RBI विवाद: जानिये, जवाहर लाल नेहरू का ये पत्र बनेगा सरकार का अस्त्र

नई दिल्ली: 19 नवंबर, 2018 को मुंबई में RBI के पूर्ण निदेशक बोर्ड की बैठक को लेकर जहां अटकलों का बाजार गर्म है। वहीं RBI की स्वायत्तता के दायरे को लेकर बहस भी तेज है। एक तरफ जहां रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने जताया है कि सरकार और RBI की खींचतान में आखिरी वाक्य RBI का होना चाहिए।

वहीं यह भी सच है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी इसके विपरीत सोचते थे। जिनका मानना था कि समन्वय जरूरी है और जनता के लिए काम कर रही सरकार की नीतियों के साथ ही RBI को भी चलना चाहिए। नेहरू के बाद से वर्तमान सरकारों तक की सोच भी कुछ ऐसी ही है। ऐसे में अब यह भी माना जा रहा है कि आगामी बैठक में सरकार की तरफ से नामित निदेशकों की तरफ से अर्थव्यवस्था के समक्ष मौजूदा चुनौतियों और इसे संभालने में केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक की भूमिका पर खासा जोर दिया जाएगा।

मंगलवार को राजन ने RBI की स्वायत्तता की पुरजोर वकालत की। पर दूसरे पक्ष का तर्क भी उतना ही प्रबल है जिसके अनुसार जनता के प्रति सरकार जिम्मेदार होती है। सूत्रों के अनुसार नेहरू की तरफ से तत्कालीन RBI गवर्नर बेनेगल रामा राउ को लिखे गये पत्र का भी हवाला दिया जाएगा।

उक्त पत्र में नेहरू ने RBI की स्वायत्तता का समर्थन किया था लेकिन बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में कहा था- RBI सरकार की नीति के विपरीत नहीं जा सकता और उसकी स्वायत्तता सरकार के निर्देश पर निर्भर है। उन्होंने आगे कहा था- RBI की मौद्रिक नीति सरकार की वृहत नीतियों के खिलाफ नहीं जा सकती है। सरकार के मुख्य लक्ष्य और उसकी नीतियों के आड़े नहीं आ सकती है।

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अभी RBI और वित्त मंत्रालय के बीच विवाद की एक बड़ी वजह यह है कि सरकार की इच्छा है कि केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को नरम रखे ताकि उद्योग जगत व आम जनता को कम दर पर लोन मिल सके। वैसे दोनो के बीच और भी कई मुद्दों पर विवाद है। माना जा रहा है कि आरबीआइ के विशाल फंड के एक हिस्से का सरकार दूसरे विकास कार्यो के लिए इस्तेमाल करना चाहती है।

साथ ही सरकार यह चाहती है कि जिन 11 बैंकों पर प्रोम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) के जरिए प्रतिबंध लगाये गये हैं वह हटाये जाए। इन बैंकों पर प्रतिबंध लगने की वजह से ये बैंक अभी कर्ज नहीं दे पा रहे हैं। सूत्रों का है कि RBI उक्त दोनों सुझावों को खारिज कर चुका है। आगामी निदेशक बोर्ड की बैठक में इन दोनो मुद्दों पर नए सिरे से चर्चा होगी।

केंद्र सरकार व केंद्रीय बैंक के बीच विवाद का एक कारण यह भी है कि कई बार उन गवर्नरों ने उनकी भी नहीं मानी है जिन्होंने उन्हें नियुक्त करने में अहम भूमिका निभाई। इसका सबसे बड़ा उदाहरण पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव है जिन्हें यूपीए के कार्यकाल में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने वित्त सचिव से सीधे गवर्नर बना कर मिंट रोड भेजा गया। लेकिन कुछ ही महीनों बाद वित्त मंत्री के साथ उनका विवाद पूरी तरह से सामने आ गया।

गौरतलब है कि कांग्रेस RBI के पाले में खड़े होकर सरकार को कोस रही है। वह यह भी भूल रही है कि उनकी सरकारों के काल में भी सरकार और RBI के बीच संघर्ष दिखा है। लेकिन नेहरू के कथित पत्र सबसे अहम है। संभव है कि इसी बयान के आधार पर कांग्रेस पर राजनीतिक पलटवार हो। फिलहाल RBI की आगामी बैठक अहम है। वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, ‘पंडित नेहरू ने जो बात तब RBI गवर्नर को कही थी वह बात आज भी उतनी ही सही है।

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