बलात्कार मामले: अपराधी घटे अपराध नहीं

हमारे समाज में अपराधियों के लिए बनाए गए काननू में अगर सजा के डर से अपराध कम हो जाते हैं तो ये बात बस खुद को झूठी तसल्ली देने के अलावा और कुछ नहीं है। क्योंकि ताजा आंकड़े यही बयां करते हैं कि जहां महिलाओं के खिलाफ हर तरह के अपराध बढ़ रहे हैं, वहीं उनको अंजाम देने वाले अपराधियों पर आरोप साबित न होने के कारण अपराधियों की संख्या घटती ही जा रही है।

घटते आंकड़े बढ़ते अपराधः

यौन शोषण के मामलों में सजा मिलने की दर पिछले 11 साल जहां 67 फीसदी थी अब यह घटकर सिर्फ 38 फीसदी रह गई है। इसह तरह दुष्कर्म के मामलों में यह 27 से घटकर 14 फीसदी हो गई।

पिछले साल दिसंबर में दिल्ली में चलती बस में हुई हैवानियत के बाद ’दिल्ली ग्रुप पालिसी’ द्वारा देश भर में महिलाओं की स्थिति पर एक व्यापक रिपोर्ट तैयार की गई। इसे तैयार करने वाली टीम की प्रमुख डॉ. राधा कहना है कि यहाँ यह तो नहीं कहा जा सकता है कि जितने मामले दर्ज हुए, सभी में लोगों को सजा होनी चाहिए। क्योंकि कुछ मामले फर्जी भी हो सकते हैं। लेकिन अभी तो लगभग आधे मामलों में जांच ही नहीं होती। अपराधी को सजा मिलनी तो बहुत दूर की बात है।

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देशभर में थानों में सिर्फ दर्ज होने वाले मामलों को देखें तो वर्ष 2008 में महिलाओं के खिालाफ हिंसा के 1.95 लाख केस दर्ज हुए हैं। जबकि बीते साल यह बढ़कर 2.44 लाख हो गए। दुष्कर्म जैसे मामले भले ही चर्चा में आएं, लेकिन सबसे बुरी हालत तो घरेलू हिंसा की है। सालाना एक लाख से ज्यादा ऐसे मामले थानों में दर्ज हो रहे हैं। जबकि वर्ष 2001 में यह संख्या लगभग आधी थी।

बलात्कार एक ऐसा जुर्म है जो अपने घटित होने से ज़्यादा घटित होने के बाद दुख देता हैए सिर्फ बलात्कार की शिकार लड़की को ही नहीं बल्कि उससे जुड़े हर आदमी कोए उसके पूरे परिवार को झेलना पड़ता है। यहाँ हमारे देश में अपराधियों के लिए क़ानून और अदालतें हमेशा से हैं लेकिन यह घिनौना जुर्म कभी ख़त्म न हो सका बल्कि ख़ुद इंसाफ़ के मुहाफ़िज़ों के दामन भी इसके दाग़ से दाग़दार हुए पड़े हैं।

इसके साथ ही बात यही साफ़ हो जाती है कि, जिन्हें अपराधियों के आंकड़ों की जिम्मेदारी सौपी गई हैए जब वो ही इन अपराध के आंकड़ों में शामिल हो जाए तो भला कैसे कोई सही आंकडे का पता लगा सकता है।

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