अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस: पर्यावरण संरक्षण हो हमारी जीवनशैली का हिस्सा

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आज पाँच जून है। इस दिन को सन 1974 से हम अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं। विश्व के कोने कोने में आज पर्यावरण बचाने के लिए रैलियों और संगोष्ठी का आयोजन होगा। कई जगह वृक्षारोपण का कार्यक्रम किया जाएगा। कार्बन उत्सर्जन कम करने से लेकर तमाम तरह की कार्य योजनाओं की समीक्षा होगी।

आज विकास की अंधी दौड़ में दौड़ते हुए हम पर्यावरण की अनदेखी का परिणाम भुगत रहे हैं। आज वायु, जल, मृदा सब प्रदूषित हो चुके हैं। पशु पक्षियों और वनस्पतियों की तमाम प्रजातियाँ संकट में हैं और बहुत विलुप्त हो चुकी हैं। पेयजल संकट से तमाम देश जूझ रहे हैं। फसलों पर भी जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव पड़ रहा है, खाद्य संकट भी आसन्न है। तमाम नई बीमारियों और असाध्य संक्रामक रोगों से मानव सभ्यता के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है। वैश्विक तापमान बढ़ने की वजह से ग्लेशियरों के पिघलने के कारण तटीय इलाकों और द्वीपीय देशों के डूबने का खतरा बहुत बढ़ गया है। पर्यावरणीय आपातकाल के हालात इस वक्त हमारे सामने हैं। यदि हम अभी नहीं चेते तो बहुत देर होगी।

पूरे विश्व में पर्यावरण को बचाने के लिए तमाम योजनाएं बन रही हैं। तमाम अंतरराष्ट्रीय संगठनों के द्वारा धरती को बचाने के लिए समझौते भी किए गए हैं चाहे रियो हो, क्योटो हो या पेरिस हर जगह तमाम देशों ने एक स्वर में तमाम प्रस्तावों को स्वीकार किया है। एजेंडा 21 और सतत पोषणीय विकास के लक्ष्यों पर कार्य भी हो रहा है। लेकिन इस दिशा में विकाशशील और विकसित देशों के बीच का टकराव बाधाएं भी उत्पन्न कर रहा है। ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका का रवैया भी बड़ी चुनौती है। उसके बावजूद ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोतों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जैसे सौर ऊर्जा और न्यूक्लीयर एनर्जी आदि ।

बहुत से संगठन और लोग पर्यावरण को बचाने में लगे हुए हैं। कोई खाली पड़ी जमीनों में पौधे लगा रहे हैं, कोई समुद्र साफ करने में लगा हुआ है, बहुत से लोग नदियों की सफाई में योगदान दे रहे हैं। परंतु अभी भी व्यापक रूप से इस मुहिम को जनभागीदारी की आवश्यकता है। कोई भी सरकार या संगठन इतनी विशाल समस्या को हल नहीं कर सकता है। यह पूरे मानव समुदाय की जिम्मेदारी है। हम सबको इसे मिलकर हल करना होगा। सबको अपने हिस्से का प्रदूषण रोकना होगा। हम भारतीयों को पश्चिमी जीवनशैली के अंधानुकरण से बचना चाहिए और कम उपभोग की संस्कृति को अपनाना चाहिए।

सदियों में अर्जित किये गये परंपरागत ज्ञान के अनुसार जल-संग्रहण युक्तियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। तालाब-तलैया, पोखर, कुआँ, जोहड़ वग़ैरह को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए। सतही जल के बुरी तरह प्रदूषित हो जाने के बाद भौमजल का निर्मम दोहन किया जा रहा है, इसे कानून बनाकर रोकने, ऐसा करने वालों सेनिश्चित शुल्क वसूलने और भौमजल पुनर्भरण व्यवस्था (Ground Water Recharge System) को शहरी इलाक़ों में अनिवार्यतः लागू करने की आवश्यकता है। व्यावसायिक कार्यों में भौमजल के दोहन करने के उपचारित जल का प्रयोग सरकार द्वारा सुनिश्चित किया जाना चाहिये। शहरी उच्च व उच्च-मध्यम वर्ग पर भूमिगत जल को गाड़ी धोने, अपने बग़ीचे वग़ैरह की सिंचाई करने से रोकने के लिये अलग से कर लगाया जाना चाहिये।

सिर्फ तंत्र के भरोसे रहने की बजाय जन को स्वयं भी इसमें सक्रियता से लगना पड़ेगा, तभी स्थिति में सुधार संभव है। हमें बड़ी संख्या में वृक्षों को लगाने की आवश्यकता है। हमें ऊर्जा की खपत कम करनी चाहिए प्लास्टिक का उपयोग तो बिल्कुल बंद कर देना चाहिए। खेती किसानी में जैविक उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए। ई-कचरे और पेपर व प्लास्टिक आदि का निपटान उचित तरीके से करना चाहिए। वाहनों में पेट्रोल और डीजल की बजाए सीएनजी का उपयोग करना चाहिए और अब तो बैटरी चालित वाहन को बढ़ावा देना चाहिए। यदि संभव हो तो सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग करना चाहिए। घरों में दैनिक कार्यों के दौरान पानी बर्बाद नहीं करना चाहिए। लो फ्लशिंग सिस्टम जिसमें शौच के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है इसे अपनाना चाहिए। आस-पास लोगों को जागरुक करना चाहिए।

हमें यह समझना पड़ेगा कि एक दिन पर्यावरण दिवस मनाने से विशेष अंतर नहीं पड़ने वाला। हमें हर दिन पर्यावरण के लिए कुछ ना कुछ करना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाना चाहिए। इस दिशा में गाँधी हमारे लिए प्रेरणा हो सकते हैं संयोग से जिनकी 150वीं जयंती भी इस वर्ष हम मना रहे हैं। इस प्रकार हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि भी दे सकते हैं। अंत में सभी से एक बार फिर से पर्यावरण संरक्षण की अपील की जाती है क्योंकि “बेहतर कल के लिए आज प्रकृति का संरक्षण अनिवार्य है”।