लटक गया या लटका दिया गया राम सिंह

फिर दिन एक फांसी के न्यूज़ से शुरू हुआ, लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग था फांसी लगाईं नहीं लगा ली गई है। 16 दिसंबर को हुए बलात्कार की घटना का मुख्य आरोपी राम सिंह को देर सवेर यह महसूस हुआ की उसने सच में अपराध किया है और कानून के फैसले का इन्तजार न करते हुए उसने अपने को फांसी पर लटका लिया। लेकिन इस फांसी पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया है ? खैर इस वक़्त तो हमारे सम्पूर्ण भारत और प्रशासन पर ही प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है फिर ये क्या बड़ी बात है।

वैसे बात यह समझने की है कि आखिर लोगों को क्या चाहिए, बलात्कार के मुद्दे को लेकर फांसी की माँग कर रहे लोगों की भीड़ और मीडिया का लोगों का हितैसी बनकर सामने आना यह सब देख कर मानो यह लग रहा था की सारी दुनिया एक तरफ और जनता की लड़ाई एक तरफ है । सबकी जुबान पर बस एक ही बात थी की आरोपी को फांसी हो, मतलब मौत की सजा मिले और अब जब राम सिंह फांसी पर लटका हुआ मिला तो फिर क्यों इस पर इतने सवाल उठ रहे है?

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सभी सवालों के साथ और भी कई सवाल उठ रहे है जैसे की एक तरफ राम सिंह जिस ग्रील से लटका हुआ मिला वह बहुत ऊँचा था तो राम सिंह वहां तक पहुंचा तो कैसे पहुंचा? वहीँ दूसरी तरफ राम सिंह के पीता का यह कहना है की तिहाड़ जेल में उनके बेटे के साथ उसके साथी कैदी दुष्कर्म किया करते थे उनके बेटे ने आत्म हत्या नहीं की है उसे मारा गया है। अब इस राम सिंह के पीता को कोई यह बताये की उनके इस लाढले ने जो दुष्कर्म किया था उससे ज्यादा कोई क्या दुष्कर्म कर सकता है जिसने हैवानियत की सारी हदें ही पार कर दी थी।

हालांकि यह हिन्दुस्तान है मुदा कुछ भी हो यहाँ किसी भी मुद्दे को सवालों के कटघरे में खड़ा करना कोई बड़ी बात नहीं है। क्या यह फांसी उस फांसी से अलग हैं जिसके बारे में प्रशासन अभी सोच ही रहा था या किसको पता है सोच भी रहा था या नहीं सोच रहा था। बरहाल इस वक़्त का जो मुख्य मुद्दा है वो है फांसी। देश का प्रशासन क्या चाहता था यह तो नहीं पता लेकिन जनता तो यही चाहती थी की आरोपी फांसी पर लटके, जिसका सीधा वास्ता मौत से है, लटक गया राम सिंह या लटका दिया गया? यह सवाल अभी जनता और मीडिया में चर्चे में है लेकिन कब तक रहेगा नहीं पता क्योकिं मुद्दे अभी और भी है।

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