चिठ्ठी के जरिये मनोकामना पूरी होती है भक्तो की।

कानपुर। वैसे तो भगवान् अपने भक्तों से कभी रुष्ट नहीं होते और मन से मांगी गयी भक्तों की हर मनोकामना भगवान पूरी भी कर ही देते है, मगर क्या आपने सुना है या देखा है कि कोई देवी या देवता अपने भक्तों की मनोकामना चिठ्ठी पढ़कर पूरी करते है, वो भी तीन महीने में, नहीं ना चलिए हम बताते है एक एसे ही देवी के बारे में जो अपने किसी भी भक्त से नाराज नहीं होती मगर अपने भक्तों की सुनती तभी है जब कोई भक्त उनको चिठ्ठी लिखकर उनके चरणों में रख देता है।

कानपुर का काली मठिया, जहा विराजमान है माँ काली, वैसे तो यहाँ रोजाना भक्त इनके दर्शन करने को आते है मगर एसी मान्यता है की नवरात्र के समय इनसे मांगी गयी हर मुराद निश्चित रूप से पूरी होती हैए मगर ये किसी भी मुराद या मनोकामना को तभी सुनती है जब भक्त अपने मुराद को एक पर्ची में लिखकर उनके सामने रखे दान पेटी में डाल देते है, जिसके तीन महीने बाद भक्तों की मनोकामना जरुर पूरी होती है। ये कहना है, इस मंदिर के पुजारी सजीव बाबा की और खुद भक्तों की।

एसा माना जाता है की करीब 150 वर्ष पूर्व इस जगह का नाम मतैया का पूर्व था, जहाँ कभी मिट्टी का बड़ा सा टीला हुआ करता था, जिसपर बरगद, पीपल और नीम का पेड़ था, और इन्ही तीनो पेड़ के बीच में जमीन के अन्दर माँ काली की प्रतिमा दबी हुई थी, मगर वक़्त के साथ वो तीनो पेड़ कट गए और मिटटी का टीला भी ख़त्म होने लगाए तभी उस टीले में से माँ काली की मूर्ति के साथ दो और मूर्ति प्रकट हुईए तब इस जगह का नाम मातअइया के नाम से जाना जाता था, मगर बाद में इस जगह का नाम मतैया का पूर्व पड़ा।

यहाँ इस इलाके के बुजुर्गो की माने तो ऐसा कहा जाता है की एक भक्त ने बाद में मिटटी का एक छोटा सा मंदिर बना कर, माँ काली की आराधना किया करता था, मगर उसकी कोई मनोकामना पूरी नहीं हो रही थी, तब उसने हारकर एक पर्ची में अपने मन की बात लिखकर माँ के चरणों में रख दिया और उनकी आराधना करना बंद कर दिया, मगर करीब चार महीने बाद उस युवक की पर्ची में लिखी मनोकामना पूरी होने लगी, जिसके बाद वह जो भी भक्त माँ की पूजा करने आता था तो वो युवक लोगों को चिठ्ठी लिखने की बात कहता था, तब से ये चलन चला आ रहा है।

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यहाँ के और लोगों की माने तो उस मट्टी के टीले को हटा कर एक भव्य मंदिर बनाने का प्रयास कई सेठ साहूकारों ने किया मगर कोई सफल नहीं हो पायाएतब 60 के दसक में एक भक्त ने माँ काली के चरणों में पर्ची लिखकर यहाँ मंदिर निर्माण की अपनी इक्क्षा माँ से जताईए उसके तीन साल बाद यहाँ एक मंदिर का निर्माण हो सका, जिसका नाम काली मठिया रखा गया, और इस मंदिर का उदघाटन बद्रिकाश्रम के श्री शंकराचार्य शांतानंद सरस्वती जी महराज द्वारा किया गया।

इसके बाद माँ काली के एक भव्य मूर्ति की भी स्थापना यहाँ की गयीए हांलाकि यहाँ पूजा पाठ कराने वाले पुरोहित की माने तो माँ काली उन भक्तो का भी मनोकामना पूरी करती है जो इस मंदिर प्रागन में एक चुनरी में सात या नौ गाँठ लगाकर जो मुराद माँगते है वो मुराद जरुर पूरा होता है।

कानपुर के शास्त्री नगर के काली मठिया में माँ काली की मूर्ति सौम्य रूप से बिराजी है, सौम्य रूप होने की वजह से इस मंदिर प्रागं में बलि या जीभ चढाने की पाबंदी है। माता का शांत रूप होने की वजह से यहाँ मदिरा चढ़ाना भी मना है।

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