रिश्वत प्रधान भी है हमारा देश

रिश्वत की जड़े बहुत गहरी है, हर छोटे बड़े शहरों से लेकर छोटे-छोटे गांवों, मोहल्लों तक इसने अपनी छाप छोड़ी है। छोटे से छोटा काम भी हमारे देश में एक पत्ती दो पत्ती, हरी पत्ती, लाल पत्ती दिए बिना नहीं होता। जुआरियों की भाषा की तरह ही रिश्वत के बाज़ार की भी भाषा है। यहाँ भी खोका, पेटी, पत्ती, चलती है। आपको परमिट पास करवाना है, लाइसेंस बनवाना है, ट्रेन की जनरल टिकट से लेकर रिजर्व टिकट तक, सीट के आबंटन और निरस्त करने तक, किसी मसौदे के हल ढूँढने में, होटल में बुकिंग हो या रेस्टोरेंट में वेटर की अच्छी मेहमानवाज़ी हो सभी में छुट्टा, या पत्ती कमाल दिखाती है। किसी को अपराधी घोषित करना है, किसी की गुमशुदगी की रिर्पोट लिखवानी, चोरी या डकैती की शिकायत करनी है तो हरी पत्ती, लाल पत्ती चमत्कार करती है।

नाज़ायज़ भूमि अधिग्रहण करनी है या बड़ी दलाली करनी है, तो खोका और पेटी सब देगी, तुम्हें कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है। घंटो लाइन में लगकर, पसीने बहाकर काम करने की आवश्यकता नहीं, बस चैकीदार को 100 की पत्ती दे आप लाइन में अग्रिम पंक्त्ति में होंगे 500 दें तो आपकी फाइल सीधी साहब की टेबिल पर होगी और यदि हरे-नोट साहब तक पहूँचा देगें, तो फिर देखिए, काम कैसे होता है। है, न कितना आसान तरीका, हरे-पीले नोटों का तमाशा कुछ ऐसा ही है, जो काम नहीं होता भी रिश्वत देकर आसानी से हो जाता है। आपको राशनकार्ड बनवाना है, ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना है, पासपोर्ट बनवाना है या फिर पहचान-पत्र, सभी में रिश्वत जरूरी है। यदि आप रिश्वत के मानदंडों पर खड़े नहीं उतरते, तो फिर आप, काटते रहिए चक्कर।

कभी कुछ, कभी कुछ कमियां निकालकर अफसर आपको हलकान कर देंगे। तब आप सोचने पर मजबूर हो जायेंगे, कि यार, इससे अच्छा तो जो मांग रहा था दे देते। कम से कम एडि़यां तो नहीं रगड़नी पड़ती, गाय-बकरी की तरह रिरियाना तो नहीं पड़ता। यही नहीं, आपको अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए भी मोटी रकम रिश्वत के लिए देनी पड़ती है।

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स्कूल, कॉलेज के एडमिशन की बात हो, या अच्छे भविष्य के लिए किसी इंस्टीट्यूट में दाखिले की यदि आप मोटी रकम नहीं दे सकते, तो बैठ जाओ, और नबंर आने का इंतजार करो? पर वह कभी नहीं आयेगा, रिश्वत देकर जाली डिग्रीयां नामधारी कालेजों एवं इंस्टीट्यूट

की भी बन जाती है। डॉक्टरी, इंजीनियरिंग, मैकेनिकल, अथवा आर्टेटिक्स कोर्स हो सभी में या तो रिश्वत चलती हैया फिर, इतनी मोटी फीस होती है कि साधारण या मध्य वर्ग के परिवार मन मसोस कर रह जाते हैं। सच तो है कि इस देश में सब कुछ बिकता है बस खरीदने वाला होना चाहिए। ठेकेदार, इंजिनियर, डॉक्टर, बाबू, चपरासी, ऑफिसर, पुलिसवाले, न्यायाधीश, थाने, कचहरी, सब बिकाऊ हैं। ’रिश्वतखोरी’ अपने पूरे जनून में है, पैस फेंको-तमाशा देखों, आपको हर रूप में रिश्वत मिल जायेगा। जो चाहे करो जैसे चाहे रहो, बस दूसरों की कमाई पर सुख से जीओ।

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