पिछले कई वर्षों से अपनी

उम्मीदवारी पेश कर रहे हैं वही आप उम्मीदवार चर्चित मुस्लिम डाॅ0 रहमानी पूरी तरह से बसपा सीट की उम्मीदों को कोरा साबित कर रही है। कोई चमत्कार ही आप व बसपा की सीट सुरक्षित कर सकती है। वहीं पिछले दशक से कानपुर जायसवाल का पूरा विरोध कर रहा है। ऐसी स्थिति में जोशी की राह आसान हो जाती है। वहीं कानपुर से सटे अकबरपुर सीट में  देवेन्दर सिंह बोले, मोदी लहर का फायदा उठाने की जुगत में हैं। उधर कांग्रेस से नाराज प्रताप सिंह यादव, सम्पूर्ण यादव वर्ग को लेकर वारसी के साथ जुड़कर एक मील का पत्थर साबित हो रही है उधर दिग्गज युवा नेता आषीष सिंह, राहुल पाण्डेय व अमित परमार ने साफ तौर पर वारसी का विरोध करने की पेषकष की। 40 प्रतिशत युवा मोदी लहर में बहने की उम्मीद है ऐसे इस सीट पर मुकाबला अत्यन्त ही रोचक होने की उम्मीद बढ़ गयी है।

अगर बात करें फतेहपुर लोकसभा सीट की सपा से राकेश सचान प्रत्याषी सांसद है उधर बसपा से नसीमुद्दीन सिद्दकी का पुत्र अफजल सिद्दकी ने बड़े संघर्ष के बाद निरंजन ज्योति को मैदान में उतारा है यहाँ कांग्रेस की दावेदारी नगण्य है BJP दलित व मुस्लिम वोटों पर कयास लगाये हुये हैं। वह क्षेत्रीय दिग्गज पूर्व विधायक आदित्य पाण्डेय को मनाने की पूरी ताकत लगा दी। आदित्य के आने से ब्राहमण वोटों का एक समीकरण पूरी तरह से उनके पक्ष में हो जायेगा लेकिन इस पर संषय बरकरार है। लेकिन राकेश सचान से खाली जनता नाराज दिख रही है।

अमौली ब्लाॅक पूरी तरह से भाजपामय है लेकिन आदित्य इस स्थिति को पलटने की मादा रखते हैं। लेकिन युवाओं के अन्दर नरेन्द्र मोदी को लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है। इन विपरीत परिस्थितियों में मुकाबला त्रिकोणीय होने की उम्मीद है। फतेहपुर के क्षेत्रीय सर्वे के मुताबिक भाजपा को बढ़त की उम्मीद है, यहाँ पर विधानसभा उम्मीदवार खासा विपरीत राजनीति करते नजर आ रहे हैं जैसा पिछले चुनाव में देखा गया था इस दोहरे मापदण्ड का लाभ भाजपा को मिल सकता है। उधर फतेहपुर इलाके से सपा विधायक सैय्यद कासिम  हसन की मृत्यु के बाद सपा मनोवैज्ञानिक लाभ उठाने में प्रयासरत है। राजनीति का बड़ा दायरा एक रोचक संघर्ष की उम्मीद लगाये हुये हैं देखना है आने वाला चुनाव किधर करवट ले रहा है?
                            
राजनीति की एक रोचक तस्वीर इलाहाबाद, बाॅदा, कर्वी क्षेत्र से जुड़ी हुयी है। दस्यु ददुआ के मारे जाने के बाद निष्पक्ष चुनाव के कयास लगाये जा रहे हैं। एक रोचक युद्ध अपने चरम पर है- बनारस एक धर्मनगरी के रूप में जानी जाती है लेकिन वर्तमान में कुरूक्षेत्र में तब्दील हो गयी है, एक पक्ष अरविन्द केजरीवाल का है वही दूसरी ओर हिंदुत्व के रक्षक माने जाने वाले नरेन्द्र मोदी मैदान में है। नरेन्द्र मोदी के बनारस से लड़ने के पीछे पूर्वांचल के वोटों का समीकरण माना जा रहा है। बनारस सीट से दिग्विजय सिंह के आने से मुकाबला अत्यन्त ही रोचक है लेकिन पूरी बनारस नगरी हर हर मोदी घर घर मोदी से पूरी तरह सराबोर है। मुकाबला एक तरफा नजर आने लगा है। बनारस के तर्ज में रायबरेली में उमा भारती के आने से राजनीति  सरगर्मिया तेज होने के कयास लगाये जा रहे हैं हालाँकि

यह सीट कांग्रेस की सुरक्षित सीट मानी जाती है। परन्तु क्रिकेट और राजनीति में कुछ भी कहना जल्दबाजी होता है। एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री व दूसरी तरफ कांग्रेस की कर्ताधर्ता सोनिया गाॅधी की दावेदारी राजनीति में अहम रोल अदा कर रही है।
                      
