पोर्नोग्राफी पर रोक लगाने के साथ ही अब आपत्तिजनक कंटेंट पर भी नजर रखेगी केंद्र सरकार

Like this content? Keep in touch through Facebook

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने जहां पहले पोर्नोग्राफी पर रोक लगाने के लिए टेलीकॉम कंपनियों को 857 ऐसी वेबसाइट्स को ब्लॉक करने के आदेश दिए हैं, वहीं अब सरकार इस ओर लोकपाल लाने की तैयारी में है। बताया जाता है कि लोकपाल पर इंटरनेट पर पोर्न के साथ ही दूसरे अन्य आपत्ति‍जनक सामग्रियों की निगरानी का भी जिम्मा होगा।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, लोकपाल के पद पर सुप्रीम कोर्ट के किसी रिटायर्ड जज या फिर सिविल सोसाइटी से किसी की नियुक्ति‍ हो सकती है। पोर्न वेबसाइट्स पर बैन को लेकर सोशल मीडिया में सरकार की खूब आलोचना हो रही है। विशेषज्ञ भी इसे सही कदम नहीं बता रहे हैं, जबकि केंद्रीय टेलीकॉम और आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि यह सिर्फ एक अंतरिम उपाय है। उन्होंने कहा, ‘सरकार की मंशा कहीं से भी मोरल पॉलिसिंग की नहीं है। यह कदम सिर्फ एक अं‍तरिम उपाय है। उन्होंने कहा कि बैन के पीछे इंटरनेट पर किसी भी नागरिक की अभि‍व्यक्ति‍ की आजादी के अधि‍कार को छीनने की कोशि‍श नहीं है। उन्होंने कहा, ‘मैं उन आरोपों को खारिज करता हूं, जिसमें इस कदम को तालिबानीकरण बताया जा रहा है। हमारी सरकार फ्री मीडिया की समर्थक है।

साथ ही इस इस मुद्दे पर सोशल मीडिया और आईटी विशेषज्ञों का मत है कि पोर्न वेबसाइट्स पर प्रतिबंध कहीं से भी उचित नहीं जान पड़ता और न ही यह उतना प्रभावी ही होगा। विशेषज्ञों के मुताबिक, यूजर्स बड़ी संख्या में मैसेंजर और दूसरी अन्य ऐसी सर्विस के जरिए ऐसे कंटेंट को शेयर करते हैं। ऐसे में वेबसाइट्स पर रोक लगाने से बड़ा लाभ हासिल होने वाला नहीं है। यहाँ जरूरत इस ओर सही पॉलिसी बनाने की है। विशेषज्ञों का कहना है कि इंटरनेट पर लगाम लगाना नामुमकिन सा है। किसी भी ब्लॉक्ड वेबसाइट को खोलने के कई दूसरे तरीके इंटरनेट पर ही मौजूद हैं। इस ओर जरूरत चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर रोक लगाने की है। सरकार को इस ओर चर्चा और विमर्श करने की जरूरत है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही पोर्न वेबसाइट्स को बैन करने पर आपत्ति‍ जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि ऐसा करना आर्टिकल 21 का उल्लंघन है, जो किसी भी नागरिक को व्यक्ति‍गत स्वतंत्रता देता है। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि कोई किसी को चार दीवारों के पीछे पोर्न देखने से रोक नहीं सकता है। चीफ जस्टिस एचएल दत्तु ने बैन से इनकार करते हुए कहा था, ‘कोर्ट की ओर से पास ऐसा कोई अंतरिम आदेश आर्टिकल 21 का उल्लंघन है, जो किसी भी नागरिक को व्यक्ति‍गत स्वतंत्रता देता है। अगर ऐसा होता है तो कल को कोई भी वयस्क आकर यह कह सकता है कि आप मुझे मेरे कमरे में चारदीवारी के अंदर पोर्न देखने से कैसे रोक सकते हैं?’

दरअसल एचएल दत्तु की ओर से यह टिप्पणी उस समय आई, जब इंदौर के एक वकील कमलेश वासवानी ने एक पीआईएल दाखि‍ल कर सभी पोर्न साइट्स पर बैन लगाने की मांग की थी। चीफ जस्टि‍स ने कहा था कि इस ओर गंभीर रूप से विचार कर सरकार को एक निर्णय लेने की जरूरत है।