दिल्ली से लुप्त होते स्मारक

दिल्ली जहाँ केन्द्र सरकार की कई प्रशासन संस्थाएँ हैं। औपचारिक रूप से नई दिल्ली भारत की राजधानी है।१४८३ वर्ग किलोमीटर में फैला दिल्ली भारत का तीसरा सबसे बड़ा महानगर है। यहाँ की जनसंख्या लगभग १ करोड ७० लाख है। यहाँ बोली जाने वाली मुख्य भाषायें है: हिन्दी, पंजाबी, उर्दू, और अंग्रेज़ी। दिल्ली का ऐतिहासिक महत्त्व उत्तर भारत में इसके स्थान पर है। इसके दक्षिण पश्चिम में अरावली पहाड़ियां और पूर्व में यमुना नदी है, जिसके किनारे यह बसा है। यह प्राचीन समय में गंगा के मैदान से होकर जानेवाले वाणिज्य पथों के रास्ते में पड़ने वाला मुख्य पड़ाव था। यहाँ आधुनिक शहर के रूप में विकसित हो रही दिल्ली में एक दर्जन एतिहासिक स्मारकों कस लुप्त हो जाना दुर्भाग्यपूर्ण हैं। इस स्थिति के लिए जहां एक ओर राजधानी में बढ़ती भीड़ को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, वहीं यह ऐतिहासिक स्माराकों की देखभाल और रखरखाव में बरती जा रही लापरवाही को भी उजागर करती है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (AASI) की एक रिपोर्ट के अनुसार देरूा में 35 स्मारकों का पता नहीं है, जिनमें से 12 दिल्ली के हैं। लुप्त हुए इन स्मारकों में कुछ मुगल काल के और कुछ अंग्रेजों के जमाने के हैं। उत्तरी दिल्ली के मुबारकाबाद के पास नजफगढ़ झील से सटा फूल चादर जलसेतु, निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के पास बने तीन गुबंद, शेरशाह सूरी का मोती गेट, कोटला मुबारकपुर इच्छा वाली गुमटी, बाराखंभा रोड पर और अलीपुर में कब्रिस्तान, कश्मीरी गेट के बाहर, अंग्रेजों के ब्रिगेडियर जोर्ज निकलसन की मूर्ति व चबूतरा और किशनगंज के पास बने अंग्रेज सेना के कैप्टन एमसी बार्नेट के किले को AASI द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था लेकिन मौजूदा समय में इनका आता-पता नहीं है।

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लॉर्ड कर्जन हाउस में व कश्मीरी गेट के पास तोप रखने की जगह पुलिस लाइन बना दी गई, जबकि दूसरी जगह रिहायशी परिसर बना दिया गया। ऐसे ही जामिया नगर में जोधाबाई के नाम से बना टीला और दिल्ली गेट के पास का शम्सी तालाब भी गायब हो गया। दिल्ली एक ऐतिहासिक नगरी है और ऐतिहासिक इमारतें इसके वैभवशाली इतिहास की साक्षी हैं। ऐसे में इन स्मारकों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक हैं लेकिन इसके उलट बड़ी संख्या में स्मारक लुप्त हो रहे हैं, जो अत्यंत गंभीर मामला है।

AASI को इस बात की गहन जांच करनी चाहिए कि इतनी बड़ी संख्या में स्मारकों का नामोनिशान कैसे मिट गया? यदि ये संरक्षित स्मारकों की श्रेणी में थे तो उन्हें नष्ट कर उनके ऊपर निर्माण कैसे और किन परिस्थितियों में किया गया और इसके लिए कौन जिम्मेदार है? इसके साथ ही मौजूदा समय में संरक्षित श्रेणी के स्मारकों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए विशेष योजना बनाई जानी चाहिए, ताकि भविष्य में उनके अस्तित्व के लिए खतरा न उत्पन्न होने पाए। ऐतिहासिक स्मारकों का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसे हर हाल में गंभीरता से लिया जाना चाहिए। तभी हम अपने देश के स्मारकों को सुरक्षित रख सकते हैं।

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