राहुल गाँधी की चुनावी चुनौतियाँ

 

लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। सभी पार्टिया चुनाव के लिए कमर कस चुकीं हैं। अगर सभी शीर्ष नेताओं की बात की जाये तो सबसे अधिक दबाव में अगर कोई नेता है तो वो है कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी।

क्यों कि इस समय उनके कंधो पर 125 वर्ष पुरानी पार्टी को पुनर्जीवित करने का बोझ है,जिसके कैडर में विरोधियो से लड़ने की प्रेरणा, उत्साह और जज्बा बिल्कुल ही नही दिखता। बल्कि हाल के वर्षो में तो यह कैडर डरपोक और चापलूस लोगो की ऐसी भीड़ बनकर रह गया है, जिसके लिए आम आदमी के मन में न तो कोई सम्मान बचा है और न ही भरोसा ।

विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद अब लोकसभा चुनाव में राहुल पर उस शख्स से टक्कर लेने की भी जिम्मेदारी है, जिसे न केवल खेल का नियम पता है, बल्कि मीडिया और बड़े उधोगपतियों का समर्थन भी प्राप्त है । अपने राज्य में तीसरी बार मुख्यमंत्री बना यह शख्स बड़े–बड़ों को पीछे छोड़ते हुए न केवल अपनी पार्टी में एकमेव चेहरा बनकर उभरा है, बल्कि देश भर में यह अपनी छाप छोड़ने कि कोशिस भी कर रहा है और लगभग सफल भी हो रहा है। भारत को तमाम संकटों से बचाने में केवल वही सक्षम है।

विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद कांग्रेस पूरी तरह नर्वस है और आम चुनाव बिल्कुल सर पर है। जनता कांग्रेस से पूरी तरह त्रस्त है और सत्ता परिवर्तन के लिए परेशान। ऐसे में कांग्रेस के पास राहुल के सिवाय कोई और उम्मीद नही है जो पार्टी को जीत दिला सके। राहुल के जिम्मे न  शिर्फ सत्ता को बचाने की चुनौती है बल्कि आपने आप को भी साबित करने का मौका है ।

दूसरी ओर जहां नरेंद्र मोदी लगातार आपने आप को साबित करते आये है। फिर चाहें वो गुजरात में हैट्रिक लगाना हो या आम जनता के बीच अपनी बात पहुचना हो। जिस तरह की भीड़ नरेंद्र मोदी की जनसभाओ में हो रही है इससे तो नही लगता की राहुल ऐसा कर पाएंगे।

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जिस तरह लोग मोदी को सुनने के लिए आतुर है, शायद और किसी नेता को नही । मोदी भी जनता को खुश करने के लिए तमाम तरह के आभार अपने भाषण में शुरू से अंत तक करते रहते है। जिससे जनता पूरी तरह मोदीमय हो जाती है। मोदी की पटना रैली की बात करे तो लोग बम धमाको के बाद भी वही जमे रहे और पूरा  भाषण सुनने के बाद ही वहाँ से गये । मोदी की लोकप्रियता का इससे बड़ा उदाहरण नही मील सकता। दूसरी तरफ अगर कांग्रेस की बात की जाय तो कांग्रेस पूरी तरह पस्त है। जनता पूरी तरह कांग्रेस से खिन्न है ।

विधानसभा चुनाव में इसका नमूना जनता ने दिखा दिया था। क्या राहुल कुछ ऐसा कर पाएंगे जिससे कांग्रेस का जनाधार फिर वापस मिल जाये ? ये तो अब चुनाव से नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा कि आखिर किसे जनता अपना नेता मानती है । बड़ा सवाल ये है कि क्या राहुल गाँधी में वह हौसला और आत्मविश्वास है,जिसकी बदौलत वह सारे आकलनो को झुठलाते हुए नेहरु-गाँधी परिवार के चौथे प्रधानमंत्री बन सकें ? इस सवाल का जबाब तो चुनाव के नतीजे आने के बाद ही मालूम पड़ेगा ।

राहुल को यह सच्चाई जाननी चाहिय कि युवा, ईमानदार, बुद्धिमान, उर्जावान, बिदेश में शिक्षित, मशीनों को समझने वाले जिन सहयोगियों से वह घिरे है, वे पार्टी को वोट नही दिला सकते और न ही वो खोया हुआ जनाधार!क्योकि उनके पास न तो कोई उचित सलाहहै और न ही कोई नई योजना। चूँकि ये वो लोग है जो किसान क्या होता है.लोगो की जरूरी समस्या क्या हैकुछ नहीं जानते।  इसका सीधा कारण यह है कि इन्होने कभी चुनाव लड़ा ही नही और न ही आम लोगो की भावनावो को समझने की कोशिस।

अब यह बहुत ही दिलचस्प होगा की लोगो की धारणा किस के साथ है । चूँकि, धारणा के मोर्चे पे कांग्रेस को जबरदस्त मात मिली है । 1980 के दशक में रक्षा मंत्री से इस्तिफा देने के बाद जिस तरह एक पर्ची लिए बी.पी सिंह ने राजीव गाँधी  के खिलाफ बिना किसी अहम सुबूत और न्यायिक फैसले के बिना बी.पी सिंह ने राजीव गाँधी भ्रष्ट है का नारा दिया था और सत्ता से कांग्रेस को बाहर का रास्ता भी दिखाया क्यों की उस समय भी लोगो की धारणा कांग्रेस के खिलाफ थी और आज भी !!यह राहुल के लिए दुखद की बात है कि भले ही वह ईमानदार है पर उनकी पार्टी में जिस तरह से घोटाले इत्यादि हुए है इससे न केवल पार्टी का वरन सभी नेताओं की छवी धूमिल हुई है और लोगो के मन में यह धारणा बन चली है की कांग्रेस भ्रष्टाचार की जननी है ।

लोकपाल विधेयक पास करने के बाद राहुल गाँधी की वह छबी नहीं बन सकी कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ सकते है । फिलहाल राहुल गाँधी जिस तरह से छोटे –छोटे  मजदूरो से मिल रहे है ,बुनकरों से मिल रहे है चुनावी रैलिया कर रहे है एक बात तो साफ है कि राहुल कोई भी चुक नही करना चाहते जो भी हो अब चुनाव होने में चंद दिन ही बचे है ,अब जनता को फैसला करना है की वो किस पर भरोसा जताती है और अपना मत किसे देती है । क्या जनता एक बार फिर कांग्रेस के लोक लुभावन वादों के साथ जाती है या कांग्रेस के उन वादों को याद करके जो उन्होंने पुरा नहीं किया उनके  विरोध में अपना मत करती है

 

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