मतदाताओं को मिला ‘राइट टू रिजेक्ट’ का अधिकार

चुनावी साल में सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फैसले में देश के मतदाताओं को यह अधिकार दे दिया है कि, वे अब मतदान के दौरान सभी प्रत्याशियों को ठुकरा सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला एनजीओ पीपल्स यूनियन फोर सिविल लिबर्टीज की याचिका पर दिया है।

अब तक यही होता रहा है कि जो उम्मीदवार नामांकन दाखिल करते हैं उन्हीं का नाम और चुनाव चिन्ह ईवीएम पर होता हैए लेकिन कोर्ट ने अब निष्पक्ष चुनाव के लिए कोई नहीं का विकल्प भी देने को कहा है। इसके मुताबिक़ ईवीएम में ‘कोई नहीं’ के विकल्प के बाद वोटर अब कोई भी उम्मीदवार पसंद न आने पर यह बटन दबाकर उम्मीदवार को रिजेक्ट कर सकेंगे। इसका कोई असर चुनाव के नतीजों पर नहीं होगा।

इसके साथ ही यह सवाल भी उठने लगे हैं कि अगर किसी को भी वोट नहीं वाले पक्ष में आधे से ज्यादा वोट पड़े चुनाव दोबारा कराए जाने चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इसे लागू करने करने मदद करने को कहा है। चुनाव आयोग ने 10 दिसंबर 2001 को ही उम्मीदवारों के नाम के बाद श्इनमें से कोई नहींश् का विकल्प देने का प्रस्ताव सरकार का भेजा थाए लेकिन इन 12 सालों में इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद सभी राजनीतिक दल एक होकर इस निर्णय में अड़ंगा लगा सकती है। अभी यह साफ नहीं हो पाया है कि कोर्ट ने फैसले में कोई समय सीमा निर्धारित की है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को अध्यादेश लाकर रद्द किया जा सकता है।

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