डाक्टर की हैवानियत, बच्चे का पेट खुला छोड़ डिस्चार्ज किया

कानपुर। कानपुर का स्वास्थ विभाग लापरवाह हो गया है, इसकी बानगी रविवार को देखने को मिली। जहाँ जिंदगी बचाने वाले डाक्टरों की लापरवाही एक मासूम के लिए की मुसीबत बन गयी, और वह जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहा है, जबकि मजबूर माँ बाप अपनी गरीबी के चलते डाक्टरों के आगे नतमस्तक है।

कानपुर के ग्वालटोली थाना क्षेत्र के खलासी लाईन में रहने वाला शिवपाल मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण करता है। लेकिन उसकी यही गरीबी उसके मासूम

बेटे अनील पर जा गुजरी, और इस जख्म पर नमक डालने का काम किया। कानपुर के सरकारी अस्पताल हैलट के सरकारी डाक्टर राकेश त्रिपाठी ने।

मासूम अनील की माँ मीना के अनुसार उसके बेटे को करीब एक हफ्ता पहले तेज बुखार हुआ, जिसे दिखने के लिए उसे हैलेट लेकर आई। यहाँ उसके बेटे की इलाज शुरू की डॉ राकेश त्रिपाठी ने करीब चार दिन बाद डॉ राकेश ने अनील के पेट का आपरेशन कर दिया, और दो दिन बाद अनील को डिस्चार्ज कर दिया, जबकि अनील के खुले जख्म में मवाद आ गया है, और डॉ अब देखने को तैयार नहीं है। एसे में अनील के गरीब माँ बाप उसे घर में ही रखने को मजबूर है।

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जबकि अनील के पिता शिवराज के मुताबिक़ सरकारी अस्पताल होने के बावजूद अनील की बिमारी में कुल सोलह हज़ार रुपये खर्च हो गए, और अस्पताल में इलाज के नामपर हर कदम पर रुपये लिए गए, दवाए इंजेक्सन सब बाहर से लाना पडा, हम लोगों की हालत देख डॉ ने हमलोगों से अनील को घर लेजाने का दबाब बनाया और बेटे को हमलोगों से बिना पूछे डिस्चार्ज कर दिया, जिसके बाद अनील को घर लाना पड़ा।

उधर डॉ राकेश त्रिपाठी ने बताया कि अनील के लीवर में प्रोब्लम थी, जिसकी वजह से उसका बुखार उतरने का नाम नहीं ले रहा था, और उसके लीवर में छेद है, जिसकी वजह से उसके पेट में इन्फेक्सन फ़ैल गया था। एसे में उसका आप्रेसन करना जरुरी हो गया था, चूँकि अनील का पेट काफी सटा हुआ था। इसलिए उसके पेट में टांका नहीं किया गया, और उसे बाकायदा डिस्चार्ज किया गया वो भी उसके माँ बाप के कहने पर।

शिवपाल अपने बेटे को अनिल को घर तो ले गया, लेकिन जब डाक्टरों के बताने के अनुसार उसे जब पीने के लिए पानी दिया तो पानी पेट में जाकर आपरेशन की जगह से निकलने लगा। जिसको देख हैरान शिवपाल ने जब बेटे के पेट में बंधी ड्रेसिंग को हटाया तो जो नजारा देखा, तो भौचक्के रह गए। डाक्टर ने आपरेशन तो किया था लेकिन उसमे टाके नहीं लगाये थे, जिसकी वजह से अनिल कुछ भी खा रहा है या पी रहा है, सब आपरेशन की जगह से निकल रहा है।

अब अनिल के परिजन डॉ राकेश का चक्कर काट रहे है, जबकि डॉ राकेश उन्हें अभी बीस दिन बाद आने को बोल रहे है। मजे की बात ये है कि डॉ राकेश सरकारी डॉक्टर होने के बावजूद निजी प्रैक्टिस करने में ज्यादा मशगूल रहते हैए और इनकी फीस 300 रुपये है, अब एसे में अनिल के माँ बाप को समझना होगा की अगर उन्हें अपने बेटे की जिन्दगी बचानी है तो डॉ राकेश से मिलने हैलेट नहीं बल्कि उनके घर पर जाना पड़ेगा।

 

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