बिना दवाई ही सिर्फ बैंडेज से ही ठीक होगा जख्म

नई दिल्ली :  पीयू में आईआईटी दिल्ली के साइंटिस्ट ने यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के स्टूडेंट्स और फैकल्टी को कई तकनीकों की उपयोगिता से वाकिफ कराया। टेक्नोलॉजिकल एजुकेशन क्वालिटी इम्प्रूवमेंट प्रोग्राम (टिक्युप) के तहत रिसेंट ट्रेंड्स इन केमिकल, एनवॉयर्नमेंटल एंड मटीरियल साइंसेज (सीईएमएस 2014)  में कई राज्यों के साइंटिस्ट्स ने कुछ ऐसी तकनीकें पेश कीं, जिनके ट्रायल कामयाब हैं या हो चुके हैं।

आईआईटी दिल्ली के प्रो. भुवनेश गुप्ता ने बताया- नैनो सिल्वर बैंडेज से इन्फेक्शन का खतरा नहीं है पहले आइंटमेंट, उसके बाद एंटीबायोटिक और फिर पट्टी करने और उतारने की दर्द भरी प्रक्रिया। नैनो सिल्वर बैंडेज की मदद से किसी को भी इससे छुटकारा मिल सकता है। ये बैंडेज बहुत कम कीमत में मरीजों को दर्दनाक ड्रेसिंग से छुटकारा देगी। पंजाब यूनिवर्सिटी में पहुंचे आईआईटी दिल्ली में बायो इंजीनियरिंग लेबोरेटरी से प्रो. भुवनेश गुप्ता ने इस बारे में बताया। 1991 से लेकर अब तक की रिसर्च में ये पट्टियां तैयार की हैं।

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नैनो सिल्वर बैंडेज एक आम बैंडेज की बजाए चिपकाने वाली पट्टी है। इसे किसी भी जख्म पर लगा देने से इस पर इंफेक्शन होने का खतरा नहीं रहेगा। नैनो सिल्वर और पॉलीमर के उपयोग से बनीं इन बैंडेज से किसी तरह की टॉक्सिसिटी ना आए, इसके लिए हाइड्रोजेल्स का यूज किया गया है। यह जेल नीम और एलोवेरा जैसे हर्बल प्रॉडक्ट्स से भी बन सकती हैं। ये बैंडेज शुगर पेसेंट्स के लिए बेस्ट हैं। इससे रिकवरी फास्ट होती है।

डॉ. गुप्ता ने बताया कि मेडिकेशन के दौरान सबसे बड़ा खतरा बैक्टीरिया, वायरस और फंगल इंफेक्शन का होता है। इसलिए ऐसी बैंडेज बनाई। इस प्रोजेक्ट को इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल साइंसेज से मदद मिलने के बाद अब मार्केटिंग का इंतजार है। बैंडेजेस सिर्फ 250 रुपए में उपलब्ध हो सकती हैं। यूएसए से आने वाली ये बैंडेजेस 1800 रुपए की मिलती है। दवा के बाद यूज होने वाली बैंडेज 50 से  250 रुपए में मिलतीहैं।

डिफेंस मैटीरियल्स एंड स्टोर्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट एक्टेबलिशमेंट (बीडीएमएसआरडीई ) कानपुर ने ऐसे कंपोजिट तैयार किए हैं, जिन्हें गाड़ी के इंजन या किसी भी मशीन में यूज किया जा सकता है। इनका उपयोग मिसाइल में भी हो सकेगा। मिसाइल में तापमान 2000 सेंटीग्रेड से ज्यादा रहता है। डॉ. अरविंद सक्सेना ने बताया कि उनकी लैब में ऐसे मैटीरियल्स पर काम हो रहा है जो ४०० डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान पर भी पिघले नहीं।

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