खतरे में भारतीय अर्थव्यवस्था

Like this content? Keep in touch through Facebook

econoymकुछ समय पहले तक भारत को आपार संभावनाओं वाले बाजार के तौर पर बताने वाली अंतराष्ट्रीय आर्थिक सलाहकार एजेंसियों के सुर पूरी तरह से बदल गए हैं। इन एजेंसियों की पजर में भारत निवेश के लिहाज से अब ज्यादा आकर्षक नहीं रहा। यहां आर्थिक सुधारों की जबरदस्त जरूरत है, जबकि बैंकिंग व पेट्रोलियम जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र बेहद खराब हालात से गुजर रहे हैं। सीएलएसए, यूबीएस, मूडीज और फिच की तरफ से सोमवार को भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा पर जो टिप्पणियां सामने आई हैं, वे निश्चित तौर पर चुनावी तैयारियों में जुटे यूपीए के लिए खतरे की घंटी हैं

तमाम देशों की अर्थव्यवस्था पर और विदेशी संस्थागत निवेशकों को निवेश सलाह देने वाली फर्म सीएलएसए ने कहा है कि भारतीय इकॉनमी की स्थिति फिलहाल सुधरती नहीं दिख रही।

अब आम चुनाव बाद ही कुछ सुधार की संभावना है। फर्म के मुताबिक मौजूदा हालात में तो भारत निवेश के लिए ठीक नहीं है। स्विस निवेश बैंक और वित्तिय सलाहकार यूबीएस ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था में मौजूद संभावनाओं को लेकर गंभीर आशंका जताई है।

बैंक ने यहां निवेश के माहौल को प्रतिकूल करार दिया है। यूबीएस की तरफ से जारी रिपोर्ट में कहा है कि भारत लंबी अवधि में निवेश के लिए तो ठीक है, लेकिन अभी यहां दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों को लागू करना बेहद जरूरी है। ग्लोबल रेंटिग एजेंसी मूडीज ने भारतीय बैंकों पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की है।

इसके मुताबिक इन बैंकों में फंसे कर्जे (एनपीए) की दिक्कत बढ़ेगी। यह कई तरह की समस्याओं को जन्म दे सकती है। दूसरी तरफ अन्य रेंटिंग एजेंसी फिच ने बढ़ती पेट्रोलियम सब्सिडी इतनी बढ़ गई है कि सरकार चालू वित्त वर्ष के दौरान इसे संभाल नहीं सकती है।

एक साथ कई आर्थिक एजेंसियों की तरफ से भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में आई नकारात्मक टिप्पणी के कुछ ही देर बाद आर्थिक मामलों के सचिव अरविंद मायाराम ने सोमवार को यहां एक समारोह में स्वीकार किया कि आर्थिक विकास दा को तेज करने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

मायाराम ने बताया कि सरकार के सामने आर्थिक कानूनों में सुधार का एक व्यापक एजेंडा है। इस संबंध में सरकार दामोदर समिति और वित्तिय क्षेत्र में सुधार के लिए गठित आयोग की सिफारिशों पर विचार कर रही है।