उत्तराखंड: कुदरत का कहर, आपदा, बर्बादी, दहशत में लोग

 

 

 

 

उत्तराखंड में कुदरत का कहर जारी है। यहाँ बाढ़ और तबाही के बाद वहां फंसे लोगों को निकाले जाने का सिलसिला जारी है। हादसे के 12 दिन बीत जाने के बाद भी अभी कई लोग फंसे हैं। राज्या में नदियां उफान पर हैं और यहां के उत्तरकाशी में भागीरथी का जलस्तर खतरे के निशान के करीब है। भागरीथी का जल स्तर बढ़ने से स्थायनीय निवासियों में बाढ़ का खौफ छा गया है वे अपना घर छोड़कर भाग रहे हैं।

उत्तराखंड सरकार के प्रधान सचिव ने बताया है कि बद्रीनाथ इलाके में अभी भी करीब 2500 लोग फंसे हुए हैं, जबकि दूसरे सभी इलाकों से लोगों को निकाल लिया गया हैं, जबकि 3000 हजार लोग अभी भी लापता हैं। पिछले दस दिनों से चलाए जा रहे राहत और बचाव के काम में सेना, वायुसेना, एनडीआरएफ, बीआरओ, जीआरईएफ समेत कई एजेंसियां जुटी हैं।

इस दौरान उत्तराखंड में खराब मौसम और विपरीत हालात के बीच अलग.अलग इलाकों से एक लाख से ज्यादा लोगों को निकाला गया है। यहाँ में अभी भी सभी लोगों को बचाया नहीं जा सका है। एक अनुमान के मुताबिक करीब ढाई हजार लोग अभी भी फंसे हुए हैं। कई गांव ऐसे हैं जो पूरी तरह बर्बाद हो गए हैं। महामारी फैलने का खतरा कम करने के लिए बहुत तेजी से काम किया जा रहा है। बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित केदारनाथ में शवों के सामूहिक अंतिम संस्कार का कार्य जारी है।

वहीँ, देहरादून एयरपोर्ट पर अपनों की तस्वीर लेकर वापसी का इंतजार कर रहे हैं। हादसे के इतने दिनों बाद भी कोई खोज खबर न मिलने से एक तरफ परिवारवालों में गुस्सा हैं, तो मायूसी भी हैं, लेकिन इन लोगों की उम्मीद अभी बाकी है।

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अब सुशिल कुमार शिंदे ने भी को माना है कि सरकार के पास मरने वाले लोगों की सही संख्या का आंकड़ा नहीं है। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, जमीन के नीचे कितने लोग फंसे हैं, इसका अंदाजा अभी लगाना मुश्किल है। लेकिन मलबे में कितने शव दबे हैं, अब इस पर हमें ध्यान देना होगा।श् साथ ही उन्होंने इस तबाही के पीछे चीन का हाथ होने की संभावना को पूरी तरह खारिज कर दिया। शिंदे ने कहा कि अब राज्य और केंद्र सरकार के बीच तालमेल बेहतर है। उन्होंने कहा कि राज्य के मुख्य सचिव को कहा गया है कि वह किसी भी समस्या को केंद्र सरकार के समन्वय अधिकारी वीके दुग्गल को बताएं। उन्होंने कहा कि इस तबाही से उबरते हुए अगले 50 सालों को ध्यान में रखते हुए प्लैनिंग के साथ काम करने की जरूरत है।

उत्तराखंड में अभी भी सभी लोगों को बचाया नहीं जा सका है। एक अनुमान के मुताबिक करीब ढाई हजार लोग अभी भी फंसे हुए हैं। कई गांव ऐसे हैं जो पूरी तरह बर्बाद हो गए हैं। इस वक्त सबसे बडी चुनौती स्थानीय लोगों तक मदद पहुंचाने की है। तबाही में उत्तराखंड के दर्जनों गांवों का नामोनिशान मिट चुका हैं, हजारों लोगों तक मदद नहीं पहुंची हैं, गावों में हफ्ते भर से ज्यादा से लोग भूखे प्यासे हैं। गौरीकुंड से 10 किमी कालीमठ में जाने का कोई रास्ता नहीं बचा हैं, चार पुल बह गए, गांव में अनाज खत्म हो चुका है।

अधिकारियों के मुताबिक़ अनुमानित 3000 लोग अब भी लापता हैं, और उनका पता लगाने के प्रयास तेज कर दिए गए हैं। सरकारी वेबसाइट पर लापता लोगों की जानकारी और फोटो अपलोड की जा सकती है जिससे अधिकारियों को उनका पता लगाने में मदद मिलेगी।

 

 

 

 

 

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