टपकती दीवारें

उस समय महज पाँच साल का था मैं। सब साथ में ही सोते थे।
मैं माँ के बगल में सोता था और माँ दीवार से सटे। दीवार पर दुर्गा माँ की तस्वीर को फ्रेम करा कर लगाया गया था ।
जब कभी मैं माँ के साथ रहता , कभी उस दुर्गा माँ की चेहरे को देखता और फिर माँ के तरफ देखता और सूरत में समानताएं ढूंढता ; माँ मेरी इस हरकत को देख मुस्कुराती फिर मैं शरमाते हुए उसके सीने से लिपट जाता।

मुझे ठीक से याद है , बरसात का मौसम था। लगभग रोज़ रात को उस समय बारिश हुआ करती थी । पापा जब भी उन दिनों दुकान से आते तो बरसाती(rain coat) पहन कर ही आते। रोज़ की भाँति उस रात भी जब हम खाने के बाद बिछावन पर सोने गए, तब माँ से पूछा कि माँ तू रोज़ दिन दीवार के तरफ क्यों सोती है।

माँ का जवाब था ” ताकि तुम्हें देख सकूँ, सामने से ” मैं भी ठहरा नादान , माँ की बात मान ली। उस समय उतनी बुद्धि कहाँ थी कि ये पूछ सकूँ कि अगर मैं भी दीवार से सटे सोता तो भी वो मुझे देख ही सकती थी वो भी सामने से । खैर एक दो रोज़ बाद हम ननिहाल जाने वाले थे , गए भी ; और एक सप्ताह बाद लौटें। कमरे का दरवाज़ा खुला तो हमने पाया , माँ दुर्गा की वो तस्वीर बिछावन पर गिरी पड़ी है और पूरा बिछावन गीला। दीवार पर दरारें थी जो पहले उस फ़ोटो फ्रेम से ढका पड़ा था चूँकि दरार फ्रेम के पीछे था और उसी दरार से पानी रीस कर सारा बिछावन गीला हो गया था और पलंग के किनारे से टप-टप कर के पानी नीचे गिर रहा था। पाँच साल का अबोध बालक ही सही पर तत्काल तो सबकुछ समझ में आ गया था और मैं जाकर माँ के सीने से लिपट कर रोने लगा। शायद माँ भी समझ गयी थी और कहने लगी कि ….अरे ! रोओ नहीं बेटा, पापा से बोलकर ठीक करवा लेंगें।

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आज समझ में आता है कि माँ उस समय तो मुझे चुप करने में तो सफल रही पर मैंने उसी दिन ठान लिया था ; एक घर बनाऊंगा जिसमे एक भी दरार न होंगी और मेरी माँ दीवार से सैट कर भी सोएगी तो चैन से सोएगी। माँ दुर्गा की तस्वीर भी लगेंगी दीवार पर पर इसलिए नहीं की वो दरार को ढकें बल्कि इसलिए ताकि हम उनकी पूजा कर सकें।

इस तरह से वो ‘टपकती दीवारें ‘ मुझे जीवन में आगे बढ़ते रहने की कई शिक्षाएं दे गई।आज भी जब कभी खुद से हार कर बैठने लगता हूँ तो वो वादा ; जिसे मैंने अपने हाल में ही लिखे हुए एक कविता में जिक्र भी किया है ……
” मैंने माँ से वादा किया है कि
मैं अपना वादा पूरा करूँगा”।

मुझे फिर से खड़ा होने पर बेबस कर देता है और कहता है कि सत्यम् अपने आप को इतना मजबूत बनाओ कि चाहे कितनी भी मुश्किलें सामने क्यों न आए तुम बस उसका सामना करते जाओ । सिर्फ इतना ख्याल रहे की तुम्हें लक्ष्य को भेदना है । मुश्किलें तुम्हें न भेद सके , नहीं तो जिस तरह दीवार में दरार के कारण पानी टपकने लगता है और धीरे – धीरे कमजोर हो होकर एक दिन गिर जाता है उस तरह तुम भी गिर जाओगे ।
….और तब मैं फिर से खड़ा हो जाता हूँ और दौड़ने के लिए तैयार हो जाता हूँ ।

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