आज अंतरिक्ष में जाएगा भारत का पहला मंगलयान

भारत की मंगलयात्रा आज शुरू हो गई। दोपहर 2 बजकर 38 मिनट पर मंगलयान का प्रक्षेपण किया गया। मंगलयान को पीएसएलवी सी−25 रॉकेट के सहारे छोड़ा जाएगा। 1350 किलो के इस सैटेलाइट को 15 महीने के रिकॉर्ड टाइम में तैयार किया गया है, जिस रॉकेट के सहारे इसका प्रक्षेपण किया गया उसकी लंबाई 45 मीटर है यानी यह करीब 15 मंजिला इमारत के बराबर है।

मंगलयान को पिछले महीने 19 अक्टूबर को छोडे़ जाने की योजना थी, लेकिन दक्षिण प्रशांत महासागर क्षेत्र में मौसम खराब होने के कारण यह काम टाल दिया गया। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) ने अब आज यानी 5 नवंबर को इसे दिन में 2 बजकर 38 मिनट पर छोड़ने का फैसला किया है।

इस अभियान को मार्स ऑर्बिटर मिशन नाम दिया गया है। भारत के इस मिशन के लिए सरकार ने इसरो को 3 अगस्त 2012 को मंजूरी दी थी। वैसे, इसके लिए 2011-12 के बजट में ही फंड का प्रावधान कर दिया गया था। भारत की जनता के साथ ही देश के स्पेस साइंटिस्ट्स इस अभियान को लेकर खासे उत्साहित हैं।

अभी तक अमेरिका, रूस और यूरोप के कुछ देश (संयुक्त रूप से) ही मंगल की कक्षा में अपने यान भेज पाए हैं। चीन और जापान इस कोशिश में अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं। रूस भी अपनी कई असफल कोशिशों के बाद इस मिशन में सफल हो पाया है। अब तक मंगल को जानने के लिए शुरू किए गए दो तिहाई अभियान नाकाम साबित हुए हैं। भारत इस अभियान को अपने दम पर अंजाम तक पहुंचाने की ख्वाहिश रखता है और पूरी दुनिया की नजरें इस पर लगी हुई हैं।

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इस मिशन पर भारत के वैज्ञानिक काफी वक्त से काम कर रहे हैं। ऐसे में सवाल है कि आखिर इस मिशन का उद्देश्य क्या है। दरअसल भारत के मिशन मार्स का असल उद्देश्य है सुदूर अंतरिक्ष में यानी डीप स्पेस कम्युनिकेशन में अपना तकनीकी लक्ष्य हासिल करना। चंद्रमा से भी दूर जाने का ये पहला मिशन है लिहाजा तकनीती चुनौतियों को परखना प्राथमिकता है।

दरअसल, मंगलयान में लगे मिथेन सेंसर फॉर मार्स का काम है मार्स पर मिथेन गैस को ढूंढना, जिससे ये पता चल सके कि मंगल की धरती पर बैक्टीरिया का वास है या नहीं। इससे मंगल पर जिंदगी के अवशेष की जानकारी मिल सकेगी। मंगलयान में लगे स्पेक्ट्रोमीटर से ये भी पता लगाने की कोशिश होगी कि मगंल के गर्भ में कौन से खनिज हैं। ये जरूरी इसलिए भी है क्योंकि कई खनिजों का निर्माण पानी की मौजूदगी में ही होता है।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक़ ईश्वर में श्रद्धा रखने वाले राधाकृष्णन पीएसएलवी-सी25 की रेप्लिका के साथ 2,000 वर्ष पुराने मंदिर में वेंकटेश्वर स्वामी का आशीर्वाद लेने पहुंचे।  रेप्लिका को कुछ देर के लिए भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा के चरणों में रखा गया। सूत्रों ने बताया कि प्रत्येक प्रक्षेपण से पहले राधाकृष्ण उसकी सफलता के लिए आशीर्वाद लेने मंदिर आते हैं और सफल प्रक्षेपण के बाद भी वह भगवान के दर्शन करते हैं।

यदि भारत का मार्स ऑर्बाइटर मिशन यानी मंगलयान अपने मकसद में पूरी तरह से कामयाब रहता है तो फिर अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक की दुनिया में हिंदुस्तान की पहचान और कद वीआईपी कोटे में फिक्स हो जाएगी। मंगलयान की खासियत ही अपने आप में अहम है। इसे पूरा करने में 450 करोड़ रुपये लगे हैं। यही नहीं मंगलयान अपने सफर में 20 करोड़ से 40 करोड़ किलोमीटर तक का सफर तय करेगा।

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