पेंडुलम की तरह झुल रही हैं एमएमसी की छात्राएं

पटना। प्रदेश में जब जदयू और बीजेपी की एनडीए सरकार बनी थी तभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गांधी संग्रहालय की दीवार से लेकर लोक निर्माण विभाग के गोदाम तक के स्थल में अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर बनाने का सुझाव दिया था। यह सुझाव बाद में पटना जिला प्रशासन के सुस्त कार्यशैली के कारण अधर में जाकर लटक गया।

जब परियोजना प्रस्तुत की गयी और लोकनायक गंगा पथ के शिलान्यास रखने के समय भी इसकी व्याख्या नहीं की गयी थी कि इसके कारण मगध महिला कॉलेज भी प्रभावित होगा। केवल यह बताया गया कि गांधी मैदान के पास नगर आरक्षी अधीक्षक और पटना जिले के असैनिक शल्य चिकित्सक सह मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी का आवासीय परिसर ही प्रभावित होगा। जो अभी वहां से हटा दिया गया है। अब तो एमएमसी का मुख्यमार्ग भी बंद किया जा रहा है। इसके कारण छात्राएं भड़क गयी हैं।

अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सवाल किया जा रहा है कि क्यों मुख्यमंत्री जी के द्वारा आधी आबादी को नाखुश किया जा रहा हैं? पटना-दानापुर मुख्यमार्ग से होकर बेधड़क परिसर में प्रवेश करने का मौलिक अधिकार समाप्त किया रहा है। आखिर क्यों पीछे से राह निकाला जा रहा है? आपके द्वारा आधुनिक लोकनायक गंगा पथ निर्माण कराया जा रहा है। इसका मतलब नहीं कि आप 1946 में स्थापित मगध महिला कॉलेज के अस्तित्व ही समाप्त कर दें। आपको चाहिए कि एमएमसी को आगे की ओर बढ़ाएं।

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अभी सभी संकाय को मिलाकर पांच हजार से अधिक की संख्या में आधी आबादी उच्च शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। मगर पीजी के लिए अन्य विश्वविघालय में जाने को बाध्य हो रही हैं। पीजी करने की व्यवस्था एमएमसी में कर देने से आधी आबादी को काफी लाभ मिलता है। देश-विदेश-प्रदेश से आने वाले पर्यटकों को अपना बिहार में बढ़ते महिलाओं का कदम दिखाया जा सकता था। मगर आप तो विकास के नाम पर एमएमसी को विनाश करने में तुल गये हैं। इस समय छात्राएं अक्षम्य पाप समझ रहे हैं।

यह उल्लेखनीय है कि सरकार ने महिलाओं को त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत के पद में पचास फीसदी आरक्षण प्रदान कर दी हैं। ऐसा करके महिलाओं को अंग्रिम पंक्ति में लाया जा सकता है। यह सकरार का स्वागतमय कदम है। इसी परिपेक्ष्य में सरकार एमएमसी के मुख्य मार्ग को अवरूद्ध करने में उतारू है। उसे वापस करके एमएमसी की छात्रों की दिल जीत लें। इस तरह का कार्य कल्याणकारी राज की सरकारों के द्वारा किया जाता है। फिलवक्त यह आंदोलन विशुद्ध प्रभावितों के द्वारा ही चलाया जा रहा है। किसी राजनीति पार्टी को फटकने नहीं दे रहे हैं।

इसके आलोक में सत्ता अथवा विपक्ष को रोटी सेंकने का सवाल ही नहीं उत्पन्न हो रहा है। ऐसा करने से 18 दिसंबर से छात्राओं की सेंटअप की परीक्षा देने वाली छात्राओं को शांति मिल जाएंगी। सरकार से लोहा लेने की उम्मीद पालने वाली छात्राओं को अध्ययन करने का समय मिल जाएगा। अभी यह हाल है कि एक पैर क्लास रूम में और दूसरी पैर आंदोलन में लगा रहे हैं। जो आधी आबादी शक्तिहीन होती चली जा रही है।

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