उत्तराखंडः प्रशासन की लापरवाही, अब भी वहां फंसे लोग भगवान भरोसे

 

उत्तराखंड पर कुदरत ने जो कहर ढ़ाया है, उसके बाद वहां जिंदगी और मौत से जूझ रहे लोगों के लिए सरकार की लापरवाही और प्रशासन का दावे फेल होते दिखाई पड़ रहे हैं। सरकार नदियों के उफान से तो लोगों को बचा नहीं पाई, और अब घायलों और बीमारों को भी कुदरत के ही भरोसे छोड़ दिया है।

आपदा पीडि़तों को दवा और डाक्टर मुहैया करवाने में पूरी तरह नाकाम राज्य सरकार महज झूठे दावे कर रही है। यहां तक कि इसमें केंद्र सरकार समेंत किसी की भी डाक्टरी मदद का उपयोग करने तक से हाथ खड़े कर दिए हैं। केंद्र सरकार ने भी छठा दिन बीतने के बाद भी अपने राहत व बचाव अभियान में स्वास्थ्य सुविधाओं का नाम तक नहीं लिया। लोगों को इलाज और दवा मुहैया करवाने को ले कर राज्य सरकार की लापरवाही और उसे ढकने के लिए बोला जाने वाला झूठ को साफ सामने आ गया है।

इसी के साथ उत्तराखंड के लोगों लिए केंद्र सरकार की एक वत लापरवाही भयानक रूप से जानलेवा साबित हुई है। यदि उत्तराखंड में पर्वतीय हिस्सों में आधुनिक डॉप्लर वेदर रडार होते तो समय रहते बादल फटने की चेतावनी देकर सैकड़ों जाने बचाई जा सकती थीं।

केदारनाथ का हादसा मंदाकिनी से उठे बादल के फटने के कारण हुआ था, जो हिमालयी प्रदेश की नियमित आपदा है। मौसम वैज्ञानिक मानते हैं कि बादल फटने का लंबा पूर्वानुमान असंभव है लेकिन कुछ घंटे पहले इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इसके लिए डॉप्लर रडार सबसे उपयुक्त है जो बादलों का घनत्व, हवा प्रवाह व बादल की स्थिति बताते हैं।

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बादल फटने की घटना एक सीमित इलाके में होती है इसलिए त्वरित जानकारी के आधार पर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा जा सकता है। डॉप्लर रडार उपग्रह के एस बैंड पर काम करता है लेकिन पूरे उत्तरी हिमालयी प्रदेश में इसकी कोई सुविधा नहीं है।

हैरान करने वाली बात तो यह है कि कठोर कुदरत वाले उत्तर भारत के हिमालयी इलाके में एक भी ऐसा आधुनिक रडार नहीं लगा है। जबकि यह प्रणाली देश के 14 शहरों में लगाई गई है, जहां मौसम सहज है और लोग अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं। उत्तराखंड व हिमाचल के मौसम का मिजाज पटियाला के रडार से से नापा जाता है, जिसकी जानकारी अंदाजा पर आधारित है।

उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन पर 2010 में आई कैग की रिपोर्ट में बताया गया था कि बांध वाले इलाकों में 2002, 2005 और 2008 आकस्मिक बाढ़ आई थी लेकिन मौसम विभाग ने इस इलाके में मौमस पूर्वानुमान दुरूस्त करने की सुध नहीं ली, यदि ऐसा किया होता तो शायद इतने जान माल की हानी नहीं होती जिसका भयावह मंजर आज पूरा देश देख कर सख्ते में हैं।

 

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