पाकिस्तान चुनाव: नवाज शरीफ की सत्ता में वापसी

पाकिस्तान के आम चुनाव में जीत की ओर अग्रसर पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के प्रमुख नवाज शरीफ की 14 साल बाद सत्ता में वापसी लगभग तय है। दो बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रह चुके नवाज की यह तीसरी पारी होगी। पाकिस्तान के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा कि एक लोकतांत्रिक सरकार जनता द्वारा चुने गए दल को सत्ता हस्तांतरित करेगी। हालांकि अभी पूरे परिणाम सामने नहीं आए हैं, लेकिन

पीएमएल-एन को स्पष्ट बढ़त मिलती दिख रही है। नवाज ने इसके लिए लोगों का शुक्रिया अदा किया और भरोसा दिलाया कि चुनाव के दौरान उन्होंने तथा उनकी पार्टी के नेताओं ने जो वादे किए थे, वे पूरे किए जाएंगे। 

लिहाजा यह पाकिस्तान के लिए नई सुबह है कि वहां न केवल आजादी के बाद पहली बार एक निर्वाचित सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया, बल्कि उसके स्थान पर जो सरकार आने जा रही है वह वोट के जरिये आ रही है। इससे संकेत मिलता है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़े वास्तव में गहरी हो रही हैं। वहां के लोगों ने पाकिस्तानी तालिबान और दूसरे आतंकी गुटों की तमाम चेतावनियों के साथ-साथ अन्य अनेक प्रतिकूल परिस्थितियों के बाजूद जिस तरह मतदान की प्रक्रिया में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया वह एक शुभ संकेत है। मतदान के नतीजे बता रहे हैं कि नवाज शरीफ का प्रधानमंत्री बनना तय है। वह तीसरी बार पाकिस्तान की सत्ता संभालने जा रहे हैं।

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यह उल्लेखनीय है कि सत्ता संभालने के पूर्व उन्होंने घोषणा की है कि वह सेना को भी अपने अधीन रखेंगे। इस घोषणा का विशेष महत्व है, क्योंकि अभी तक यही माना जाता है और इस मान्यता के अच्छे-भले आधार भी रहे हैं कि पाकिस्तान में सेना अपने आप में सत्ता होती है और चुनी हुई सकरार भी उसकी मर्जी के बगैर कुठ नहीं कर सकती। भारत के लिए न केवल यह राहतकारी है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़े मजबूत हो रही हैं, बल्कि यह भी है कि नवाज शरीफ सरकार की कमान संभालने जा रहे हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि नवाज शरीफ ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने पिछले कार्यकाल में भारत के साथ संबंध सुधारने के लिए विशेष पहल की थी। तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को सत्ता से उखाड़ कर न केवल उनके प्रयासों पर पानी फेर दिया था, बल्कि कारगिल के रूप में भारत को गहरे जख्म भी दिए थे।

नवाज शरीफ कारगिल प्रकरण के साथ-साथ मुंबई में हुए दुस्साहसिक आतंकी हमले की जांच कराने की बात कह रहे हैं। इस तरह की घोषणाओं के चलते भारत की उम्मीदें बढ़ जाना स्वभाविक है, लेकिन फिलहाल नवाज शरीरफ से बहुत अधिक उम्मीद लगाना सही नहीं, क्योंकि यह समय ही बताएगा कि वह वास्तव में पाकिस्तान के शासन के रूप में कार्य का पाते हैं या नही? इसके अतिरिक्त इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि नवाज शरीफ का अपनी सरकार को स्थिरता देने के लिए कुछ ऐसे दलों का सहयोग लेना पड़ सकता है जो कट्टरपंथी माने जाते हैं। इसी प्रकार इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पाकिस्तान में यह धारणा है कि उनकी निकटता उन अनेक गुटों से भी है जो न केवल अराजक गतिविधियों में लिप्त हैं, बल्कि भारत के प्रति शत्रु भाव से भी भरे हुए हैं। यदि नवाज शरीफ कट्रपंथी समूहों के दबाव में काम करने के लिए विवश होते हैं तो वह नए पाकिस्तान के निर्माण का अपना वायदा पूरा नहीं कर सकेंगे। जो भी हो, नवाज शरीफ के सामने जो चुनौतियां सबसे गंभीर रूप में उपस्थित हैं उनमें सबसे प्रमुख है देश की अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना। पाकिस्तान में लोकतंत्र मजबूत अवश्य हुआ है, लेकिन अर्थव्यवस्था जैसी बुरी दशा में है उससे निपट पाना नई सरकार के लिए आसान नहीं होगा। जब तक नवाज शरीफ आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए पूरे मन से प्रयास नहीं करेंगे तब तक यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह अपने देश का सही दिशा में देने में सफल होंगे।

पीएमएल-एन प्रमुख ने कहा कि उनकी पार्टी पूरे उत्साह से काम करेगी और एक नए पाकिस्तान का निर्माण करेगी, जो मजबूत व समृद्ध होगा। उनके छोटे भाई शाहबाज शरीफ ने केवल इतना कहा, “नवाज आपके प्रधानमंत्री होंगे और मैं आपका सेवक।” इससे पहले नवाज नवंबर 1990 से जुलाई 1993 तक और फरवरी 1997 से अक्टूबर 1999 तक दो बार देश के प्रधानमंत्री रहे थे। लेकिन दोनों बार उनकी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई।

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