बाबा हम शर्मिंन्दा हैं !

कानपुर। भारतीय सविधान के जनक और एक महान व्यक्ति डॉ. भीमराव अम्बेडकर, जिन्होंने शुद्र परिवार में जन्म लेने के बावजूद भी सफलता की उन बुलंदियों को छुआ जो उस वक्त के शुद्र परिवारों के लिए किसी सनपे से कम नहीं था। जब देश दासता की बेडि़यों में जकड़ा हुआ था और सामाजिक स्थिति भी काफी खराब थी, उस वक्त अम्बेडकर ने एक नयी सोच के साथ धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं से ऊपर उठ कर एक नया इतिहास रच।

विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का संविधान लिखने वालें व दलित-पिछड़े वर्गं को उनके अधिकार दिलाने वाले भारत रत्न बाबा सहेब अम्बेडकर के आज 122 वें जन्मदिवस पर उनकी प्रतिमा पर दो फूल तक नहीं चढ़े। और न हीं प्रतिमा लगे उस प्रांगण में कोई साफ सफाई की गई।

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फज़लगंज चैराहे के पास लाल बहादुर शास्त्री नगर स्थित बाबा सहेब की प्रतिमा आज के दिन उपेक्षित ही रही। समाजिक संगठनों सहित शहर के शासन-प्रशासन ने भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। जबकि आज पूरे देश में बाबा सहेब के गुणगान किया जा रहा था। कुछ राजनीतिक लोग आज बाबा सहेब के जन्मदिवस के नाम पर अपनी राजनीति की रोटियां सेंक रहे थे।

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