सुप्रीम कोर्ट का फैसला: जेल में रहकर नहीं लड़ सकते चुनाव

 

सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला लिया है कि अगर कोई व्यक्ति जेल में है तो वो चुनाव नहीं लड़ सकता है। अदालत ने कहा है कि जेल और पुलिस कस्टडी में रहने वाले शख्स को वोटिंग का अधिकार नहीं है, इसका मतलब ये हुआ कि कोई भी शख्स अगर पुलिस हिरासत या न्यायिक हिरासत में होगा तो वो चुनाव नहीं लड़ पाएगा।

अदालत ने कहा कि जिन्हें वोट देने का अधिकार नहीं, वह चुनाव लड़ने का भी अधिकार नहीं रखते। इस मामले में पटना हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि यह बात उन लोगों पर लागू नहीं होगी जो प्रिवेंटिव डिटेंशन में हैं।

कोर्ट ने अहम आदेश में कहा था कि अगर सांसद, विधायक जैसे जनप्रतिनिधि को किसी केस में दो साल या इससे ज्यादा की सज़ा सुनाई जाती है तो उसकी सदस्यता खत्म हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब सजा पाने वाले सांसद, विधायक को अपील करने के नाम पर सदस्यता बनाए रखने की मोहलत नहीं मिलेगी।

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कानूनी विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना की प्रशंसा की, जिसमें जेल में बंद लोगों को चुनाव लड़ने से रोका गया है। साथ विशेषज्ञों ने कहा कि इसे समीक्षा के लिए लाया जा सकता है, क्योंकि कई मुद्दों को स्पष्ट करने की जरूरत है, जिसमें चुनावों से पहले अपने प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाने के लिए नेताओं द्वारा इसका दुरुपयोग करना भी शामिल है।

इन विशेषज्ञों का कहना है कि व्यापक प्रभाव वाला यह फैसला इस मुद्दे पर अंतिम नहीं है और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष बड़ी पीठ या संविधान पीठ के निर्णय के लिए इसे लाया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है। इस फैसले पर पूर्व अतिरिक्त सोलीसीटर जनरल अमरेन्द्र सरन ने कहा, इस फैसले का स्वागत है और इससे राजनीति में अपराधीकरण कम करने में मदद मिलेगी।

 

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