महिलाएं कर सकती हैं तीन तलाक मानने से इनकार : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : तीन तलाक मामले में सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को फिर सुनवाई शुरू हो गई है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से कोर्ट ने पूछा है कि क्‍या निकाहनामा के समय महिलाओं को तीन तलाक के लिए ‘ना’ कहने का अधिकार दिया जा सकता है?

बोर्ड से सुप्रीम कोर्ट ने कहा, क्‍यों नहीं तलाक के लिए एक आधुनिक व आदर्श निकाहनामा बनाया जाए? क्‍या आप अपने काजी से एक आदर्श निकाहनामा बनाने के लिए कह सकते हैं? नया निकाहना तीन तलाक की समस्‍या भी दूर कर सकता है।

बोर्ड के एक वकील युसूफ मुचला ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि बोर्ड की सलाह मानने के लिए सभी काजी बाध्‍य नहीं हैं। यह भी कहा कि बोर्ड पूरी विनम्रता के साथ सुझावों को स्‍वीकार करता है और इस पर विचार करेगा। बोर्ड ने बीते 14 अप्रैल को पास हुआ एक प्रस्‍ताव भी दिखाया, जिसमें कहा गया है कि तीन तलाक एक पाप है और ऐसा करने वाले शख्‍स का बहिष्‍कार करना चाहिए।

इस बीच, आपको बता दें कि जमात ए उलेमा ए हिंद की ओर से वकील राजू रामचंद्रन ने अपना तर्क रखना शुरू कर दिया है।

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एक दिन पहले मंगलवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से वकील कपिल सिब्‍बल ने अपना तर्क रखा और तीन तलाक के मामले को आस्था का विषय बताते हुए इसकी तुलना राम के अयोध्या में जन्म लेने के विश्वास और आस्था से की। साथ ही कोर्ट के समक्ष दलील दी कि तीन तलाक 1400 साल से चल रही प्रथा है। हम कौन होते हैं इसे गैरइस्लामिक कहने वाले। ये आस्था का विषय है, इसमें संवैधानिक नैतिकता और समानता का सिद्धांत नहीं लागू होगा।

कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर मैं यह विश्वास करता हूं कि भगवान राम अयोध्या में जन्मे थे तो यह आस्था का विषय है और इसमें संवैधानिक नैतिकता का सवाल नहीं आता।

सिब्बल ने कहा कि इस्लाम की शुरुआत में कबीलाई व्यवस्था थी। युद्ध के बाद विधवा हुई महिलाओं को सुरक्षित और उनकी देखभाल सुनिश्चित करने के लिए बहुविवाह शुरू हुआ था और उसी समय तीन तलाक भी शुरू हुआ। कोर्ट कुरान और हदीस की व्याख्या नहीं कर सकता। इसकी व्याख्या उलेमा कर सकते हैं। संसद इस पर कानून बना सकती है, लेकिन कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता।

गौरतलब है कि तीन तलाक मामले पर आजकल मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाई कर रही है।

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