जिस समय प्रेमचंद गोदान लिख रहे थे, उस समय उनके सामने स्वराज की नयी कल्पनाएँ और धारणाएं मौजूद थी. वे एक ऐसी स्वाधीनता चाहते थे जो राजनीतिक ही नहीं, सामाजिक और सांस्कृतिक भी हो. वे उपनिवेशवाद से ही नहीं, सामंती और पूंजीवादी शोषण, पराधीनता, संकीर्ण राष्ट्रवाद और जाती व्यवस्था...

Read More