देश में दुष्कर्म आखिर कब तक ?

 

 

 

हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए अनेक कानूनी प्रावधान किए गए हैं। फिर भी आए दिन महिलाओं के साथ छेड़छाड़ भेदभाव होता रहता है। प्रताड़नाए शोषण, बलात्कार, यौन उत्पीड़न व यौन हिंसा जैसी घटनाएं निरन्तर बढ़ती जा रही हैं। दूसरी ओर बाल विवाह, दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा व पर्दा प्रथा जैसी प्रवृत्तियां महिला उन्नयन के मार्ग में रोड़े अटका रही हैं।

यहाँ हर 15 मिनट में महिलाओं से छेड़छाड़ होती है, हर 29 मिनट में एक महिलाये बलात्कार का शिकार हो रही हैं। हर 77 मिनट पर किसी महिला की दहेज के कारण हत्याए हर 53 मिनट पर किसी महिला का यौन उत्पीड़न और

हर नौ मिनट पर पति द्वारा क्रूरता बरते जाने के मामले होते हैं।

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 सामाजिक अनुसंधान केन्द्र ने इस बात का आकलन करने के लिए अध्ययन किया कि महिलाओं को लेकर संवेदनशीलता के लिहाज से देश के चार राज्यों में स्थित पुलिस प्रशिक्षण अकादमियों ने अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम में क्या कुछ शामिल किया। उनका यह कहना है कि केन्द्र ने कई महत्वपूर्ण सिफारिशें कीं। इनमें से एक यह है कि हर प्रशिक्षण में महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता का पाठ पढ़ाया जाए और राज्यों की जरूरत के हिसाब से विशेष प्रशिक्षण दिया जाए।

आंध्र प्रदेश में महिलाओं की तस्करी होती है तो देश के उत्तर और पश्चिमी भाग में आम तौर पर मादा भ्रूण हत्या और दहेज हत्या के मामले होते हैं। दिसंबर 2012 में चलती बस में युवती के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके बाद देश भर में बच्चियों के साथ बलात्कार के मामलों की बाढ़ के बीच राष्ट्रीय अपराध रिकार्डस ब्यूरो के महिलाओं के प्रति अपराध संबंधी आंकड़े दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की एक रिपोर्ट में पेश किए गए हैं।

आज समाज में महिलाओं के साथ आये दिन होने वाले दुष्कर्म के मामलों बस यही सवाल खड़ा करते है की आखिर यह कबतकघ् सरकार का काम शासन चलाना है और देश में घट रहे अपराधों पर अंकुश लगाना उसकी जिम्मेदारी है। इससे वह बच नहीं सकती है। अपराधों को कम करने का तरीका यही है कि अपराधी के अंदर खौफ हो कि वह कानून से बच नहीं सकता है और सरकारों को ऐसा करना भी चाहिए।

 

 

 

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