जाति के मोहफास में भारतीय समाज

जाति जिसके आधार पर ही भारत को विविधाताओ वाला देश कहा जाता हैं । लेकिन ये विविधता सदियों से जातिगत भेद को जन्म देती आई हैं। इसके बहुत सारे प्रमाण मजहबी ग्रथों में प्रयुक्त हैं। महाभारत में एकलव्य के साथ हुए जातिगत बर्बरता ने जातिभेद की नींव ही रख दी थी। भारत हिन्दू राष्ट्र हैं, जहाँ की आधी आबादी हिंदू ग्रन्थों में यकीन रखती हैं और यही यकीन लोगों की रूढ़ि मानसिकता का कारण बन चुका हैं। लोगों को राम के द्वारा सबरी के खाए जूठे बेर नहीं याद, याद हैं जाति। इसी प्रकार इस्लाम में भी जाति भेद की अनेक कथाएं प्रचलित हैं ।

अगर हम समकालीन समाज की बात करे तो आज इकीसवीं सदी में भी भारतीय समाज की मानसिकता बहुत जर्जर है। यहा का समाज जातिगत भेड़ चाल को समझ ही नहीं पा रहा हैं। भारत में अशिक्षित लोगों को छोड़े भी दे तो यहाँ का बहुत बड़ा पढ़ा लिखा तबक़ा भी इस भेड़ चल का शिकार हैं । जाति के प्रति घृणा का समाज में बहुत बड़ा मकड़ जाल बन चुका हैं। जिसमें समाज का लगभग हर व्यक्ति मकड़ जाल में उलझा हुआ हैं । एक दो लोगों को छोड़ दे तो समाज पूरी तरह इस मानसिक विकृति के मोह फास में फसा हैं। जिसके दुष्प्रभाव आये दिन देखे जा सकते हैं ।

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रोहित वेमुला , पायल तड़वी ये तो बस चंद लोग हैं जिनके साथ जातिगत भेदभाव की खबर हम लोगों तक पहुँच जाती हैं, लेकिन भारत की 70% जनसंख्या ग्रामीण इलाको में रहती हैं जहाँ साक्षरता दर की कमी तो हैं ही साथ में जातिवाद भेद चरम पर हैं।

जातिगत भेद का मकड़ जाल लोगों को कैसे अपना शिकार बना रहा हैं। तीन पढ़े लिखे आधुनिक लोगों की मानसिक विकृति ने स्पष्ट कर दिया हैं। इस देश को जातिगत भेदभाव से मुक्ति आसान नहीं लगती हैं । न जाने कब लोग जाति से ऊपर उठकर मानवता के लिए लड़ेगे , न जाने कब ये जाति का अंधेरा हटेगा और अपने साथ आपसी सहौर्दय का सुनहरा सवेरा लेकर आएगा ।

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