अमेठी अपने पुराने इतिहास को दोहराने का भरपूर प्रयास करेगी परन्तु आप ने कुमार पर विश्वास जताकर मुकाबला अत्यन्त ही रोचक कर दिया है। वर्तमान में राहुल गाॅधाी अपनी सीट को अत्यन्त ही गम्भीरता से ले रहे हैं। मुकाबला अत्यन्त ही रूचिकर  है। पूरे प्रदेश में सभी राष्ट्रीय प्रचारक अधिक से अधिक समय देकर मतदाताओं को लुभाने का प्रयास पुरजोर ढंग से कर रहे हैं। राजनीति में अपराधियों का दखल बढ़ गया है। प्रत्याषी को जिताने में साम-दाम-दण्ड भेद, हर एक प्रक्रिया को लागू करके चुनाव जीतने का प्रयास जारी है।
                         
शीर्ष अदालत के फैसले के बाद सपा की स्थिति अत्यन्त ही दयनीय नजर आ रही है। अखिलेश के चुनााव न लड़ने से मुलायम सिंह मुख्य रूप से आजम के साथ अपनी दावेदारी पेष कर अपने दाग धुलने का प्रयास जारी है। अदालत के इस फैसले के आने के बाद मुस्लिम वोटों का आपस में बट जाने की उम्मीद है। कुछ कांग्रेस के साथ व बसपा आप में जा सकते हैं। इसका लाभ भाजपा को न के बराबर माना जा रहा है।
                           
प्रदेश की मुख्य सीट में पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी0के0 सिंह भाजपा से अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। उधर आप से महिला प्रत्याषी शाजिया इल्मी दिल्ली चुनाव इतिहास दोहराने का प्रयास है। मगर कांग्रेस से राजबब्बर व सपा से सुघन सिंह रावत के होने से यह मुकाबला अत्यन्त ही रोचक हो जाता है, मगर भाजपा के घेमे में मेयर सीट को जीतने के बाद हौसला बुलन्द है। अगर यहाँ के मतदाताओं से बात करने के बाद लोक विकास को प्राथमिकता दे रहे हैं और एक सुयोग्य संासद जो देश का प्रधानमंत्री के साथ-साथ कैबनेट मंत्री बन सके और गाजियाबाद का विकास कर सके, वहीं गाजियाबाद से सटे नोएडा भी अपने आम आदमी पार्टी सीट पर अपनी जीत सुनिश्चित मान रही है उधर भाजपा के लोकप्रिय जनाधार के साथ अपनी दावेदारी पेश कर रही है।

मुकाबला अत्यन्त ही रूचिकर है। दिल्ली से सटे इस इलाके में पूर्व राजनीति समीकरणों को जोड़ना टेढ़ी खीर साबित हो सकती है। उत्तर प्रदेष अपनी सरकार बनाने में अहम भूमिका अदा लेकिन सरकार बनाने में देष के अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रदेशों में नजर डालना अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रदेशों में नजर डालना अत्यन्त ही जरूरी है। महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, उड़ीसा, केरल, झारखण्ड मुख्य रूप से अपने प्रतिनिधि लेलेगी। सभी प्रबल दावेदार तरह-तरह के दावेदारी करते हैं।
                      
इस बार सुप्रीम कोर्ट के आदेष निर्देश  के बाद निर्वाचन आयोग ने राजनैतिक दलों को चेतावनी दी कि वे केवल वही वायदे करें, जिन्हें पूरा कर सकें। लेकिन इस चेतावनी का कोई असर पड़ता नही दिख रहा है क्योंकि कोई ऐसी कानूनी संवैधानिक बाध्यता नही जिससे दलों के लिए सत्ता में आने पर अपने घोषणा पत्र में किए गये वायदों का पूरा करना आवश्यक है। इसी तरह ऐसी कोई व्यवस्था नहीं जिसमें कोई संवैधानिक संस्था पांच साल बाद उनसे उनके वादों का हिसाब ले सके। भारत एक लोकतांत्रिक देष है सभी को ईमानदारी से मतदान करने का अधिकार है।

पिछले चुनाव की तुलना में इस समय का अत्यन्त ही रोचक है। सोशल मीडिया अपने चरम पर है, युवाओं की भागीदारी बढ़ी है। देश एक नये बदलाव की ओर अग्रसर है। बस देखना है आषाढ़ का महीना शीतलता प्रदान करेगा या गठजोड़ की राजनीति हमें इस भीषण ग्रीष्म ऋतु में सबको परेशान करेगी लेकिन यह तय है राजनीति बदली है और सरकार को बदलने की पूरी उम्मीद है। देश एक स्वच्छ ईमानदार व विकास पुरूष के इंतजार में है। नये बजट से लोगों को एक बड़ी उम्मीद है लोग नये परिवर्तन के लिए कयास लगाये हुए हैं।