सत्ता के गलियारों में टोटकेबाजी का चलता सिलसिला

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politiciansजहां देश के नेता सत्ता में बने रहने के लिए हर भरसक प्रयास करतें है वहीं यह नेता टोटकेबाजी का सहारा भी बखुबी लेते हैं। आज के आधुनिक युग में राज्य के कर्णधार भी अंधविश्वास के मकड़जाल में फंसे हुए हैं। अपनी कुर्सी बचाने के लिए वे रूढि़वादी दकियानुसी विचारधाराओं को भी अपना रहे हैं। अपने क्रियाकलापों को मूर्त रूप देने के लिए वे शुभ अंक, शुभ दिनांक, शुभ दिन, शुभ रंग, शुभ अवसर शुभ वाहन समेत अन्य शुभ चीजों को तब्बजो दे रहे हैं। यहां कुछ राजनीतिज्ञों के खास पहलुओं पर हम नज़र डालते हैं कि उन पर किस तरह टोटकेबाजी का भूत सवार है।

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जब पहली बार

सत्ता अवधि मात्र 13 दिनों की थी। उसके बाद उन्होंने 13 दलों के साथ मिलकर अपनी सरकार बनाकर प्रधानमंत्री की गद्दी पर पांच वर्षों तक राज किया जाता है, ताकि उसकी आत्मा को शांति मिल सके, लेकिन मुझे तो शांति जीते जी ही मिल गई, क्योंकि 13 पार्टियों के सहयोग से मैं दिल्ली पहुँचा हूँ और मैं अपने लिए 13 नंबर को काफी लक्की मानता हूँ।

वहीँ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी टोटकेबाजी में पीछे नहीं है। 13 नंबर का फैक्टर उनके साथ भी रहा है और वह भी 13 नंबर को अपने लिए काफी खास मानती है। ममता दीदी ने अपनी पार्टी तृमूल कांग्रेस का निर्माण भी 13 मई 1998 को किया था। जिस नारे को आधार बनाकर ममता ने चुनाव जीता था, वह नारा माँ, माटी और मानुष है। जो कि अंग्रेजी में 13 अक्षर का है। 13 तारीख को ही ममता दीदी ने बंगाल में शासन की कमान संभाली थी। इस प्रकार ममता दीदी के लिए भी 13 नवंबर का फैक्टर काफी प्रभावशाली रहा है।

 मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान भी टोटकेबाजी से बचे नहीं है। वे सत्ता का कोई भी कार्य मंगलवार या शनिवार को ही करते हैं। चाहे अन्य दिनों में मामला कितना भी महत्वपूर्ण क्यों न हो। वे अपने कैबिनेट की बैठक मंगलवार को ही बुलाते हैं और अपने प्रदेश में किसी भी योजना का शुभारंभ शनिवार को ही करते हैं। देखा जाए तो मुख्यमंत्री चैहान पर भी रूढि़वादिता का असर पूरी तरह छाया हूआ है। यह अपने जीवन में शनिवार और मंगलवार दिन को काफी शुभ मानते हैं।

झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा भी अपनी लाल रंग की जैकेट को काफी शुभ मानते हैं। अगर वह किसी भी कार्यक्रम में शिरकत करते हैं तो अपना लाल जैकेट पहनना नहीं भूलते हैं। मुंडा सत्ता में ज्यादा दिनों तक बने रहने के लिए अपने मुख्यंमंत्री आवास का वास्तुदोष निवारण कराया है।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार भी अपने राजनीतिक कैरियर के लिए टोटके का सहारा लेना नहीं भूलते हैं। वे तांगे की सवारी को अपने लिए काफी शुभ मानते हैं और वो भी राजगीर का राजधानी तांगा हो तो बात ही कुछ और है। वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव के कुछ दिनों पहले राजगीर में आयोजित जदयू के कार्यकत्र्ताओं की बैठक में इन्होंने राजधानी तांगा से राजगीर भ्रमण किया था। राजगीर प्रवास यात्रा के दौरान भी इन्होंने राजधानी तांगा की सवारी का पूरा लुत्फ उठाया था।

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.यदिरूप्पा भी मुख्यमंत्री बनने के बाद से बिना बिस्तर के ही जमीन पर सोने लगे। उन्होंने सुख सुविधाओं के सभी साधनों का त्याग कर दिया उन्होंने इस टोटके का सहारा इसलिए लिया कि कुर्सी भी बची रहे और शासन भी ठीक ढंग से चलता रहे।

उपरोक्त दिए गए नेताओं की इन टोटकेबाजी को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि कहीं न कहीं यह रूढि़वादी प्रवृति के विचार धाराओं को अपनाए हुए हैं। मामला चाहे वाजपेयी, ममता दीदी के 13 नंबर फैक्टर का हो या फिर मुख्यमंत्री चैहान के मंगलवार या शनिवार के दिन का। मुंडा के लाल रंग के जैकेट का या फिर बी.येदिरूप्पा के जमीन पर सोने का या फिर नीतिश के राजधानी तांगे की सवारी का सभी के मन में कहीं न कहीं सत्ता मं लगातार बने रहने की ललक इन सभी से यह करवाता है और यह करते भी हैं। बरहाल जहां 21 वीं सदी के युग में देश के नेता एवं कर्णधार ही रूढि़वादिता और अंधविश्वास के जाल में फंसते जा रहे हैं, तो आम जनता की क्या बात की जाए जो आए दिन पोथे-पोंगियोंए बाबाओं के पर अंधविश्वास कर अपना जीवन बर्बाद कर लेते है।