अमित कुमार दास ने बढ़ाया बिहार का सम्मान, बना भारत का गौरव

 

भारत-नेपाल सीमा अवस्थित बिहार के अररिया जिला का लाल “अमित कुमार दास” सौफ्टवेयर की दुनिया में बने एक विशेष पहचान, खुद की बनाई गई अपनी सौफ्टवेयर कंपनी को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में किया स्थापित, इसके साथ ही उन्होंने तकनिकी शिक्षा को बिहार में बड़े और मुख्य स्तर पर स्थापित करने हेतु लगभग डेढ़ सौ करोड़ की लागत से बनाया एक ऐसा इंजीनियरिंग कॉलेज जहाँ न सिर्फ इंजीनियरिंग के छात्रों को तकनिकी शिक्षा दी जायेगी, बल्कि इसके साथ-साथ चार बड़े रिसर्च सेंटर के माध्यम से कई महत्वपूर्ण अनुसंधान कर देश को एक विशेष मुकाम दिलाते हुए दुनिया में भी अपनी पहचान बनाया जा सकेगा।

बिहारी अस्मिता को आसमान की उंचाई पर पहुंचाने वाला बिहार का लाल अमित कुमार दास एक साधारण किसान का बेटा था। मगर उसके सपने मुगेरी लाल जैसे नहीं थे, बल्कि वह सपनों को हकीकत में बदलने के जज्बों को बड़ी गहराइयों से देखता था। शायद यही वजह थी कि, बिहार का अति पिछडा जिला अररिया अवस्थित नरपतगंज प्रखंड के सुदूर गाँव मिरदौल का किसान पुत्र अमित कुमार दास अपनी मेहनत और लगन के बल पर समय के साथ-साथ खड़ामा-खड़ामा मुकाम की उचाईयों से समुन्दर की गहराइयों की तलहट्टी को छू लिया। संघर्षीय जीवन काल में अमित पढने के लिए दिल्ली तो आ गयाए मगर वहां की पढ़ाई और आधुनिक वातावरण ने उसे अति चिंतित इस लिए कर दियाएक्योंकि उसे अंग्रेजी तक नहीं आती थी, वावजूद उसने इसे चुनौती के रूप में ठान अपनी मेहनत और लगन को संकल्प के साथ पूरा कर इन्होने न सिर्फ छप्प्ज् की डिग्री ली बल्कि दिल्ली यूनिवर्सिटी से बी.ऐ. की डिग्री लेने के बाद कंप्यूटर सोफ्टवेयर की दुनियां में भी एक ऐसी पहचान बनाई जिसके कारण इन्हें ऑस्ट्रेलिया से न्योता आ गया, और अमित ने वहां भी भारत को एक ख़ास पहचान दिलाते हए अपनी खुद की कंप्यूटर सोफ्टवेयर कंपनी स्थापित कर लिया।

अमित से जब बात हुई तो उन्होंने ने बतया कि बिहार में इंजीनियरिंग कॉलेज की कमी होने की वजह से एबचपन से इंजिनियर बनने का सपना अमित का भले ही पूरा न हुआ हो, मगर उसने अपने इस सपने कोए लाखों बिहारियों के लिए साकार करने जैसा कार्य कर दिया, जिसके अंतर्गत उसने ऑस्ट्रेलिया से वापस अपने गाँव में आकर यहाँ फारबिसगंज अवस्थित लगभग डेढ़ सौ करोड़ की लागत से एक बड़ा ऐसा इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित कर दिया जहाँ न सिर्फ इंजीनियरिंग के छात्रों को तकनिकी शिक्षा दी जायेगी, बल्कि इसके साथ-साथ चार बड़े रिसर्च सेंटर के माध्यम से कई महत्वपूर्ण अनुसंधान कर देश को एक विशेष मुकाम दिलाते हुए दुनिया में भी अपनी पहचान बनाया जा सकेगा। ख़ास कर यह इंजीनियरिंग कॉलेज अन्तराष्ट्रीय स्तर का है एजिसका इम्फ्रा-स्ट्रक्चर ऑस्ट्रेलिया के इंजीनियरिंग कॉलेज जैसा ही होगाएजिसमे यहाँ पढ़ाने वाले लोग भी ख़ास कर ऑस्ट्रेलिया से भी आयेंगे।

