दिक्कत से बचने के लिए, अस्पताल में भर्त्ती होने पर बीमा कंपनी को जरुर दे यह जानकारियाँ

नई दिल्ली: आज के दौर में स्वास्थ्य को लेकर सचेत रहना बहुत ही जरुरी है, क्योकि आज के दौर में महंगे खर्चो में हॉस्पिटल में इलाज़ का खर्चा भी सुमार है। बीमार हो जाने पर हॉस्पिटल में बढ़ते इलाज खर्चों के चलते हेल्थ इंश्योंरेंस लेना जरूरी हो जाता है। हेल्थ इंश्योरेंस की मदद से मुश्किल समय में पैसों की दिक्कतों से जूझना नहीं पड़ता। पॉलिसी खरीदने भर से ही बीमाधारक का काम खत्म नहीं हो जाता। तबियत खराब होने पर और बीमारी के इलाज की सूचना बीमा कंपनी को जरूर देनी चाहिए। ऐसा न करने पर आप हेल्थ पॉलिसी पर मिलने वाले लाभ का फायदा नहीं उठा पाते हैं। साथ ही कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है ताकि जरूरत के समय में क्लेम करने में किसी भी तरह की दिक्कत का सामना न करना पड़े।

बीमा कंपनी को सूचित करना है जरुरी

यदि आपको कोई भी बीमारी होती है तो उसके इलाज के बारे में अपनी बीमा कंपनी को जरूर सूचित करें। कैशलेस सुविधा लेने की स्थिति अस्पताल जाने से पहले अपनी बीमा कंपनी को भी सूचित कर दें। यह सूचना ईमेल या फोन किसी पर भी दी जा सकती है। अगर आपको बिल्कुल भी जानकारी नहीं है कि बीमा कंपनी के दायरे में कौन-कौन से अस्पताल आते हैं और साथ ही आपके घर के आस पास कई अस्पताल हैं जिनमें आपातकालीन सेवा की सुविधा है तो इस बारे में अपनी बीमा कंपनी से पूछें। उनसे संपर्क करके सुनिश्चित करें कि क्या संबंधित अस्पताल उनके नेटवर्क में आता है? अपनी बीमा कंपनी का डायरेक्ट हेल्पलाइन नंबर हमेशा अपने पास रखें।

दो तरह के होते है क्लेम सेट्लमेंट

क्लेम सेट्लमेंट के दो तरीके होते हैं पहला टीपीए के जरिए और दूसरा इन हाउस सेट्लमेंट के जरिए। आपका क्लेम कैशलेस पॉलिसी और इन हाउस क्लेम सेट्लमेंट पर निर्भर करता है। अगर आपके पास कैशलेस पॉलिसी नहीं है या फिर आप उस अस्पताल में नहीं जा पाते हैं जो संबंधित बीमा कंपनी के नेटवर्क में है तो इस स्थिति में इलाज के बाद क्लेम करना होता है। इसके लिए संबंधित बीमा कंपनी के दफ्तर में जाएं। वहां बीमा कंपनी आपसे कई तरह के कागजातों की मांग करेगी जैसे कि वास्तविक बिल, डॉक्टर की रिपोर्ट, डिस्चार्ज लेटर, जांच की रिपोर्ट आदि। बीमा कंपनी की ओर से दिए गए फॉर्म में अलग-अलग कॉलम बने होते हैं जिसमें इलाज पर होने वाले खर्चों को श्रेणीबद्ध तरीके से दर्ज करना होता है। इससे बीमा कंपनी यह चेक करती है कि किस खर्चे पर क्लेम दिया जाए और किस पर नहीं। सामान्य तौर पर कंपनियां जांच और मरीज के अस्पताल में भर्ती होने से पहले हुए खर्चों को कवर नहीं करती हैं। किस बीमारी को कवर किया जाएगा और किसे नहीं इसका जिक्र पॉलिसी डॉक्युमेंट में किया गया होता है। यह ग्राहक को बीमा खरीदते वक्त दिया जाता है।

इस तरह उठाये कैशलैस सुविधा का फायदा

Related Post

कैशलेस सुविधा की स्थिति में इन सब प्रक्रियाओं से गुजरने की जरूरत नहीं होती। साथ ही इलाज के लिए अचानक से पैसे के इंतजाम की जरूरत भी नहीं पड़ती। क्लेम सेट्लमेंट की प्रक्रिया सामान्य तौर पर कुछ घंटों में (आमतौर पर 6 घंटे हालांकि कुछ बीमा कंपनियों ने इसे कम कर 4 घंटा करने का दावा किया है) हो जाता है। इसका सबसे बड़ा फायदा ऐसे ग्राहकों को मिलता है जिनके पास उस वक्त इलाज के लिए पर्याप्त पैसे नहीं होते। इसके लिए आपको बीमा कंपनी के दायरे के अंतर्गत आने वाले किसी अस्पताल में जाकर टीपीए डेस्क को अपना कार्ड (जिसे कंपनी जारी करती है) दिखाना होता है। इसके बाद टीपीए डेस्क ही सारी प्रक्रियाओं को पूरा करता है।

विभिन्न कंपनियों की क्लेम समय सीमा अलग होती है

पॉलिसी होल्डर को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हर बीमारी में क्लेम करने की अलग-अलग सीमा निर्धारित होती है। ऐसा नहीं होता है कि आपको जब आपको समय मिले आप क्लेम के लिए आवेदन कर दें। एक ही परिस्थिति में अलग-अलग बीमा कंपनियां विभिन्न पॉलिसी के आधार पर अलग-अलग होती है। मसलन उदाहरण को तौर पर ओरिएंटल हेल्थ इंश्योरेंस अपने बीमा धारकों को प्रेग्नेंसी संबंधी मामले में क्लेम के लिए एक महीने का समय देता है। क्लेम की यह समय सीमा इंडिविजुअल पॉलिसी और ग्रुप पॉलिसी के मामले में भी अलग होती है।

टीपीए की भूमिका

कैशलेस सुविधा का लाभ लेने के लिए टीपीए की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। जिस बीमा कंपनी से कैशलेस प्लान खरीदा है उसका एक टीपीए डेस्क अस्पताल में होगा (यदि वह अस्पताल उसके नेटवर्क में आता है)। उस डेस्क पर आपको एक फॉर्म भरना होता है। उसके बाद ही टीपीए की भूमिका शुरू होती है। टीपीए सभी कागजात, रिपोर्ट, खर्च आदि का ब्यौरा (हालांकि इसके लिए मरीज का अस्पताल में भर्ती होना जरूरी है) तैयार करता है। यानी कि टीपीए संबंधित अस्पताल और बीमा कंपनी के बीच एक मिडिएटर की भूमिका निभाता है।

Related Post
Disqus Comments Loading...