कमला बेनीवाल की छुट्टी से सरकार पर उठे कई सवाल

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kamla-beniwal 295x200 51407392134मिजोरम की नवनियुक्त राज्यपाल कमला बेनीवाल की अचानक बर्खास्तगी के बाद जाहिर है, विवाद छिड़ना था और वह छिड़ा। सरकार का कहना था कि उनके खिलाफ गंभीर आरोप थे और इसमें कोई राजनीति नहीं है।   विपक्ष का कहना है कि इसमें प्रतिशोध की बू आती है। वरिष्ठ कांग्रेसियों का कहना था कि अगर उन्हें बर्खास्त करना ही था तो उनका गुजरात से तबादला ही क्यों किया? सरकार के इस कथन में कि उन पर गंभीर आरोप थे, सच्चाई है।

पिछले दिनों आजतक की वेबसाइट पर इस सिलसिले में एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी जिसमें बताया गया था कि कैसे कमला बेनीवाल ने सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया और जनता के टैक्स से जमा पैसों पर मुफ्त में हवाई यात्राएं कीं। उन्होंने अपने गृहनगर जयपुर जाने के लिए सरकारी विमान का जमकर इस्तेमाल किया। उसे अपनी निजी संपत्ति बनाकर उन्होंने पूरा फायदा उठाया। बिना ड्यूटी के वह सरकारी विमान लेकर दौरा करती रहीं और भत्ते तथा अन्य सुविधाएं भी लीं। हर साल वह औसतन 100 दिन राज्य से बाहर रहीं। इतना ही नहीं उन्होंने गुजरात में कई महत्वपूर्ण विधेयकों को दबाकर रख लिया था। उसमें से कई विधेयक तो जनता के भले के लिए थे और उनके न पारित होने से कानून नहीं बन पाए।

दरअसल यह उनके प्लॉट का हिस्सा था। इस तरह से वह कांग्रेस आलाकमान को यह दिखाना चाहती थीं कि उन्होंने मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इससे उन्हें वहां से शाबाशी मिलती रही और हुआ भी यही। राजस्थान में उन पर जमीन हड़पने का भी आरोप लग चुका है।

बहरहाल दो राज्यपालों की बर्खास्तगी ने कई सवालों को जन्म दिया है। सबसे पहला सवाल है कि क्या हमें राज्यपालों की जरूरत भी है? महलों जैसे घरों में ढेरों कारिंदों से घिरे राज्यपालों की उत्पादकता क्या है? उनके भ्रष्ट आचरण की जांच कौन और कैसे करेगा? बिहार और झारखंड के राज्यपालों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। कई राज्यपालों के बारे में कहा गया कि वे राजभवन में रखे बेशकीमती सामान और कालीन तक उठाकर ले गए। ऐसे राज्यपालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाए। राज्यपालों के अधिकारों पर काफी समय से चर्चा होती रही है लेकिन इन पर कोई कदम नहीं उठाया गया है।

कमला बेनीवाल की बर्खास्तगी के बाद अब वक्त आ गया है कि सभी प्रश्नों पर विस्तार से विचार हो। एक बार गंभीरता से सोचा जाए कि क्या हमें यह बेहद महंगा और खर्चीला पद बनाए रखना चाहिए जो बूढ़े नेताओं के शौक पूरे करने में काम आता है और उन्हें पार्टी के प्रति वफादारी के ईनाम के तौर पर या उन्हें बागी होने से रोकने के लिए दिया जाता है? उम्मीद की जानी चाहिए कि इस पर नई सरकार गंभीरता से और बिना राजनीति के विचार करेगी।