जानिए क्या है उत्तराखंड की तबाही का कारण

Like this content? Keep in touch through Facebook

uttrakhandनासा के तबाही के संकेत देने के बाद भी प्रसाशन की लापरवाहीः
अमेरिका अंतरिक्ष एजेंसी नासा के 25 दिन पहले जारी किए गए सेटेलाइट चित्रों के संकेत को भांप लिया जाता तो केदारनाथ में मची तबाही से बचा जा सकता था। नासा ने जो चित्र जारी किए थे, उनसे साफ हो रहा है कि किस तरह केदारनाथ के ऊपर मौजूद चूराबानी व केनेनियन ग्लेशियर की कच्ची बर्फ सामान्य से अधिक मात्रा

में पानी बनकर रिसने लगी थी। लेकिन भारतीय वैज्ञानिक यह भांपने में नाकाम रहे कि तेजी से पिघल रहे ग्लेशयर ऐसी भीषण तबाही का कारण बन सकती है।

 

नासा ने लैडसेट-8 सेटेलाइट के जरिये हादसे से पहले 22 मई को केदारनाथ क्षेत्र के चित्र लिए, जिसमें पता चला कि ग्लेशियर के अल्पाइन जोन से लगे भाग की बर्फ कम होती जा रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह तभी होता है जब ग्लेशियर की कच्ची बर्फ के पिघलने व जमने का अनुपात गड़बड़ा जाता है। नासा की तस्वीरों के अनुसार, इसी वजह से करीब 25 दिन पहले से ही केदारनाथ घाटी में ग्लेशियर से निकलने वाले पानी का बहाव तेज होने लगा था। यदि प्रशासन तभी सक्रिय हो जाता, तो हादसा होने से पहले ही उचित आपदा प्रबंधन किए जा सकते थे।

समय से 10 दिन पहले मानसून का आना और जबरदस्त बारिश का होनाः
इन चित्रों का अध्ययन करते हुए संयुक्त राष्ट्रसंघ की दुरहम यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट आॅफ जियोग्राफी के प्रो. दवे पेटले ने भी एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक गर्मियों के शुरूआती महीनों में इस तरह ग्लेशियर से बर्फ पिघलने की स्थिति खतरे का संकेत थी, फिर भी इससे ज्यादा खतरा नहीं होता, यदि भारत में मानसून करीब 10 दिन पहले नहीं आता। बाकी का काम 14 से 16 जून के बीच हुई, जबरदस्त बारिश ने कर दिया। यदि मानसून समय से पहले नहीं आता तो बर्फ पिघलने की वह दर और तेज नहीं होती

पिघलते ग्लेशियर ने किया केदारनाथ को तबाहः
भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (IIRS) के सैटेलाइट के अध्ययन के मुताबिक यहां न कोई बादल फटा और न ही केदारनाथ मंदिर के ऊपर बने गांधी सरोवर के टूटने के कारण सैलाब आया। वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के अनुसार केदार घाटी को बर्बाद करने के पीछे दो ग्लेशियर रहे, इनकी ऊपरी परत पिघलने से पानी का सैलाब फूट पड़ा और रास्ते में पड़ने वाली हर चीज को बहा ले गया। IIRS की रिपोर्ट के मुताबिक केदारनाथ में उत्तर-पूर्व में पड़ने वाले कंनेनियन ग्लेशियर की ऊपरी परत पिघलने से इतनी भारी मात्रा में पानी फूटा कि वह गांधी सरोवर को तोड़ते हुए केदारनाथ की तरफ बढ़ने लगा। करीब इसी समय उत्तर-पूर्व के चूराबानी ग्लेशियर पिघलने से फूटा पानी का रेला अपने साथ बड़े-बड़े पत्थरों व भूभाग को भी बहाकर ले गया। दोनों ग्लेशियर से उठा पानी का रेला केदारनाथ मंदिर से कुछ पहले एक साथ मिल गया और दोगुनी रफ्तार ये केदारनाथ मंदिर की तरफ बढ़ने लगा। इसके बाद शुरू हुई तबाही जिसे देख पूरी दुनिया स्तब्ध है।

सरकार की लापरवाही भी बनी तबाही का कारणः
इस आपदा से सक्षमता के साथ निपटने में नाकाम साबित हो रही उत्तराखंड सरकार को अब मौसम विभाग की चेतावनी का नजरअंदाज करने के आरोप का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, मौसम विभाग ने 15 जून को जारी अपने बुलेटिन में जिक्र किया था कि उत्तराखं डमें अगले 72 घंटो में भारी बारिश की संभावना है, जबकि 17 जून को भीषण बारिश की चेतावनी भी दी गई थी। सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि अगर वह चेतावनी पर ध्यान देती तो आज तो इतनी बड़ी तबाही हुई है उसे कम किया जा सकता था।