भूमि और जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन आवश्यक

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भारत जैसे विशाल देश में जहां जनसंख्या का भार भूमि पर अधिक है यह आवश्यक है कि इस संसाधन का समुचित प्रबंध किया जाए क्योंकि भूमि मानव के सबसे महत्वपूर्ण संसाधनों में से एक है। मानव की समस्त प्राथमिक आवश्यकताएं भूमि से ही पूर्ण होती हैं। खाने के लिए भोजन, दैनिक उपयोग की वस्तुओं के निर्माण के लिए संसाधन एवं आवास भूमि से ही प्राप्त होते हैं। पिछली शताब्दियों से विश्व की जनसंख्या एकदम तेजी से बढ़ी है। अतः मानव ने भूमि एवं जल के महत्व को समझा। आज दोनों ही चीजों की कमी महसूस की जा रही है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि इन संसाधनों का उचित प्रबंध किया जाए। भारत का क्षेत्रफल पूरे विश्व के क्षेत्रफल का मात्र 2.4% है जिस पर लगभग 17% जनसंख्या का वार है।

वर्तमान में कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है व स्वच्छ पीने की जल की समस्या बढ़ती जा रही है। इनका समुचित प्रबंध ही मानव की विपत्तियों को कम कर सकता है। इस प्रबंधन के लिए इन दोनों ही संसाधनों का संरक्षण किया जाना चाहिए। जरूरत इस बात की है कि भूमि संरक्षण के लिए मृदा अपरदन रोका जाए, जिसके लिए वृक्षारोपण किया जाए, इसके लिए वन विभाग खाली व निर्जन भूमि पर स्थानीय किसानों के सहयोग से वृहद वृक्षारोपण अभियान चलाए व अन्य गैर सरकारी संगठनों की भी मदद ले। समोच्च रेखीय जुताई, फसलों की अदला बदली की जाए, खेतों को सीढ़ी दार बनाकर खेती की जाए, स्थानांतरित कृषि पर प्रतिबंधलगाया जाए, पशु चारण की नियंत्रित किया जाए। इन उपायों के द्वारा भूमि संरक्षण करके कृषि योग्य भूमि को बढ़ावा दिया जा सकता है और बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकता के अनुसार अधिक खाद्यान्न उगाया जा सकता है।

जहां तक जल संसाधन का प्रश्न है तो जनसंख्या वृद्धि, उद्योगों का तेजी से विकास, सिंचित भूमि के विस्तार के कारण जल संसाधनों का अत्यधिक शोषण हुआ है। भारत में विश्व के कुल जल संसाधन का 4% हिस्सा मौजूद है जिस पर 17% जनसंख्या का भार है। इस जनसंख्या की जल की आवश्यकता की पूर्ति के लिए यह जरूरी है कि भूमि पर होने वाली वर्षा जल को प्राप्त करके उसके अपवाह को नियमित करके जलाशयों में जल का निश्चित भंडारण किया जाए। इसका समुचित उपयोग व पुनः वितरण जलाशयों और नहरों द्वाराकिया जाए। अधिक जल की आवश्यकता वाली फसलों की खेती जैसे गन्ना व धान की बजाय अन्य फसलों को बढ़ावा दिया जाए। भूमिगत जल का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए। प्रदूषण से जलस्रोतों का बचाव और अपशिष्ट जल का प्रबंधन किया जा सकता है। इससे जल का उपयोग मानव की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जा सकता है।

यदि अभी हम नहीं चेते तो देर हो जाएगी, क्योंकि किसी ने सही कहा है कि जल है तो कल है। यही नहीं ‘तीसरे विश्व युद्ध का कारण जल ही होगा’ यह भी हम बचपन से सुनते आ रहे हैं।