श्रमिक दिवस विशेष

श्रमिक दिवस, मई के महीने के पहले दिन एक स्प्रिंग उर्वरकता को देवी वसंत सम्मान समारोह के रूप में पूरे भारत में मनाया जाता है। मई दिवस अन्यथा एक संतपर्व या संगठित श्रमिको के लिए एक दिन के रूप में मनाया जाता है। कई देशों में, यह एक सार्वजनिक अवकाश है।

भारत सहित देशों में मई दिवस भी श्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है। आंदोलन के इतिहास 1 मई, 1886 के दिन अमेरिका भर में कई मजदूर यूनियन हड़ताल पर चले गए, आठ घंटे की एक मानक कार्यदिवस की मांग की। 4 मई को वहाँ शिकागो में रक्तपात था। एक बलवा करने में सहायता द्वारा

{jcomments on}को बर्बाद कर देते हैं। श्रमिक का बेटा श्रमिक ये जरूरी नहीं है, लेकिन अधिकांश श्रमिक वर्ग के लोगों की मज़बूरी भी इन बच्चों से मजदूरी करवाती है। क्योंकि धन संग्रह करना इन मजदूरों की मानसिकता नहीं होती, इसलिए अपने बच्चों को भी अधिक कुछ दे नहीं पाते। अधिकांश मज़दूर पहले ही साहूकार और महाजन के कर्ज तले डूबे होते हैं ऐसे में जो थोड़ा बहुत बचा पाते हैं वह गाँव-घर को बचाने की आस में लगा देते हैं। इसलिए संतान का ठीक से भरण-पोषण भी ये श्रमिक वर्ग नहीं कर पाते।

हालांकि इस दिन सरकारी छुट्टी होती है और जिसमें मजदूरों को भी 365 दिन के बाद एक दिन की छुट्टी मिलती है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या सरकार द्वारा तय की गई मजदूरों के लिए यह अवकाश का दिन मजदूरों को सच में खुशी और आराम देता है। क्योंकि जो सकारी नौकरी करते हैं वह छुट्टी मनातेए पंखे के नीचे बैठ कर लजीज व्यंजन खाते खिलाते और उधर उसी क्षण एक मजदुर जीवन निर्वाह का साधन ढूंढ़त़ा फिरता हैं स और उसे तो मजदुर दिवस का मतलब तक नहीं पता। अब बेचारे इस मजदूर का क्या कसूर है जो रोज की दिहाड़ी पर काम करके अपने और अपने परिवार का पेट पालता है वो इस दिन की दिहाड़ी कहा से लाएगा और कहां से अपने परिवार का पेट भरेगा।

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यहाँ मजदूर का मतल आधुनिक उजरती मजदूर से है जिस के पास उत्पादन के अपने साधन नहीं होते और जो जीवन यापन के लिए अपनी श्रमशक्ति को बेचने के लिए मजबूर हैं। यह सच है कि दुनियां भर की बड़ी-बड़ी इमारतें, भवन, अट्टालिकाएं, बाँध, परियोजनाएं, दुर्गम पर्वतों के बीच से सुगम रास्ता या फिर नदियों के बहाव को मोड़ना, सिर्फ और सिर्फ मजदूर ही करता है, लेकिन इनके निर्माण के बाद सुख की नींद हम जब सोते हैं, दुनिया को सुन्दर बनाने का कार्य जो वर्ग इतनी तल्लीनता इतनी कर्मठता से करता है, अफसोस कि सबसे ज्यादा उपेक्षित भी वही है। न तो समाज और न ही प्रशान कोई भी उनके हितों के बारे में नहीं सोचता। कई स्वयं सेवी संबठन पहल तो करते हैं लेकिन न जाने श्रमिक हितों तक आते-आते कहाँ खो जाते हैं। इसे विडम्बना नही तो और क्या कहेंगे।

 

 

 

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