उन्होंने बतया कि पारिवारिक जीवन-काल में एक किसान परिवार ज्यादा से ज्यादा सोच भी क्या सकता है, बस यही कि उसका बेटा घर को संभाल ले, ठीक उसी प्रकार अमित की माँ मीरा देवी ने भी ऐसा ही सोची थी एमगर इन्हें क्या मालूम थी कि एजिस बेटे को लेकर वह जमिनी स्तर मात्र की सुखमय जीवन जीने कल्पना कर रही है एवही बेटा आसमान के तारे तोड़ने में लगा है। अमित की माँ मीरा दास को अपने बेटे पर सिर्फ इतना भारौसा था कि उसका बेटा एक न एक दिन अच्छी नौकरी तो पा ही लेगा एमगर उसे क्या मालूम था कि, जिस बेटे के लिए वह उसकी एक नौकरी की तमन्ना रखती हो एवही बेटा अब सैकड़ों हजारों लोगों को नौकरी देगा। हांलाकि मीरा देवी व्यक्तिगत सौगात प्राप्ति से ज्यादा देशभक्ति गौरव पाने से हर्षित है।

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वहीं जब अमित कि माँ मीरा दास से बात हुई तो उनहोंने बतया किए अमित के गाँव मिरदौल में वहां के लोग अमित के इस उपलब्धि से काफी खुश है उन्हें आज पता चल गया है कि, उसके गाँव का अमित क्या था और क्या हो गया। गाँव के लोगों को पढ़ाई करने और रुपया कमाने के लिए बड़े-बड़े शहर जाना होता था मगर अब वही लोग अमित की वजह से यहाँ आएँगे।

इसी के साथ वहीं के रहने वाले एक ग्रामीण से बात की गई तो उसने बतया कि बिहार का अति पिछड़ा जिला अररिया में यह पहली बड़ी उपलब्धि है एजबकि यहाँ के विद्यार्थियों को बिहार से बहार जाना पड़ता था एमगर अब लगता है एहमारे देश में इस प्रकार के अन्तराष्ट्रीय स्तर के इंजीनियरिंग कॉलेज में इस क्षेत्र के गरीब बच्चे भी यहाँ दाखिला ले सकेंगे, यह इस क्षेत्र के लिए गौरव की बात होगी और विकास को देश के मानचित्र पर अब देखा जा सकेगा, नरपतगंज के इस क्षेत्र को आगे बढ़ने से अब कोई नहीं रोक सकता।

वहन के पूर्व सांसद सुकदेव पासवान का कहना है कि एक सर्वे के मुताबिक़ इंजीनियरिंग की अच्छी शिक्षा पाने के लिए बिहार से लाखो विद्यार्थियों का पलायन इस राज्य से दुसरे राज्य में होता है जिसका सालाना आय लगभग पांच हजार करोड़ बिहार से अन्य राज्य में चला जाता है ऐसे में इस प्रकार के अन्तराष्ट्रीय स्तर के इंजीनियरिंग कॉलेज होने से बिहार को काफी लाभ है एहांलाकि इंजीनियरिंग कॉलेज के मामले में कर्नाटका में चार सौ इंजीनियरिंग कॉलेज हैं एजबकि बिहार में उसके वनिस्पत मात्र पंद्रह ही इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, अब जबकि इस एक और इंजीनियरिंग कॉलेज के होने से इसकी संख्यां सोलह जरूर हो चुकी है फिर भी बिहार सरकार को बिहारी विद्यार्थियों के पलायन को रोकने के लिए कम से कम तीन सौ ऐसे इंजीनियरिंग कॉलेज खोलने की आवश्यकता होगी।

 

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