विद्यार्थी की व्यथा

 

इतिहास की परीक्षा थी उस दिन, चिंता से दिल धडकता था

थे बुरे शकुन घर से चलते ही, बायां हाथ फडकता था

 

मैंने जो सवाल याद किये, वो केवल आधे याद हुए

उनमे से भी कुछ स्कूल, तक आते आते बर्बाद हुए

 

तुम बीस मिनट हो लेट, द्वार पर चपरासी ने बतलाया

मैं मेल ट्रेन की तरह दौड़ता कमरे के भीतर आया

 

परचा हाथ में पकड़ लिया, आँखे मूंदी तुक घूम गया

पढते ही छाया अन्धकार,चक्कर आया सर घूम गया

 

यह सौ नंबर का परचा है, मुझको दो की भी आस नहीं

चाहे सारी दुनिया पलटे, पर मैं हो सकता पास नहीं

 

ओ प्रशन पत्र लिखने वाले, क्या मूह लेकर उत्तर दे हम

तू लिख दे तेरी मर्जी, यह पर्चा है या एटम बम

 

तुने पूछे वे ही सवाल, जो जो थे मैंने रेट नहीं

जिन हाथों ने यह प्रशन लिखे, वे हाथ तुम्हारे कटे नहीं

 

फिर आँख मूंद कर बैठ गया, बोला भगवान दया कर दे

मेरे दीमाग में इन प्रशनों के उत्तर ठूंस ठूंस भर दे

 

मेरा भविष्य है खतरे में, मैं झूल रहा हूँ आयें बाएं

तुम करते हो भगवन सदा, संकट में भक्तों की सहाय

 

जब ग्राह ने गज को पकड़ लिया, तुमने ही उसे बचाया था

जब द्रुपद सुता की लाज लुटी, तुमने ही चीर बढ़ाया था

 

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दौपदी समझ करके मुझको, मेरा भी चीर बढाओ तुम

मैं जहर खाकर मर जाऊंगा, वर्ना जल्दी आ जाओ तुम

 

आकाश चीर कर अम्बर से, आई गहरी आवाज एक

रे मूढ़ व्यर्थ क्यों रोता है, तू आँख खोल कर इधर देख

 

गीता कहती है कर्म करो, फल की चिंता मत किया करो

मन में आए जो बात उसी को, पर्चे पर लिख दिया करो

 

मेरे अंदर के पात खुले, पर्चे पर कलम चली चंचल

ज्यों किसी खेल की छाती पर, चलता हो हलवाहे का हल

 

मैंने लिखा पानीपत का, दूसरा युद्ध था सावन में

जापान जेर्मनी के बीच हुआ, अठारह सौ सत्तावन में

 

लिख दिया महात्मा बुध महात्मा गाँधी जी के चेले थे

गाँधी जी के संग बचपन में वे आँख मिचौली खेले थे

 

रना प्रताप ने गौरी को, केवल दस बार हराया था

अकबर ने हिंद महासागर, अमरीका से मंगवाया था

 

महमूद गजनवी उठते ही, दो घंटे रोज नाचता था

औरन्जेब रंग में आकर, औरों की जेब काटता था

 

इस तरह अनेक भावों से, फूटे भीतर के फव्वारे

जो जो सवाल थे याद नहीं, वे ही पर्चे पर लिख मारे

 

हो गया परीक्षक पागल सा, मेरी कॉपी को देख देख

बोला इन सब छात्रों में, बस होनहार है यही एक

 

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