D-55 खोज पलट सकती है रिलायंस का पासा

 

कृष्ण गोदावरी (केजी) बेसिन स्थित D-6 ब्लॉक में नई गैस खोज रिलायंस इंडस्ट्रीज (RLI) के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती है। D-55 खोज में मौजूद गैस का बड़ा भंडज्ञर कंपनी के घटते गैस उत्पादन को नया जीवनदान दे सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि नई खोज न सिर्फ कंपनी बल्कि देश के लिए भी फायदेमंद साबित होगी। इसी उम्मीद में सोमवार को रिलायंस के शेयरों में 5.12 फीसदी की तेजी दर्ज की गई।

बीएसई में कंपनी का शेयर 828.25 रूपये पर बंद हुआ। विशेषज्ञों का कहना है कि यहां से उत्पादन शुरू होने में कम से कम दो साल लगेंगे। ब्रिटिश पेट्रोलियम (बीपी) से RLI का गठजोड़ अब रंग लाने लगा है। बीपी को गहरे समुद्र में तेल व गैस खोज में महारत हासिल है। D-55 खोज भी गहरे समुद्र में ही स्थित है। इसे दोनों कंपनियों के सहयोग से खोज गया है। यहां खोदा गया कुंआ मौजूदा D1 व D3 फील्डों से दो कि. मी. और नीचे है। इस कुएं को केजीडी-6-एमजे1 नाम दिया गया है। इसकी कुल गहराई 4,509 मीटर है। इसमें 155 मीटर की मोटाई वाली गैस की तह पाई गई है।

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इस कुएं से परीक्षण के दौरान प्रतिदिन 3.06 करोड़ घनफुट गैस निकली। हालांकि, दोनों कंपनियों ने यह नहीं बताया है कि इस खोज के तहत गैस का कितना भंडार है। मगर इसे देश में गैस की सबसे बड़ी एकल खेज बताया जा रहा है। वैसे, अनुमान लगाया जा रहा है कि यहां 9000 अरब घनफुट गैस और 1.2 अरब बैरल तेल का भंडार हो सकता है। इस नई खोज और ओडिशा तट पर स्थित एनईसी-25 ब्लाॅक से रिलायंस को वर्ष 2018 तक गैस उत्पादान में अतिरिक्त पांच करोड़ घनफुट रोजाना बढ़ाने में मदद मिल सकती है। फिलहाल D-6 ब्लॉक से गैस का उत्पादन घटकर 1.5 करोड़ घनफुट रोजाना रह गया है।

HSBC का मानना है कि D-55 अकेले 8-10 करोड़ घनफुट रोजाना गैस का उत्पादन कर सकता है। साथ ही यहां से रोजाना 10 हजार बैरल कच्चे तेल का भी उत्पादन हो सकता है। इसी साल मार्च में सरकार ने गैस व तेल खोजने के लिए कंपनियों का उन क्षेत्रों में भी कुएं खोदने की मंजूरी दे दी थी, जहां उनकी लाइसेंस अवधि काफी पहले ही समाप्त हो गई थी। कंपनी पर आरोप लगाया जा रहा है कि इसके बाद ही रिलायंस-बीपी ने एमजे-1 कुआं खोदा।

 

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